Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१३८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ देखीने [एषः पन्था] आ मार्ग [मृष्यते] लूंटाय छे’ एम [व्यवहारिणः] व्यवहारी [लोकाः] लोको [भणन्ति] कहे छे; त्यां परमार्थथी विचारवामां आवे तो [कश्चित् पन्था] कोई मार्ग तो [न च मुष्यते] नथी लूंटातो, मार्गमां चालनार माणस ज लूंटाय छे; [तथा] तेवी रीते [जीवे] जीवमां [कर्मणां नोकर्मणां च] कर्मोनो अने नोकर्मोनो [वर्णम्] वर्ण [द्रष्ट्वा] देखीने [जीवस्य] जीवनो [एषः वर्णः] आ वर्ण छे’ एम [जिनैः] जिनदेवोए [व्यवहारतः] व्यवहारथी [उक्तः] कह्युं छे. [गन्धरसस्पर्शरूपाणि] ए प्रमाणे गंध, रस, स्पर्श, रूप, [देहः संस्थानादयः] देह, संस्थान आदि [ये च सर्वे] जे सर्व छे, [व्यवहारस्य] ते सर्व व्यवहारथी [निश्चयद्रष्टारः] निश्चयना देखनारा [व्यपदिशन्ति] कहे छे.

टीकाः– जेम व्यवहारी लोको, मार्गे नीकळेला कोई सार्थने (संघने) लूंटातो देखीने,

सार्थनी मार्गमां स्थिति होवाथी तेनो उपचार करीने, ‘आ मार्ग लूंटाय छे’ एम कहे छे, तोपण निश्चयथी जोवामां आवे तो, जे आकाशना अमुक भागस्वरूप छे एवो मार्ग तो कोई लूंटातो नथी; तेवी रीते भगवान अर्हंतदेवो, जीवमां बंधपर्यायथी स्थिति पामेलो (रहेलो) कर्म अने नोकर्मनो वर्ण देखीने, (कर्म-नोकर्मना) वर्णनी (बंधपर्यायथी) जीवमां स्थिति होवाथी तेनो उपचार करीने, ‘जीवनो आ वर्ण छे’ एम व्यवहारथी जणावे छे, तोपण निश्चयथी, सदाय जेनो अमूर्त स्वभाव छे अने जे उपयोगगुण वडे अन्यद्रव्योथी अधिक छे एवा जीवनो कोई पण वर्ण नथी. ए प्रमाणे गंध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान, संहनन, राग, द्वेष, मोह, प्रत्यय, कर्म, नोकर्म, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, अध्यात्मस्थान, अनुभागस्थान, योगस्थान, बंधस्थान, उदयस्थान, मार्गणास्थान, स्थितिबंधस्थान, संकलेशस्थान, विशुद्धिस्थान, संयमलब्धिस्थान, जीवस्थान अने गुणस्थान-ए बधाय (भावो) व्यवहारथी अर्हंतदेवो जीवना कहे छे, तोपण निश्चयथी, सदाय जेनो अमूर्त स्वभाव छे अने जे उपयोगगुणवडे अन्यथी अधिक छे एवा जीवना ते सर्व नथी, कारण के ए वर्णादि भावोने अने जीवने तादात्म्यलक्षण संबंधनो अभाव छे.

भावार्थः– आ वर्णथी मांडीने गुणस्थान पर्यंत भावो सिद्धांतमां जीवना कह्या छे ते

व्यवहारनयथी कह्या छे; निश्चयनयथी तेओ जीवना नथी कारण के जीव तो परमार्थे उपयोगस्वरूप छे.

अहीं एम जाणवुं के-पहेलां व्यवहारनयने असत्यार्थ कह्यो हतो त्यां एम न समजवुं के ते सर्वथा असत्यार्थ छे, कथंचित् असत्यार्थ जाणवो; कारण के ज्यारे एक द्रव्यने जुदुं, पर्यायोथी अभेदरूप, तेना असाधारण गुणमात्रने प्रधान करीने कहेवामां आवे त्यारे परस्पर द्रव्योनो निमित्तनैमित्तिकभाव तथा निमित्तथी थता पर्यायो-ते सर्व गौण थई जाय छे, एक