कुतो जीवस्य वर्णादयो निश्चयेन न सन्तीति चेत्–
ण य होंति तस्स ताणि दु उवओगगुणाधिगो जम्हा।। ५७ ।।
न च भवन्ति तस्य तानि तूपयोगगुणाधिको यस्मात्।। ५७ ।।
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हवे वळी पूछे छे के वर्णादिक निश्चयथी जीवना केम नथी तेनुं कारण कहो. ते प्रश्ननो उत्तर कहे छेः-
उपयोगगुणथी अधिक तेथी जीवना नहि भाव को. प७.
गाथार्थः– [एतैः च सम्बन्धः] आ वर्णादिक भावो साथे जीवनो संबंध [क्षीरोदकं यथा एव] जळने अने दूधने एकक्षेत्रावगाहरूप संयोगसंबंध छे तेवो [ज्ञातव्यः] जाणवो [च] अने [तानि] तेओ [तस्य तु न भवन्ति] ते जीवना नथी [यस्मात्] कारण के जीव [उपयोगगुणाधिकः] तेमनाथी उपयोगगुणे अधिक छे (-उपयोगगुण वडे जुदो जणाय छे).
टीकाः– जेम-जळमिश्रित दूधनो, जळ साथे परस्पर अवगाहस्वरूप संबंध होवा छतां, स्वलक्षणभूत जे दूधपणुं-गुण ते वडे व्याप्त होवाने लीधे दूध जळथी अधिकपणे प्रतीत थाय छे; तेथी, जेवो अग्निनो उष्णता साथे ताद्रात्म्यस्वरूप संबंध छे तेवो जळ साथे दूधनो संबंध नहि होवाथी, निश्चयथी जळ दूधनुं नथी; तेवी रीते-वर्णादिक पुद्गलद्रव्यना परिणामो साथे मिश्रित आ आत्मानो, पुद्गलद्रव्य साथे परस्पर अवगाहस्वरूप संबंध होवा छतां, स्वलक्षणभूत उपयोगगुण वडे व्याप्त होवाने लीधे आत्मा सर्व द्रव्योथी अधिकपणे प्रतीत थाय छे; तेथी, जेवो अग्निनो उष्णता साथे तादात्म्यस्वरूप संबंध छे तेवो वर्णादिक साथे आत्मानो संबंध नहि होवाथी, निश्चयथी वर्णादिक पुद्गलपरिणामो आत्माना नथी.