Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-६१ ] [ १प१

भावार्थः– द्रव्यनी सर्व अवस्थाओने विषे द्रव्यमां जे भावो व्यापे ते भावो साथे

द्रव्यनो तादात्म्यसंबंध कहेवाय छे. पुद्गलनी सर्व अवस्थाओने विषे पुद्गलमां वर्णादिभावो व्यापे छे तेथी वर्णादिभावो साथे पुद्गलनो तादात्म्यसंबंध छे. संसार-अवस्थाने विषे जीवमां वर्णादिभावो कोई प्रकारे कही शकाय छे पण मोक्ष-अवस्थाने विषे जीवमां वर्णादिभावो सर्वथा नथी तेथी वर्णादिभावो साथे जीवनो तादात्म्यसंबंधी नथी ए न्याय छे.

* श्री समयसार गाथा–६१ मथाळुं *

हवे पूछे छे के-वर्णादिने आत्मा साथे त्रिकाळ संबंध केम नथी? आपे आत्मानी साथे तेमनो एक समयनी पर्याय पूरतो क्षणिक-अनित्य संबंध कह्यो. परंतु ते रंग, राग, गुणस्थान आदि साथे जीवने तादात्म्यसंबंध केम नथी? तेनो उत्तर आपे छेः-

* गाथा ६१ः टीका उपरनुं प्रवचन *

जे निश्चयथी बधीय अवस्थाओमां जे-स्वरूपपणाथी व्याप्त होय अने ते स्वरूपपणानी व्याप्तिथी रहित न होय, तेनो तेमनी साथे तादात्म्यलक्षण संबंध होय छे. जेमके ज्ञान साथे आत्माने जे संबंध छे ते तादात्म्यलक्षण संबंध छे, केमके आत्मानी सर्व अवस्थाओमां ते ज्ञानस्वरूपपणाथी व्याप्त छे अने ज्ञानस्वरूपपणानी व्याप्तिथी कयारेय रहित नथी. परंतु राग-उदयभाव साथे आत्माने तादात्म्यलक्षण संबंध नथी, केमके आत्मानी सर्व अवस्थाओमां उदयभाव व्याप्त होय अने कयारेय एनी व्याप्तिथी रहित न होय एम बनतुं नथी. संसार अवस्थामां राग-उदयभाव होय छे परंतु मोक्ष अवस्थामां ते सर्वथा नथी.

खरेखर, जे बधी दशाओमां जे स्वरूपथी व्याप्त एटले प्रसरेल होय अने ते स्वरूपथी कयारेय रहित न होय तेनो, तेमनी साथे तादात्म्यसंबंध होय छे. अर्थात् जे वस्तु सर्व अवस्थाओमां जे भावोस्वरूप होय अने कोई अवस्थामां ते भावोस्वरूपपणुं छोडे नहि ते वस्तुनो, ते भावो साथे तादात्म्यसंबंध छे. माटे जेनी बधीय अवस्थाओमां वर्णादि व्याप्त होय छे ते पुद्गलनी साथे वर्णादिने तादात्म्यसंबंध छे. काळो, रातो आदि जे वर्ण छे तेनुं पुद्गलनी साथे तादात्म्य छे, केमके ते विना पुद्गलनी कोई अवस्था होती नथी. तेवी रीते जे गुणस्थान आदि भेद पडया छे तेने पण पुद्गलनी साथे तादात्म्यसंबंध छे केमके पुद्गलना निमित्त विना ते भेदो होता नथी. अहो! आ समयसार तो केवुं अद्भुत शास्त्र छे! एमां आखाय ब्रह्मांडना भावो भर्या छे!

पुद्गलनी बधीय अवस्थाओमां ते वर्णादि व्याप्त होय छे अने तेनी व्याप्तिथी रहित पुद्गल होतुं नथी. माटे वर्णादिभावोनो पुद्गल साथे तादात्म्यसंबंध छे पण