Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा प० थी पप ] [ १२१ भेदना भावने पण पुद्गलना परिणाम कह्या छे, कारण के अभेदस्वरूप चैतन्यमूर्तिमां भेद केवा? प्रथम एम कह्युं के बधांय मार्गणास्थानो जीवने नथी. कारण शुं? तो कहे छे कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय छे अने तेथी अनुभूतिथी भिन्न छे. अंतरमां अभेदनी अनुभूति थतां, अनुभूतिमां ते भेदो आवता नथी, पण भिन्न रही जाय छे. आवी अद्भुत वात छे!

२४. जुदी जुदी प्रकृतिओनुं अमुक मुदत सुधी साथे रहेवुं ते जेमनुं लक्षण छे एवां जे स्थितिबंधस्थानो ते बधांय जीवने नथी. जीवमां कर्मनी स्थितिबंधना प्रकारो तो नथी पण जे (जीवनी पर्यायनी) योग्यता ते पण नथी. कर्ममां जे प्रकृति, प्रदेश, स्थिति अने अनुभाग बंध छे ते तेना उपादानमां-जडमां छे. परंतु जीवनी पर्यायमां कर्मने अनुसार जे योग्यता छे ते जीवमां छे. एमां कर्म तो निमित्तमात्र छे. ज्यां निमित्त छे त्यां उपादानमां पण एवी ज योग्यता होय छे. कर्मप्रकृतिथी भिन्न, ते प्रकारनुं अशुद्ध-उपादान जीवमां पोतानामां छे. कर्मप्रकृति तो तेमां मात्र निमित्त छे. कर्मप्रकृतिमां जेटली योग्यता छे तेटली ज योग्यता उपादान (जीव)मां छे. जेटलो स्थितिबंध छे अने जेटलो प्रदेशबंध छे तेटला प्रमाणमां उपादाननी (जीवनी) पर्यायमां अशुद्धतानी योग्यता छे. हवे अहीं कहे छे के ए बधांय स्थितिबंध-स्थानो जीवने नथी. विकार एक जातनो छे छतां कर्मनी प्रकृतिमां भिन्न भिन्न स्थिति केम पडे छे? प्रकृति-विशेषने कारणे एम थाय छे. कर्मनी प्रकृतिमां स्थिति पडे छे ते पोताना कारणे छे. निमित्तपणे राग तो एक छे, छतां स्थितिमां फेर पडे छे ते, ते काळमां परमाणुनी उपादाननी स्वतंत्रताने लईने छे. अहा! गजब वात छे.

रप. कषायना विपाकनुं अतिशयपणुं जेमनुं लक्षण छे एवां जे संकलेशस्थानो ते बधांय जीवने नथी. शुं कहे छे? के पर्यायमां जे असंख्य प्रकारना अशुभ भाव थाय छे ते जीवस्वरूप नथी. पहेलां प्रीतिरूप राग अने अप्रीतिरूप द्वेष एटलुं ज आव्युं हतुं. हवे कहे छे के जीवनी पर्यायमां जे कषायना विपाकनुं अतिशयपणुं छे, जे संकलेशस्थानो छे-ते बधाय जीवने नथी. अहीं जड विपाकनी वात नथी पण जीवनी पर्यायमां थता कषायना विपाकनी वात छे. जे कर्मनो विपाक छे ते प्रमाणे आत्मामां पण कषायनो विपाक छे. ए कषायना संकलेश परिणाम छे ते स्वतंत्र छे. कर्म तीव्र छे माटे संकलेशना परिणाम थया छे एम नथी. ते समयना संकलेश परिणाम जे कषायना विपाकरूपे छे ते पोतानी पर्याय छे. परंतु ते शुद्ध आत्मवस्तुमां नथी. अहाहा! जेने जीव कहीए, भगवान आत्मा कहीए ते शुद्ध चैतन्यमां संकलेशनां स्थानो छे ज नहीं.

भाई! वस्तु तो त्रिकाळ शुद्ध ज छे. अशुद्धता छे ते पर्यायमां छे अने ते पोताने