Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 665 of 4199

 

समयसार गाथा-प८ थी ६० ] [ १४७

समाधानः– भाई! सम्यग्दर्शननो विषय त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य छे. अहाहा! त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यने जेणे द्रष्टिमां लीधुं छे एवा सम्यग्द्रष्टिने अशुद्धता के दुःख छे ज नहि. द्रष्टि अने द्रष्टिना विषयमां अशुद्धता थाय एवी कोई शक्ति ज नथी. द्रष्टि पण अशुद्ध थाय एम नथी तथा तेनो विषय जे त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य छे ते पण अशुद्ध थाय एवो तेनामां कोई गुण नथी. तेथी द्रष्टि अने द्रष्टिना विषयनी अपेक्षाए ज्ञानीने अशुद्धता अने दुःख नथी. परंतु ज्ञान वडे जुए त्यारे पर्यायमां ज्ञानीने तथा मुनिने पण किंचित् अशुद्धता छे, दुःख छे. ज्ञानीने राग छे अने तेनुं परिणमन पण छे. ते परिणमननी अपेक्षाए ज्ञानी तेनो र्क्ता पण छे. ४७ नयोमां पण आवे छे के-धर्मी जीवने पण रागनुं परिणमन छे अने तेटलुं दुःख पण छे. तथा ते रागनो र्क्ता अने भोक्ता पण ते ज्ञानी छे. भाई! अहीं तो अंशे अंशने जोवानो छे. कोई एकांते मानी ले के धर्मीने राग-द्वेष-दुःख होय ज नहि तो एम नथी. त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य अने तेनी द्रष्टिनी अपेक्षाए ते वात यथार्थ छे. पण पर्यायमां? अहा! छठ्ठा गुणस्थाने वर्तता मुनि पण (समयसार कळश ३ मां) एम कहे छे के अमने हजु कलुषितता छे. अहा! एक बाजु एम कहे के समक्तिीने अशुद्धता न होय, तेनुं परिणमन अशुद्ध न होय अने बीजी बाजु छठ्ठा गुणस्थानवर्ती आचार्य एम कहे के अमने हजु अशुद्धतानुं परिणमन छे अने तेथी तेटलुं दुःखनुं वेदन पण छे!! भाई! समक्तिीने द्रष्टिनी साथे जे ज्ञान थयुं छे ते त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यने जाणे छे अने वर्तमान पर्यायमां रागनुं परिणमन जेटलुं छे तेने पण जाणे छे. अशुद्धतानुं- रागनुं जे परिणमन छे तेनो हुं र्क्ता छुं, कर्मने लईने ते थाय छे एम नथी; तथा परिणमनमां मने बीलकुल राग ज नथी एम पण नथी-आवुं ज्ञानी यथार्थ जाणे छे.

अहीं कहे छे के-जो पर्यायमां रागादि नथी एम कोई माने तो रागना अभाव करवाना पुरुषार्थनो पण लोप थाय छे. कारण के जो पर्यायमां राग नथी तो तेना नाशनो उपाय पण पर्यायमां सिद्ध थतो नथी.

पंचास्तिकायनी ६२ मी गाथामां कह्युं छे के-विकारनुं परिणमन जीवना अस्तित्वमां छे अने ते पोताने कारणे छे. विकारनुं षट्कारकरूप परिणमन पोताथी छे, तेने परकारकनी अपेक्षा नथी. राग-विकार छे ते अस्ति छे अने ते विकार, विकारने कारणे छे, द्रव्य-गुणना कारणे नहि तेम ज पर निमित्तने कारण पण नहि. ए पंचास्तिकाय शास्त्र छे. तेथी त्यां जीवास्तिकायनुं- द्रव्य-गुण-पर्यायनुं स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध कर्युं छे. जीवनी पर्यायमां जे विकार थाय छे ते परथी निरपेक्ष स्वतःसिद्ध, अहेतुकपणे थाय छे अने ते जीवना अस्तित्वमां थाय छे.

प्रश्नः– विकार स्वपर-हेतुक छे एम शास्त्रोमां आवे छे ने?

उत्तरः– ए तो एकला स्वथी ज (शुद्ध द्रव्यथी) विकार थाय नहि एम बताववा विकारनी उत्पत्तिमां उपादान अने निमित्त एम बे हेतु त्यां सिद्ध कर्या छे. विकारने ज्यारे