Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ पर शुभ-अशुभ उपयोगोंसे परिणमन करके जीवन, मरण, शुभ, अशुभ, कर्मबंधको करता है, और शुद्धात्मानुभूतिके प्रगट होनेपर शुद्धोपयोगसे परिणत होकर मोक्षको करता है, तो भी शुद्ध पारिणामिक परमभावग्राहक शुद्धद्रव्यार्थिकनयकर न बंधका र्क्ता है, और न मोक्षका र्क्ता है. ऐसा कथन सुनकर शिष्यने प्रश्न किया कि-हे प्रभो, शुद्ध द्रव्यार्थिकस्वरूप शुद्धनिश्चयनयकर मोक्षका भी र्क्ता नहि, तो ऐसा समझना चाहिये कि-शुद्धनयकर मोक्ष ही नहीं है; जब मोक्ष नहि, तब मोक्षके लिये यत्न करना वृथा है.” आत्मामां बंधमोक्ष नथी तो पछी मोक्ष करवानो पुरुषार्थ वृथा छे. एनो उत्तर कहे छे-

“मोक्ष है वह बंधपूर्वक है, और बंध है वह शुद्धनिश्चयनयकर होता ही नहीं; इस कारण बंधके अभावरूप मोक्ष है वह भी शुद्धनिश्चयनयकर नहीं है. जो शुद्धनिश्चयनयसे बंध होता, तो हमेशा बंधा ही रहता, कभी बंधका अभाव न होता.” जुओ, व्यवहारनयथी- अशुद्धनयथी पर्यायमां बंध छे अने बंधना अभावपूर्वक मोक्षनो मार्ग तथा मोक्ष पण छे. परंतु ते बधुं व्यवहारनयथी छे. निश्चयनयथी तो बंध के मोक्ष नथी तथा बंध के मोक्षना कारणो पण नथी. अहा! जैनदर्शन खूब झीणुं छे. पर्यायमां बंध छे अने बंधना नाशनो उपाय पण छे. पण ते बधुं व्यवहार छे. मोक्षमार्गनी पर्याय पण व्यवहार छे. व्यवहाररत्नत्रयनो शुभभाव के जेने व्यवहार मोक्षमार्ग कहेवाय छे एनी आ वात नथी. पण वस्तु जे निर्मळ आनंदस्वरूप भगवान छे तेनी परिणतिमां शुद्धरत्नत्रयरूप मोक्षमार्गनी दशा थवी ते पर्याय होवाथी व्यवहार छे एम वात छे. व्यवहारे बंध छे अने व्यवहारे मोक्ष तथा मोक्षनो मार्ग छे. आ ज वात दोहा ६८ नी टीकामां आगळ द्रष्टांतथी कही छेः-

“कोई एक पुरुष सांकलसे बंध रहा है, और कोई एक पुरुष बंधरहित है; उनमेंसे जो पहले बंधा था, उसको तो ‘मुक्त’ ऐसा कहना ठीक मालूम पडता है, और दूसरा जो बंधा ही नहीं, उसको जो ‘आप छूट गये’ ऐसा कहा जाय तो वह क्रोध करे-कि मैं कब बंधा था सो यह मुझे ‘छूटा’ कहता है; बंधा होवे वह छूटे, इसलिये बंधेको तो मोक्ष कहना ठीक है, और बंधा ही न हो उसे छूटे कैसे कह सक्ते है? उसी प्रकार यह जीव शुद्धनिश्चयनयकर बंधा हुआ नहीं है. इस कारण मुक्त कहना ठीक नहि है. बंध भी व्यवहारनयकर और मुक्ति भी व्यवहारनयकर है; शुद्धनिश्चयनयकर न बंध है, न मोक्ष है और अशुद्धनयकर बंध है, इसलिये बंधके नाशका यत्न भी अवश्य करना चाहिये.” माटे पर्यायमां बंध, बंधना नाशनो उपाय मोक्षमार्ग अने मोक्ष ए सघळुं व्यवहारनयथी छे परंतु त्रिकाळी द्रव्यस्वभावमां ए नथी. आ प्रमाणे अपेक्षाथी यथार्थ समजवुं जोईए.

आ कथनथी एम न समजवुं के व्यवहार छे माटे ते व्यवहार, निश्चयनुं कारण छे.