Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ कारणे छे, कर्मना कारणे नहि. गोमटसारमां आवे छे के भावकलंकसुपउरा निगोदना जीवने भावकलंक (भावकर्म) सुप्रचुर छे. त्यां द्रव्यकर्मनी प्रचुरता नथी लीधी. तेना उपादानमां अशुद्धतानी-भावकलंकनी उग्रता छे अने ते पोताना कारणे छे. हवे अहीं कहे छे के ए संकलेशस्थानोना जे असंख्य प्रकार छे ते बधाय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे. शुद्ध द्रव्यस्वभावना आश्रये जे निर्मळ अनुभूति थाय छे तेमां आ संकलेशस्थानो आवतां नथी, भिन्न रही जाय छे माटे ते जीवने नथी. आवी वात छे.

२६. कषायना विपाकनुं मंदपणुं जेमनुं लक्षण छे एवां जे विशुद्धिस्थानो ते बधांय जीवने नथी. रागनी मंदताना जे असंख्य प्रकार (शुभभाव) छे ते जीवने नथी एम कहे छे. पर्यायमां जे असंख्य प्रकारना शुभभाव थाय छे ते, ज्ञानानंद स्वरूप छे जेनुं एवा शुद्ध आत्मामां नथी. ते बधाय भावथी भगवान आत्मा भिन्न छे. केम भिन्न छे? केमके शुद्ध आत्मद्रव्यनी अनुभूतिथी तेओ भिन्न रहे छे. आत्माथी भिन्न छे एम कहीने द्रव्य लीधुं अने अनुभूतिथी भिन्न कहीने वर्तमान पर्यायनी वात लीधी.

भाई! वीतरागनो मार्ग बहु सूक्ष्म छे. शुभभाव करीने पण अज्ञान वडे अनादिथी जन्म-मरणना ८४ना फेरामां फरी रह्यो छे. अहीं कहे छे के जे शुकललेश्याना शुभभाव करीने नवमी ग्रैवेयक गयो ते शुभभाव पण वस्तुमां-आत्मामां नथी. छतां शुभभावथी कल्याण थशे एम माने छे ए मोटुं अज्ञान छे. भाई! अन्य जीवोनी रक्षानो शुभभाव हो के जे वडे तीर्थंकरगोत्र बंधाय ते शुभभाव हो-ए सघळाय शुभभाव शुद्ध जीववस्तुमां नथी. केम? केमके शुद्ध जीववस्तुनो अनुभव थतां, अनुभूतिथी ते सघळाय शुभभावो भिन्न रही जाय छे, अनुभवमां आवता नथी.

प्रश्नः– शुभभाव जीवने नथी तो शुं जडने छे? क्षायिक भावनां स्थानो जीवने नथी तो शुं जडने छे? क्षायिकभाव तो सिद्धनेय छे. सातमी गाथामां कह्युं के-ज्ञानीने दर्शन, ज्ञान, चारित्र नथी तो शुं अज्ञानीने होय छे? जडने होय छे?

समाधानः– भगवान! जरा धीरजथी सांभळ, भाई. ते भेदो द्रव्यस्वभावमां नथी एम कहेवुं छे. जे अपेक्षाए वात चालती होय ते अपेक्षाए वातने समजवी जोईए. बापु! ज्ञानीने एटले के ज्ञायकभावमां आ ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवा भेद नथी. ज्ञायक तो अभेद चिन्मात्र वस्तु छे. वळी ज्ञान, दर्शन, आदि भेदनुं लक्ष करवा जतां राग थाय छे. तेथी अभेदनी द्रष्टि कराववा भेद नथी एम कह्युं छे. ज्ञायकनी द्रष्टि थतां दर्शन-ज्ञान-चारित्रना भेदो ज्ञायकमां भासता नथी. आवी वात अभ्यास विना समजवी कठण पडे पण शुं थाय? आ वातने अंतरमां बेसाडवा तेने उग्र पुरुषार्थ करवो जोईए.

पर्यायमां जे कांई शुभभाव-कषायनी मंदतानां विशुद्धिस्थान थाय छे ते बधा