समयसार गाथा-प८ थी ६० ] [ १४९ अनादिकाळना मोटा अविवेकना नाटकमां अथवा नाचमां वर्णादिमान पुद्गल ज नाचे छे.’ जीवद्रव्यने एकला ध्रुव चैतन्यमात्र स्वभावथी जोईए तो ते एक-एकलुं ज छे. ए जीवद्रव्य एकलुं छे ते केम नाचे? भगवान आत्मानो तो कांई नाच नथी. ए बधी पर्यायोमां एक पुद्गलनो ज नाच छे. त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यनी अपेक्षाए ए सघळा अन्य भावोमां एक पुद्गल ज नाचे छे-एम कह्युं छे. आ प्रमाणे आवो भगवान जिनदेवनो उपदेश स्याद्वादरूप छे, अने ते प्रमाणे समज्ये ज सम्यग्ज्ञान छे. जे अपेक्षाए रागादि द्रव्यमां नथी अने जे अपेक्षाए तेओ पर्यायमां छे-एम जे उपदेश कर्यो छे ते रीते यथार्थ जाणवुं जोईए. जिनदेवना उपदेशमां तो अपेक्षाथी कथन छे. माटे ते रीते समजे तो ज सम्यग्ज्ञान छे.
वळी कहे छे के-सर्वथा एकांत ते मिथ्यात्व छे. राग एकांते पर चीज छे अने आत्मामां (पर्यायमां) नथी एम माने तो ते मिथ्या एकांत छे. तथा राग द्रव्यमां (ध्रुवमां) पण छे एम माने तो ते पण मिथ्यात्व छे.
प्रश्नः– राग जेटलो थाय छे ते नाश पामीने अंदर जाय छे ने? पर्यायनो व्यय तो थाय छे. तो ते व्यय थईने कयां जाय छे? जो अंदर जाय छे, तो विकार अंदर गयो के नहीं?
उत्तरः– भाई, विकार अंदर द्रव्यस्वभावमां नथी. पर्यायनो जे व्यय थयो छे ते पारिणामिकभावमां योग्यतारूप थई गयो छे. वर्तमानमां विकार जे प्रगट छे ते उदयभावरूप छे. परंतु ज्यारे तेनो व्यय थाय छे त्यारे ते पारिणामिकभावे थईने अंदर जाय छे. तेवी ज रीते क्षयोपशमभावनी पर्याय पण व्यय पामे छे अने बीजे समये बीजी पर्याय उत्पन्न थाय छे. परंतु पहेलांनो भाव व्यय पामीने गयो कयां? शुं ते अंदरमां क्षयोपशमभावे छे? ना, ते पारिणामिकभावे अंदर वस्तुमां छे.
अहीं कहे छे के सर्वथा एकांत समजे तो मिथ्यात्व छे. आथी कोई एम कहे के-बंधना मार्गथी (व्यवहाररत्नत्रयथी) पण मोक्ष थाय छे एम कहो; अन्यथा सर्वथा एकान्त थई जशे. तो ए वात यथार्थ नथी. भाई! मोक्षनो मार्ग सर्वथा निर्मळ परिणतिथी ज थाय छे अने एमां सर्वथा रागनी परिणति छे ज नहि एवो आ सम्यक् अनेकान्त छे. निश्चयथी जे शुद्धरत्नत्रयनी निर्मळ पर्याय छे ते ज मोक्षनो मार्ग छे. परंतु साथे रागने निमित्त-सहचर देखीने तेने व्यवहारथी मोक्षमार्ग कह्यो छे. परंतु तेथी ते राग, जे बंधनुं कारण छे ते, मोक्षनुं कारण थई जाय एम नथी. आ प्रमाणे जे अपेक्षाए कथन होय ते यथार्थ समजवुं जोईए.