१३४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
शास्त्रमां आवे छे के-जीवनुं उपयोगलक्षण नित्य छे. पण नित्य उपयोग-लक्षणनो निर्णय करनार पर्याय छे. उपयोग अर्थात् जाणवाना स्वभाव वडे भगवान आत्मा रागादि भावोथी भिन्न छे, जुदो छे. परंतु रागादिथी आत्माने जुदो करनार गुण नथी, पण अनुभूतिनी पर्याय छे. ४९ मी गाथामां अव्यक्तना बोलमां आव्युं हतुं के-‘चित्सामान्यमां चैतन्यनी सर्व व्यक्तिओ निमग्न (अंतर्भूत) छे माटे अव्यक्त छे.’ भगवान आत्मामां पर्यायो अंतर्लीन छे. परंतु पर्यायो जेमां अंतर्लीन छे एवा अव्यक्तनो निर्णय तो व्यक्त पर्याय ज करे छे.
अहीं कहे छे के दूध अने जळ एक जग्याए परस्पर व्यापीने अवगाह संबंध होवा छतां, दूधना गुणथी-लक्षणथी जोईए तो जळथी दूध जूदुं छे एम जणाय छे. तेम आत्मा अने पुण्य, पाप, दया, दान, व्रत, आदिना विकल्पो अवगाह संबंधनी अपेक्षाए एक जग्याए व्यापेला होवा छतां, स्वभावनी शक्तिथी जोईए तो, आत्मा ज्ञानगुण वडे रागादिथी जुदो छे, अधिक छे, एम जणाय छे. रागथी भिन्न पडीने परिणति ज्यारे ज्ञायक उपर लक्ष मांडे छे त्यारे ते उद्धत (स्वतंत्र) परिणति वडे आत्मा रागथी भिन्न खरेखर अनुभवाय छे. आ रागथी-परथी भिन्न-अधिक छुं एवो अनुभव गुणमां कयां छे? एवो अनुभव तो पर्यायमां छे.
जेम द्रष्टांतमां ‘स्वलक्षणभूत दूधपणुं-गुण’ एम लीधुं हतुं तेम सिद्धांतमां ‘स्वलक्षणभूत उपयोग-गुण एम लीधुं छे. आ आत्मा अने पुण्य-पाप, गुणस्थान आदि भावो एक अवगाहनाए व्यापेला होवा छतां, स्वलक्षणभूत उपयोग-गुणथी जोतां, अर्थात् परिणति अंतरमां ढळे छे त्यारे, ते भावो ज्ञानथी-आत्माथी भिन्न जणाय छे. तेथी आ सर्व अन्य भावो पर्यायमां छे छतां द्रव्यमां नथी एम कहे छे. आवी वातो छे! आम आत्मा सर्व द्रव्योथी अने सर्व भावोथी अधिकपणे प्रतीत थाय छे.
जेम दूधना मीठाश गुण वडे, दूध तथा जळ एक जग्याए व्यापेलां होवा छतां, दूध जळथी भिन्न जणाय छे. तेम भगवान आत्मा ज्ञान-उपयोग गुण वडे, स्वभावभाव वडे परथी भिन्न देखाय छे. पण ते जाणे छे तो पर्याय. अर्थात् आत्मा परथी जुदो छे एवो निर्णय पर्याय करे छे. आ ज्ञानगुण वडे भगवान आत्मा परथी जुदो छे एवो जेने अनुभूतिनी पर्यायमां निर्णय थयो छे तेने आत्मा जुदो छे एम खरेखर जाणवामां आवे छे, कारण के त्रिकाळ जे उपयोग गुण छे एमां जाणवुं कयां थाय छे? द्रव्य-गुण तो ध्रुव, कूटस्थ छे, अक्रिय छे. एमां कोई क्रिया, परिणमन, बदलवुं नथी. क्रिया तो