Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ विभाव तरीके अथवा पर निमित्तना आश्रये थयेली दशा छे एम बताववुं होय त्यारे, उपादान ते स्व अने निमित्त ते पर-एम स्वपरथी उत्पन्न थयेली छे एम कहेवाय छे. विकार एकला स्वथी (स्वभावथी) उत्पन्न थाय एम बने नहि. पर उपर लक्ष जतां पर्यायमां विकार थाय छे. माटे विकारने स्वपरहेतुक कह्यो छे.

ज्यारे अहीं एम कह्युं के ए रागादि बधाय कर्मजन्य छे. ए तो ए भावो बधाय त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यमां नथी अने पर्यायमांथी काढी नाखवा योग्य छे माटे द्रव्यद्रष्टि कराववा एम कह्युं छे. परमात्मप्रकाशमां पण राग-द्वेषादिने कर्मजन्य कह्या छे, कारण के तेओ शुद्ध आत्मद्रव्यथी नीपजता नथी. भाई, अशुद्धता द्रव्यमां कयां छे के जेथी ते उत्पन्न थाय? पर्यायमां जे अशुद्धता थई छे ए तो पर्यायनुं लक्ष पर उपर गयुं छे तेथी थई छे. तेथी तो तेने स्वपर-हेतुथी थयेलो भाव कहे छे.

भाई! एक समयनी पर्यायमां राग-अशुद्धता जे थई छे ते सत् छे अने तेथी अहेतुक छे एम पंचास्तिकायमां सिद्ध कर्युं छे.

ए राग-अशुद्धता (स्वभावना लक्षे नहि पण) परना लक्षे थई छे एम बताववा तेने स्वपरहेतुक कही छे.

अने पछी त्रिकाळ वस्तुमां ए राग-अशुद्धता नथी तथा पर्यायमां एक समयना संबंधे छे ते काढी नाखवा जेवी छे ते अपेक्षाए तेने कर्मजन्य उपाधि कही छे.

अहा! एकवार कहे के अशुद्धता स्वयं पोताथी छे, पछी कहे के ते स्वपर हेतुथी छे अने वळी कहे के ते एकली कर्मजन्य छे!!! भाई, जे अपेक्षाए जयां जे कह्युं होय ते अपेक्षाए त्यां ते समजवुं जोईए. श्रीमदे पण कह्युं छे के-

ज्यां ज्यां जे जे योग्य छे, तहां समजवुं तेह;
त्यां त्यां ते ते आचरे, आत्मार्थी जन एह.

भाई! जे अपेक्षा होय ते अपेक्षाथी ज्ञान करवाने बदले बीजी अपेक्षा खोळवा-गोतवा जईश तो सत्य नहीं मळे.

उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तम् सत् एम सिद्ध करवुं होय त्यां रागनो-मिथ्यात्वादिनो उत्पाद द्रव्यनी पर्यायमां छे अने ते पोताथी सत् छे एम कहे छे. सत् छे माटे तेने पर कारकनी अपेक्षा नथी. ए ज वात पंचास्तिकायनी गाथा ६२मां कही छे के-जे संसारनी पर्याय छे ते परकारकनी अपेक्षा विना स्वतः जीवनी पर्याय छे. ते कांई परथी थई छे एम नथी.

हवे ते मिथ्यात्वादिनो संसारभाव छे ते विभाव छे. अने विभाव छे ते स्वरूपना लक्षे न

थाय, परन्तु परना लक्षे ज थाय. तेथी तेने स्वपरहेतुक कहेवामां आवे छे. तथा आ गाथामां अने परमात्मप्रकाशमां ते बधाय भावोने पुद्गलना कह्या छे. कळश ४४मां आवे छे के-‘आ