समयसार गाथा-प८ थी ६० ] [ १४३
वस्तुने पर्यायोथी भिन्न अभेदरूप जुदी सिद्ध करवी होय त्यारे तेना असाधारण गुणमात्रने मुख्य करीने कहेवामां आवे छे. जीवने सिद्ध करवो होय त्यारे तेनो असाधारण उपयोगस्वरूप-ज्ञानस्वरूप-त्रिकाळ टक्तो जे गुण-तेने मुख्य करीने कहेवामां आवे छे. अने त्यारे परस्पर द्रव्योनो निमित्त-नैमित्तिकभाव अथवा निमित्तथी थती सर्व पर्यायो गौण थई जाय छे. अभाव थई जाय छे एम नहि, पण गौण थई जाय छे. अभेद वस्तुनी द्रष्टिमां एक समयनी पर्याय के भेद देखातां नथी. पहेलां सातमी गाथामां खुलासो आवी गयो छे के अभेदमां भेद देखातो नथी. तथा जो भेद देखवा जाय तो अभेदनी द्रष्टि रहेती नथी. तेथी अभेद वस्तुनी द्रष्टिए वस्तुमां भेद के पर्याय छे ज नहि एम कह्युं छे.
संसारपर्यायनी द्रष्टिथी जोतां संसार छे, उदयभाव छे. ‘संसार नथी’ एम जे कह्युं छे ए तो त्रिकाळी शुद्धद्रव्यनी अपेक्षाए कह्युं छे. त्रिकाळ स्वभावने अभेदद्रष्टिथी जोतां अर्थात् वर्तमान पर्यायने अभेद तरफ वाळतां, अभेदमां भेद देखाता नथी. तेथी भेदो त्रिकाळी द्रव्यमां- जीवमां नथी एम कह्युं छे. परंतु पर्यायमां छे तेथी कथंचित् (व्यवहारथी) सत् छे. तत्त्वार्थसूत्रमां पण उदयभावने, जीवतत्त्व कह्युं छे. पर्यायनयथी राग-पुण्य आदिने जीवतत्त्व कहेवाय छे. परंतु त्रिकाळी द्रव्यनी द्रष्टिमां ते पर्यायो गौण थई जाय छे.
संसार बीलकुल छे ज नहि, पर्यायमां अशुद्धता छे ज नहि एम कोई कहे तो ते भ्रान्ति छे. वर्तमानमां अशुद्धता छे तेने कोई ‘माया’ एटले ‘कांई नहि’ एम कहे छे. तेने अहीं कहे छे के त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यमां ए माया कांई नथी, पण वर्तमान पर्यायमां तो छे. ‘ब्रह्म सत्य, जगत् मिथ्या’ एम कहे छे; पण ते कई अपेक्षाए छे? पर्यायने गौण करीने, अभेदमां द्रष्टि करतां ते भेद अभेदमां नथी ए अपेक्षाए ‘ब्रह्म सत्य, जगत् मिथ्या’ छे. जो पर्याय, पर्यायनी अपेक्षाए पण नथी तो संसार ज नथी अने तेथी संसारना अभावपूर्वक मोक्ष पण नथी. तो कोई पर्याय सिद्ध नहि थाय.
परमात्मप्रकाशना ४३ अने ६८ मा दोहामां आवे छे के-जीवने बंध नथी अने जीवने मोक्ष नथी, तथा जीवने उत्पाद-व्यय नथी. दोहा ४३ नी टीकामां लख्युं छे के-“यद्यपि पर्यायार्थिकनयकर उत्पाद-व्ययकर सहित है, तो भी द्रव्यायार्थिकनयकर उत्पाद-व्ययरहित है, सदा ध्रुव ही है, वही परमात्मा निर्विकल्प समाधिके बलसे तीर्थंकरदेवोंने देहमें भी देख लिया है.” जुओ, व्यवहारनयथी जीव उत्पाद-व्यय सहित छे. वर्तमान पर्यायनी द्रष्टिए जोईए तो उत्पाद-व्यय छे, संसार छे, उदयभाव छे. परंतु द्रव्यार्थिकनयथी जोईए तो, वस्तुमां उत्पाद-व्यय नथी. त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यस्वभावमां उत्पाद-व्यय नथी. परंतु तेथी करीने वर्तमान पर्यायमां पण ते नथी एम नथी.
दोहा ६८ नी टीकामां लख्युं छे के-“यद्यपि यह आत्मा शुद्धात्मानुभूतिके अभाव होने