Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-प८ थी ६० ] [ १४प अर्थात् बंधमार्गनी पर्याय मोक्षना मार्गने प्रगट करे छे एम न मानवुं. व्यवहार, निश्चयनुं कारण छे एम अहीं सिद्ध नथी करवुं. अहीं तो व्यवहार छे एटले के पर्याय छे, बंधनी पर्याय छे तेम ज मोक्षमार्ग अने मोक्षनी पर्याय छे एम सिद्ध करवुं छे. अहीं व्यवहार एटले रागनी नहीं पण पर्यायनी (समुच्चय) वात छे.

अहीं कहे छे के पहेलां जे व्यवहारनयने जूठो कह्यो छे तेनो अर्थ ए छे के पर्याय- संसार के मोक्ष-द्रव्यमां नथी. द्रव्यनी अपेक्षाए व्यवहारनयने जूठो कह्यो छे. तेथी करीने ते सर्वथा नथी एम न समजवुं. वर्तमान पर्यायनी अपेक्षाए तो ए व्यवहारनय छे. तेथी ए कथंचित् सत्यार्थ छे. संसार छे, उदयभाव छे, एम जे भावो २९ बोल द्वारा कह्या छे ते सघळाय पर्यायपणे छे. एक समयना संबंधवाळी पर्याय अस्तिपणे छे. परंतु आनंदकंद नित्यानंद प्रभु ध्रुव जे अनादि-अनंत चैतन्यप्रवाह छे तेनी द्रष्टिमां ते भेदो प्रतिभासता नथी तेथी तेओ द्रव्यमां नथी एम कथंचित् निषेध करवामां आव्यो छे. जो ते भेद-भावोने, के जे पर्यायमां छे तेमने, द्रव्यना छे एम कहेवुं होय तो व्यवहारनयथी कही शकाय छे; निश्चयथी तेओ द्रव्यमां नथी. आम निश्चय-व्यवहार यथार्थ समजवा जोईए. बीजी रीते समजे तो भ्रम ज उत्पन्न थाय.

प्रश्नः– व्यवहार सत्य छे के नहीं? जो व्यवहार सत्य छे तो व्यवहार मोक्षमार्ग सत्य छे के नहीं? अने तेथी ते निश्चय मोक्षमार्गनुं कारण छे के नहीं?

उत्तरः– भाई! एम नथी. अहीं तो एम कहे छे के-पर्यायमां एक समय पूरतो बंध वगेरे छे ते सत्य छे. आखी चीज प्रभु ध्रुव चैतन्यनुं दळ जे परमस्वभावभाव छे तेनी एक समयनी दशामां आ बधा भेदो छे माटे ‘छे’ एम कह्युं छे. परंतु ए त्रिकाळी ध्रुवनी द्रष्टिमां आवता नथी तेथी द्रव्यद्रष्टि कराववा ‘तेओ नथी’ एम निषेध कर्यो छे. तेओ त्रिकाळी सत्य नथी. छतां व्यवहारथी कहीए तो तेओ सत्य छे केमके तेओ वर्तमान पर्यायमां अस्ति छे. भाइ! जो व्यवहारनय छे तो तेनो विषय पण छे. तेथी तो कह्युं छे के व्यवहारने पण छोडीश नहि. एटले के व्यवहारनय नथी एम न मानीश. व्यवहारने जो नहि माने तो चोथुं पांचमुं आदि गुणस्थानो रहेशे नहि, तीर्थ-भेदो अने तीर्थफळ रहेशे नहि. पण तेथी करीने एवो अर्थ नथी के व्यवहारथी निश्चय पमाय छे. ए व्यवहारने लईने (व्यवहारना आश्रये) तीर्थ एटले सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र थाय छे एम नथी. अहीं कहे छे के-आ भेद-भावो त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यमां नथी ए निश्चय छे. परंतु तेओ एक समयनी पर्यायमां छे तेथी, द्रव्यमां छे एम कहेवामां आवे तो, व्यवहारनयथी कही शकाय छे. आवो नयविभाग छे.