१३६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ छे केमके ते मूळ वस्तुभूत नथी. वस्तुना अंतरमां-स्वरूपमां विकारी भावो छे ज नहि. माटे तेओ जूठा छे. परंतु ए भेदो वास्तविकपणे जूठा कयारे थाय? के ज्यारे ज्ञाननी पर्याय स्वरूप तरफ वळी अंतर्निमग्न थाय त्यारे.
पर्याय तरीके तो ए भेदो छे, पण आत्माना चैतन्यस्वरूपमां तेओ नथी. तेथी वर्णादि भावो व्यवहारथी छे, पण निश्चयथी आत्माना नथी एवो यथार्थ स्याद्वाद छे. ते प्रमाणे निमित्त छे, पण निमित्तथी (उपादानमां) कार्य थतुं नथी ए स्याद्वाद छे. बनारसीदासे कह्युं छे ने के- ‘नहि निमित्तको दाव.’-निमित्तनो कदी दाव आवतो ज नथी. कार्तिकेय स्वामीए एक गाथामां कह्युं छे के-पूर्व-परिणामयुक्त द्रव्य ते कारण छे अने उत्तरपरिणामयुक्त द्रव्य ते कार्य छे तो पछी निमित्त (पर द्रव्य) कारण छे ए कयां रह्युं? व्यवहारथी कहेवुं होय तो पूर्व परिणाम कारण अने उत्तर परिणाम कार्य कहेवाय. तथा निश्चयथी जोईए तो, ए ज परिणाम कारण अने ए ज परिणाम कार्य छे.