* गाथा प८ थी ६० *
कथं तर्हि व्यवहारोऽविरोधक इति चेत्–
पंथे मुस्संतं पस्सिदूण लोगा भणंति ववहारी।
मुस्सदि एसो पंथो ण य पंथो मुस्सदे कोई।। ५८ ।।
मुस्सदि एसो पंथो ण य पंथो मुस्सदे कोई।। ५८ ।।
तह जीवे कम्माणं णोकम्माणं च पस्सिदुं वण्णं।
जीवस्स एस वण्णो जिणेहिं ववहारदो उत्तो।। ५९ ।।
जीवस्स एस वण्णो जिणेहिं ववहारदो उत्तो।। ५९ ।।
गंधरसफासरूवा देहो संठाणमाइया जे य।
सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति।। ६० ।।
सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति।। ६० ।।
पथि मुष्यमाणं द्रष्टवा लोका भणन्ति व्यवहारिणः।
मुष्यते एष पन्था न च पन्था मुष्यते कश्चित्।। ५८ ।।
मुष्यते एष पन्था न च पन्था मुष्यते कश्चित्।। ५८ ।।
तथा जीवे कर्मणां नोकर्मणां च द्रष्टवा वर्णम्।
जीवस्यैष वर्णो जिनैर्व्यवहारत उक्तः।। ५९ ।।
जीवस्यैष वर्णो जिनैर्व्यवहारत उक्तः।। ५९ ।।
गन्धरसस्पर्शरूपाणि देहः संस्थानादयो ये च।
सर्वे व्यवहारस्य च निश्चयद्रष्टारो व्यपदिशन्ति।। ६० ।।
सर्वे व्यवहारस्य च निश्चयद्रष्टारो व्यपदिशन्ति।। ६० ।।
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हवे वळी पूछे छे के आ रीते तो व्यवहारनय अने निश्चयनयने विरोध आवे छे; अविरोध कई रीते कहेवामां आवे छे? तेनो उत्तर द्रष्टांत द्वारा त्रण गाथाओमां कहे छेः-
देखी लूंटातुं पंथमां को, ‘पंथ आ लूंटाय छे’–
बोले जनो व्यवहारी, पण नहि पंथ को लूंटाय छे; प८.
बोले जनो व्यवहारी, पण नहि पंथ को लूंटाय छे; प८.
एम वर्ण देखी जीवमां कर्मो अने नोकर्मनो,
भाखे जिनो व्यवहारथी ‘आ वर्ण छे आ जीवनो’. प९.
भाखे जिनो व्यवहारथी ‘आ वर्ण छे आ जीवनो’. प९.
एम गंध, रस, रूप, स्पर्श ने संस्थान, देहादिक जे,
निश्चय तणा द्रष्टा बधुं व्यवहारथी ते वर्णवे. ६०.
निश्चय तणा द्रष्टा बधुं व्यवहारथी ते वर्णवे. ६०.
गाथार्थः– [पथि मुष्यमाणं] जेम मार्गमां चालनारने लूंटातो [द्रष्ट्वा]