१४६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
त्रिकाळी भगवान आत्मा निर्विकल्प सम्यग्दर्शन अने समाधिथी जणाय एवो छे. सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारमां आवे छे के भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यघन छे. तेनुं अल्प निर्मळ परिणमन ते उपाय छे अने तेनुं पूर्ण निर्मळ परिणमन ते उपेय छे, फळ छे. त्यां एम नथी कह्युं के मंदरागनो भाव ते उपाय छे. तथा ज्यां बीजे ठेकाणे तेने (मंदरागने) उपाय कह्यो छे त्यां राग छे एटलुं जणाववा माटे कह्युं छे. अहाहा! वस्तु ज्ञानानंदस्वभावी त्रिकाळी ज्ञायक भगवान छे. तेनी दशामां द्रव्यस्वभावनुं अपूर्ण वीतरागी परिणमन ते उपाय छे अने पूर्ण वीतरागी परिणमन ते उपेय एटले फळ छे. स्वभाव-परिणमननी ज अपूर्णता अने पूर्णतामां उपाय अने उपेय समाय छे. राग-व्यवहार ते उपाय छे एम नथी. आवी वात झीणी पडे, पण मार्ग तो आ ज छे, बापु! आ शुद्ध चिदानंदघन वस्तु जे आत्मा तेनुं अधूरुं शुद्ध परिणमन ते उपाय-कारण-मार्ग छे अने तेनुं परिपूर्ण शुद्ध परिणमन ते उपेय-फळ छे. परंतु व्यवहाररत्नत्रय उपाय-कारण छे एम नथी. अहीं तो व्यवहार (भेद, पर्याय, आदि) छे एम सिद्ध करवुं छे. परंतु मंदराग जे व्यवहारथी, व्यवहार मोक्षमार्ग कहेवाय छे ते निश्चयनुं कारण छे एम सिद्ध नथी करवुं. (अने एम छे पण नहि).
आत्मा जे त्रिकाळी भगवान ध्रुव, ध्रुव, ध्रुव एवुं ध्रुवपद-निजपद छे ते अनादि अनंत शुद्ध ज्ञायकभावपणे छे. तेने अने कर्मने निमित्त-नैमित्तिक संबंध नथी. अर्थात् वस्तु जे शुद्ध द्रव्य छे ते नैमित्तिक अने कर्म निमित्त एम नथी. परंतु वस्तुनी विकारी पर्याय ते नैमित्तिक अने कर्म निमित्त-एवो व्यवहार संबंध पर्यायमां छे. अहीं शुद्धनयनी द्रष्टिथी कथन छे तेथी आ सर्व भावोने सिद्धांतमां जीवना कह्या छे ते व्यवहारनयथी कह्या छे. ते भावो व्यवहारथी अस्ति छे अने ते व्यवहारनयनो विषय छे. कर्म ते निमित्त अने रागादिनुं थवुं ते नैमित्तिक एम निमित्त-नैमित्तिकभावनी द्रष्टिथी जोवामां आवे तो ते व्यवहार कथंचित् सत्यार्थ छे एम कही शकाय छे. राग, विकार, अशुद्धता, मलिनभाव, उदयभाव आदि जीवमां छे एम व्यवहारथी कही शकाय छे. परंतु त्रिकाळी शुद्ध चैतन्यस्वरूप द्रव्यमां ते नथी ते अपेक्षाए ते जूठा-असत्यार्थ छे. आ प्रमाणे व्यवहार कथंचित् सत्यार्थ अने कथंचित् असत्यार्थ छे. जो व्यवहारने सर्वथा असत्यार्थ ज कहेवामां आवे तो व्यवहारनो लोप थई जाय अने तेथी परमार्थनो पण लोप थई जाय. कारण के पर्यायमां जो रागादि नथी, पुण्य-पापनुं बंधन नथी तो रागनो जेमां अभाव करवानो छे तेवो मोक्षमार्ग अने मोक्ष पण नथी. अहीं तो व्यवहार छे एटलुं ज सिद्ध करवुं छे. पण ते व्यवहार मोक्षमार्ग छे एम सिद्ध नथी करवुं. व्यवहार मोक्षमार्ग तो राग छे अने ते त्रिकाळी द्रव्यनी अपेक्षाए तो छे ज नहीं. पर्यायमां राग छे एटलुं सत्यार्थ छे, परंतु ते व्यवहार छे-एटलो राग छे-माटे निश्चय पमाय छे एम नथी.
प्रश्नः– शास्त्रमां आवे छे के समक्तिीने दुःख छे ज नहि, अशुद्धता छे ज नहि. तो ए केवी रीते छे?