१४२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
आत्मानो सदाय अमूर्तस्वभाव छे अने ते उपयोगगुण वडे अन्यथी जुदो छे. माटे एक समयनी पर्यायमां अटकेला भावोथी ते जुदो छे. अर्थात् ते सर्व भावो जीवना नथी. अहा! निमित्त काढी नाख्युं, राग काढी नाख्यो अने भेदरूप पर्याय पण काढी नाखी. (अर्थात् ते जीवमां नथी). निमित्तनो संबंध एक समयनो, रागनो संबंध एक समयनो अने भेदरूप पर्यायनो संबंध पण एक समयनो आखो उकरडो-आ २९ बोल द्वारा कहेला भावोनो आखो उकरडो एक समयना संबंधे छे. आ संबंध पण पर्यायद्रष्टिथी जोतां छे; परंतु वस्तुद्रष्टिथी जोवामां आवे तो ते संबंध पण नथी केमके संयोग संबंध होवा छतां आत्माने ते सर्व भावो साथे तादात्म्य संबंध नथी. वर्णादि भावो अने जीवने तादात्म्य संबंधनो अभाव छे. काळो रंग आदि निमित्तभाव, विकार आदि रागभाव अने लब्धिस्थान आदि भेद-भाव-ते सर्व एक समयना भावो छे. तेमने अने आत्माने एक समयनी पर्यायमां संबंध होवाथी ते जीवना छे एम व्यवहारथी कह्युं छे तोपण ते भेदो, वस्तुद्रष्टिथी जोईए तो, द्रव्यनी साथे एकरूप थया ज नथी तेथी निश्चयथी ते जीवना नथी. आ प्रमाणे बे वात करी छे. व्यवहारथी आ भावो जीवना कह्या छे, पण निश्चयथी ते जीवना नथी. आवुं वस्तुनुं स्वरूप छे ते यथार्थ समजवुं जोईए.
आ वर्णथी मांडीने गुणस्थान पर्यंत भावो सिद्धांतमां जीवना कह्या छे ते व्यवहारनयथी कह्या छे. जुओ, भगवान आत्मा तो ज्ञानानंदस्वभावी शुद्ध चैतन्यघन वस्तु छे. तेनी वर्तमान पर्यायमां एक समय पूरतो आ वर्ण, राग, गुणस्थान आदि भेदनो संबंध छे. तेथी व्यवहारनयथी तेओ जीवना छे एम कह्युं छे केमके वर्तमान पर्यायमां तेमनुं अस्तित्व छे. परंतु निश्चयनयथी तेओ जीवना नथी कारण के जीव तो परमार्थे उपयोग स्वरूप छे. अहाहा! त्रिकाळी शुद्ध ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिथी जोतां ते गुणस्थान आदि भेदो साथे जीवने तद्रूपपणुं नथी, तादात्म्य नथी. तेथी ते सर्व भावो व्यवहारथी जीवना कह्या छे छतां निश्चयथी जीवना नथी. आवी वात छे.
अहीं एम जाणवुं के-पहेलां व्यवहारनयने असत्यार्थ कह्यो हतो त्यां एम न समजवुं के सर्वथा असत्यार्थ छे. शुं कहे छे? के आ राग, कर्मनो संबंध, गुणस्थान आदिना भेद जे छे ते पर्यायमां पण नथी एम न समजवुं. पर्यायपणे तो ते सर्व सत्यार्थ छे. त्रिकाळी द्रव्यनी अपेक्षाए एक समयनी दशाने असत्यार्थ कही छे, पण वर्तमान पर्यायनी अपेक्षाथी तो ते व्यवहार सत्य छे. माटे तेने (व्यवहारनयने) कथंचित् असत्यार्थ जाणवो.