Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-प७ ] [ १३प परिणति-पर्यायमां छे. रागनी क्रिया तो द्रव्य-गुणमां नथी. पण निर्मळतानी क्रिया पण द्रव्य- गुणमां नथी. क्रिया पर्यायमां छे, तेथी जे पर्याय अंदर द्रव्यस्वभाव तरफ वळे छे ते पर्याय एम नक्की करे छे के उपयोगगुण वडे आत्मा सर्व परद्रव्योथी भिन्न छे, अधिक छे. आवी माखण-माखणनी वात छे.

अज्ञानीने तो बहारनी हो-हामांथी धर्म प्राप्त करवो छे. थोडुं दान आपे के एकाद मंदिर बनावी भगवाननी प्रतिष्ठा करे एटले जाणे के धर्म थई गयो. तेने अहीं कहे छे के-भाई! बहारनुं तो थवा काळे त्यां (बहार) थाय छे, एनाथी तारो भाव जुदो छे अने वर्तमानमां तने थयेला विकल्प-रागथी तुं भगवान जुदो छो. अहाहा! पोतानुं लक्षण जे जाणक उपयोग छे एवा गुण वडे आत्मा व्याप्त होवाने लीधे ते सर्वद्रव्योथी अधिकपणे प्रतीत थाय छे. आत्माने वर्णादि साथे अवगाह संबंध छे, पण अग्नि-उष्णतानी जेम तादात्म्यम संबंध नथी. अहाहा! आ जे व्यवहाररत्नत्रयनो राग छे तेनी साथे आत्माने अवगाह संबंध छे पण तादात्म्य संबंध नथी. तेथी स्वलक्षणभूत ज्ञान-गुणथी जोवामां आवे तो आत्मा वर्णादिथी अने व्यवहाररत्नत्रयना रागथी अधिक एटले भिन्न जणाय छे. पर्याय ज्यां स्वभाव तरफ ढळी त्यां स्वभावनुं, गुणस्थान आदि भेदथी भिन्नपणुं भासे छे. आ प्रमाणे रागादि साथे आत्माने तादात्म्यपणुं नहि होवाथी निश्चयथी रागादि सर्व पुद्गलना परिणाम छे, परंतु आत्माना परिणाम नथी. भाई! आ कोई धारी राखे एनी वात नथी, पण अनुभव करे एनी वात छे.

अहीं बे प्रकारना संबंधनी वात करी छे. (१) अवगाह संबंध. (२) तादात्म्य संबंध. भगवान आत्माने रागादि साथे अवगाह संबंध छे, पण आत्माने जेवो ज्ञानगुण साथे तादात्म्य संबंध छे तेवो रागादि साथे संबंध नथी. बीजी रीते कहीए तो आत्माने रागादि साथे एकरूपता नथी अर्थात् बन्ने वच्चे सांध-संधि छे. तेथी ज्ञाननी पर्यायने स्वभावमां वाळतां बन्ने जुदा पडी जाय छे. आ दया, दान, व्रत, आदि जे विकल्पो छे एनी साथे आत्माने एक्ता नथी, संधि छे. माटे ज्ञाननी पर्याय ज्यां स्वरूपनुं लक्ष करी अंदर ढळी त्यां ते विकल्पो भिन्न पडी जाय छे. पर्यायमां आवो अनुभव थवो ते सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान छे.

आ प्रमाणे वर्णादिथी मांडीने गुणस्थान पर्यंतना सर्व भावो पुद्गलना परिणामो छे पण आत्माना नथी. व्यवहारथी पर्यायनये तेओ जीवना छे छतां निश्चयथी द्रव्यनये तेओ जीवना नथी एवो स्याद्वाद छे. आनुं नाम स्याद्वाद छे. व्यवहारनये जीवना छे अने निश्चयथी पण जीवना छे-ए स्याद्वाद नथी. तथा व्यवहार जूठो छे कारण के ते वस्तुमां नथी. कळशटीकामां अनेक स्थान पर व्यवहारने जूठो कह्यो छे. सत्य वस्तु तो त्रिकाळी शुद्ध चित्स्वरूप आत्मा छे. एनी अपेक्षाए आ सर्व व्यवहारना भावो जूठा