१४० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
आ कर्म, नोकर्म अने रागादि बंधपर्यायथी जीवमां स्थिति पामेल छे. एटले के ए कर्म अने रागादिनो संबंध पर्यायमां एक समय पूरतो छे. वर्तमान पर्यायमां एक समय माटे कर्म अने रागनो संबंध छे. ते संबंध एक सयमनो ज छे. बीजे समये बीजो संबंध थाय छे, अने त्रीजे समये त्रीजो; पण ते एक समय पूरतो ज संबंध थाय छे. तेथी आटलो संबंध देखीने, जेम मार्ग लूंटातो नथी छतां मार्ग लूंटाय छे एम आरोपथी कहेवाय छे तेम, भगवान आत्माने कर्म अने रागादि नथी छतां व्यवहारथी ते आत्माने छे एम कहेवाय छे. निश्चयथी तो आत्मा सदाय अमूर्तस्वभावी अने उपयोगगुण वडे अन्यद्रव्योथी अधिक छे, जुदो छे. तेथी अमूर्तस्वभावी अने उपयोगगुण वडे अन्यद्रव्योथी अधिक एवा जीवने कोई पण वर्ण आदि नथी. निश्चयथी अंदर परमार्थ वस्तुने-चैतन्य ध्रुव प्रवाहने जोतां तेमां वर्ण आदि कांई नथी.
मार्ग तो मार्गमां छे, आकाशमां छे. ते मार्ग (आकाश) कांई लूंटाय छे? (ना). पण संघ जे थोडो काळ मार्गमां ऊभो छे ते काळे लूंटाय छे तेथी ‘मार्ग लूंटाय छे’ एम आरोपथी कह्युं छे. तेवी रीते भगवान आत्मा नित्यानंद प्रभु ज्ञायक ध्रुव एवो ने एवो छे. एनो-ध्रुव चैतन्यनो प्रवाह तो अनादि-अनंत एम ने एम ज छे. परंतु तेनी एक समयनी पर्यायमां राग तथा कर्मनो संबंध देखी, ते राग अने कर्म तेना छे एम व्यवहारथी कहेवामां आवे छे. परंतु मूळ चीजमां-आत्मामां तेओ निश्चयथी नथी. आत्माने अन्य कोई पण वस्तु साथे पर्यायमां एक समय पूरतो ज संबंध छे. शरीर, कर्म, राग, गुणस्थानना भेद इत्यादि साथे पण एक समय पूरतो ज संबंध छे. अहा! वस्तु तो वस्तुपणे त्रिकाळ छे. तेनी एक समयनी पर्यायमां वर्णादि साथे एक समय पूरतो संबंध देखी ते वर्णादि जीवना छे एम व्यवहारथी कहेवाय छे, छतां परमार्थे तेओ वस्तुभूत नहि होवाथी जीवना नथी.
जेवी रीते ‘जीवने वर्ण नथी’ एम कह्युं तेवी रीते गंध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान, संहनन, राग, द्वेष, मोह, मिथ्यात्व, प्रत्यय एटले आस्रव, कर्म, नोकर्म, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, अध्यात्मस्थान, अनुभागस्थान, योगस्थान, बंधस्थान, उदयस्थान, मार्गणास्थान, स्थितिबंधस्थान, संकलेशस्थान, विशुद्धिस्थान अने संयमलब्धिनां स्थान पण जीवने नथी. तथा पर्याप्त, अपर्याप्त, संज्ञी, असंज्ञी आदि जे जीवस्थान छे ते जीवने नथी, पहेलां २९ बोल द्वारा जे भावो कह्या ते सघळाय एक समय पूरता जीवनी पर्यायमां छे, पण त्रिकाळी ध्रुव भगवान आत्मामां तेओ नथी. भगवान आत्मा तो चैतन्यना ध्रुव प्रवाहे ध्रुव-ध्रुव-ध्रुव एम ने एम ज अनादिअनंत रहेलो छे. तेने आ बधा भावो साथे पर्यायमां एक समय पूरतो ज जे संबंध छे ते देखीने तेओ जीवना छे एम अर्हंतदेवो व्यवहारथी कहे छे. तोपण निश्चयथी त्रिकाळी द्रव्यस्वभावनी अपेक्षाए तेओ जीवना छे ज नहि.