समयसार गाथा प० थी पप ] [ ११९ घटयो ज नथी. शुभाशुभभावरहित शुद्ध चैतन्यवस्तुने जाण्या विना शुभभाव वखते अशुभ घटे एम त्रणकाळमां बनतुं नथी केमके तेने मिथ्यात्व तो आखुं पडयुं छे. भाई त्रिकाळी पूर्ण आनंदना नाथने जेणे अनुभवमां लीधो छे तेने शुभभाव वखते अशुभ घटे छे अने ते क्रमे क्रमे राग घटीने नाश थई जाय छे. अहाहा! जेमां राग नथी, भव नथी, भवना भाव नथी, अपूर्णता नथी एवा पूर्णस्वभावमय शुद्ध चैतन्य भगवानना निधानने जेणे जोयुं छे तेने शुभभाव वखते अशुभ घटे छे अने ते शुद्ध चैतन्यवस्तुना आश्रये शुभभावने पण घटाडीने क्रमे करी स्वाश्रयनी पूर्णता करी मुक्ति पामशे.
द्रष्टिमां पूर्ण शुद्ध परमात्मस्वरूप आवे नहि तेने राग केम घटे? मिथ्यात्वनी हयातीमां अशुभ केम घटे? भाई! मिथ्यात्व मंद थाय ए कांई अपूर्व वस्तु नथी. अभवीने पण मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधीनो रस मंद थाय छे. मंद के तीव्र ए कोई चीज नथी, पण अभाव ते चीज छे. श्री समयसारनी टीकामां श्री जयसेनाचार्ये कह्युं छे के अभवी ज्यारे शुभभाव घणो उग्र करे छे त्यारे तेने मिथ्यात्व तेम ज अनंतानुंबंधीना अनुभागनो रस मंद थाय छे. परंतु मंद पडे तेथी शुं? अभाव थवो जोईए.
अहीं कहे छे के संयमनां स्थानो ‘विकल्पलक्षणानि’ एटले भेदस्वरूप होवाथी भगवान आत्माने नथी. आ अजीव तत्त्वनो अधिकार चाले छे. माटे तेओ अजीवना होवाथी जीवने नथी एम प्रतिषेधथी वात करी छे. पहेलां जीव आवो छे आवो छे एम अस्तिथी वात करी हती. हवे अहीं जीवमां आ नथी, आ नथी एम निषेधथी वात करी छे.
हवे चक्षु, अचक्षु, अवधि अने केवळदर्शन एवा दर्शननां जे भेदस्थानो छे ते वस्तुमां- त्रिकाळी शुद्ध जीवद्रव्यमां नथी एम कहे छे. शुद्ध वस्तु तो परम पवित्र छे. परंतु पर्यायमां जे अशुद्धता थाय छे ते पोताना ऊंधा पुरुषार्थथी थाय छे, कर्मने लईने नहि. पोते रागमां रोकायो छे ते कर्मने कारणे नहि पण पोतानी ज भूलना कारणे रोकायो छे. श्री पंचास्तिकायमां आवे छे के विषयनी प्रतिबद्धता छे तेथी जीव रोकायो छे, कर्मने लईने नहीं. भाई! पूर्णानंदनो नाथ भगवान अंदर बिराजे छे. तेनो आश्रय लीधो नथी अने परनो आश्रय लीधो छे ते तारो पोतानो ज अपराध छे. शुं ते अपराध पर पदार्थे कराव्यो छे? (ना).
प्रश्नः– कोई कहे छे के प०% उपादान अने प०% निमित्तना राखो ने?
उत्तरः– भाई! सो ए सो टका आत्मानो अपराध छे. अंशमात्र पण परनो अपराध नथी. आत्मानी भूल १००% पोताथी छे अने निमित्तना १००% निमित्तमां छे. अरे! हजी वस्तु सत्य केम छे एनी खबर न होय तेने धर्म कयांथी थाय? भाई! आ संसारमांथी नीकळी जवा जेवुं छे. आ संसारनो भाव अने भेदनो भाव ए शुद्ध