१२० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ जीववस्तुमां नथी. जोके ए भेद छे पोताने कारणे, कर्मने लईने नहीं. कर्मने लईने ज्ञान रोकायुं छे एम नथी. ज्ञान पोते ज ऊंधी परिणतिए हीणपणे परिणमे छे अने तेथी अल्पज्ञ छे. तेमां उपादान तो पोतानुं छे अने ज्ञानावरणीय कर्म तो निमित्तमात्र छे.
कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म अने शुकल एम जे लेश्याना भेदो छे ते वस्तुमां-शुद्ध जीवद्रव्यमां नथी.
वळी भव्य, अभव्य एवा भेद पण जीवने नथी. भव्य-अभव्यपणुं तो पर्यायमां छे. चैतन्यस्वभावी वस्तुमां भव्य-अभव्यपणाना भेद नथी. तेथी ज भव्य हो के अभव्य, वस्तुपणे शुद्ध होवाथी प्रत्येक जीव समान छे.
हवे कहे छे क्षायिक उपशम अने क्षयोपशम एवा जे समक्तिना भेदो छे ते जीवने नथी. सम्यग्दर्शननो विषय जे अखंड ध्रुव आत्मद्रव्य छे तेमां सम्यग्दर्शनना भेदो नथी. बहु झीणुं, भाई. प्रभु! तने परमात्मा बनाववो छे ने? तुं द्रव्यस्वभावथी तो परमात्मा छो ज, परंतु पर्यायमां परमात्मा बनाववो छे, हों! भाई! तुं एवा अभेद परमात्मस्वरूपे छो के तेमां गुणभेद के पर्यायभेद नथी अने एवी अभेद द्रष्टि थतां तुं अल्पकाळमां पर्यायमां पण परमात्मपद पामीश. अहीं भेदनुं लक्ष छोडाववा उपशम, क्षयोपशम अने क्षायिक एवा समक्तिना भेदो परमात्मस्वभावमां नथी एम कह्युं छे. एक समयमां पूर्ण ज्ञानरसकंद शुद्धचैतन्यघनवस्तुनो चैतन्य-चैतन्य-चैतन्य....एवो त्रिकाळी प्रवाह ध्रुव एवो ने एवो छे. तेमां भेद केवा? माटे भेदनुं लक्ष छोडी दे, निमित्तनुं लक्ष छोडी दे अने जे त्रिकाळी ध्रुव चैतन्य छे त्यां द्रष्टि दे अने स्थिर था.
व्यवहारथी धर्म थाय एम माननारने आ एकांत जेवुं लागे. एने एम थाय के पंच महाव्रत पाळे, अनेक क्रियाओ करे, रसनो त्याग करे ए कांई नहिं? हा, भाई! ए कांई नथी. ए तो संसार छे. जीव चाहे नवमे ग्रैवेयक जाय के सातमी नरके जाय, छे तो औदयिकभाव ज ने? वस्तुना स्वरूपमां ज्यां भेद पण नथी तो वळी उदयभाव कयांथी रह्यो? अरे, क्षायिकभावनां स्थानो पण जीवमां नथी. नियमसारनी ४३मी गाथामां आवे छे के-क्षायिकभाव, उदयभाव, उपशमभाव अने क्षयोपशमभावनां स्थानो जीवमां नथी. आवो आनंदनो नाथ प्रभु पूर्ण स्वरूपे अंदर बिराजमान छे त्यां द्रष्टि दे तो तने परमात्माना भेटा थशे.
संज्ञी-असंज्ञीपणुं पण वस्तुमां नथी. वस्तु संज्ञी के असंज्ञी केवी? वस्तु तो शुद्ध चिद्रूप एकाकार छे.
आहार-अनाहारपणुं वस्तुमां-आत्मामां नथी. आहार लेवानो विकल्प के अनाहारीपणानो विकल्प ते बन्ने पर्याय छे. ए वस्तुमां नथी. आम मार्गणास्थानो सघळांय जे भेदस्वरूप छे ते जीवने नथी. कारण के तेओ पुद्गलद्रव्यना परिणाममय छे जुओ,