Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१प२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ आत्मानी साथे नथी. तेओ संसार अवस्थामां कथंचित् व्याप्त-प्रसरेला छे तोपण मोक्ष अवस्थामां सर्वथा होता नथी. माटे तेओने जीवनी साथे तादात्म्यलक्षण संबंध नथी. संसार अवस्थामां राग-भेदथी व्याप्ति होय छे अने त्यारे वर्णादिरूपपणानी व्याप्तिथी रहित जीव होतो नथी, तोपण मोक्ष अवस्थामां सर्वथा व्याप्ति होती नथी. माटे जीवने ते वर्णादिभावो साथे तादात्म्यसंबंध नथी. अहाहा! वर्णादिमां एक पुद्गल ज नाचे छे. भगवान आत्मा तो ज्ञायकस्वरूपे शुद्ध चिद्रूप एकरूप छे. ते एमां केम नाचे? न ज नाचे एम कहे छे.

जोके संसार अवस्थामां कथंचित् वर्णादिनी व्याप्ति होय छे तोपण मोक्ष अवस्थामां तेओनी व्याप्ति होती नथी, व्याप्तिथी सर्वथा रहित होय छे. माटे वर्णादिभावो साथे जीवने कोईपण प्रकारे तादात्म्यलक्षण संबंध नथी. आत्माने ज्ञान, आनंद साथे तादात्म्यलक्षण संबंध छे कारण के कोईपण अवस्थामां ज्ञानानंदरूपपणुं आत्मामां न होय एम बनतुं नथी. परंतु आ वर्णादि भावो संसार अवस्थामां कथंचित् होय छे तोपण मोक्ष अवस्थामां तेओनो सर्वथा अभाव छे. माटे वर्णथी मांडीने गुणस्थान पर्यंतना सर्व भावो साथे जीवने तादात्म्यलक्षण संबंध नथी.

* गाथा ६१ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

द्रव्य जे वस्तु छे तेनी बधी अवस्थाओमां जे व्यापे तेने, ते द्रव्य साथे एकरूप संबंध कहेवाय छे. तेथी पुद्गलनी सर्व अवस्थाओमां जे वर्णादिभावो व्यापे छे तेने, पुद्गलनी साथे एकरूपतानो संबंध छे. गुणस्थान, जीवस्थान, मार्गणास्थान आदि भेदो पुद्गलना (कर्मना) निमित्ते पडे छे. अहाहा! आत्मा वस्तु त्रिकाळी ध्रुव अभेद एकरूप चैतन्यमात्र छे. तेने कारणे भेद केम पडे? माटे पुद्गलना निमित्तथी जे आ वर्णथी गुणस्थान पर्यंत भेद पडे छे ते, आत्मानी सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी पण पुद्गलनी सर्व अवस्थाओमां व्यापे छे. ते कारणे ते बधा पुद्गलनी साथे तादात्म्यलक्षण संबंध राखे छे. अखंड, अभेद एक चिन्मात्रस्वरूप वस्तुनी द्रष्टिए रंग-राग-जीवस्थान-मार्गणास्थान आदि भेदो पुद्गलनी साथे संबंध राखे छे. ज्यां ज्यां पुद्गल त्यां त्यां आ बधा भावो होय छे. माटे तेओने पुद्गलनी साथे तादात्म्य संबंध छे.

संसार अवस्थामां जीवमां रंग-राग आदि भावो कोई अपेक्षाए कही शकाय छे. परंतु मोक्ष अवस्थामां तेओ जीवमां सर्वथा नथी. तेथी वर्णादि साथे जीवने एकरूपतानो संबंध नथी. र्क्ता-कर्म अधिकारमां पण ए ज कह्युं छे के जे दया, दान, व्रत, भक्ति, आदिनो भाव थाय छे ते संयोगलक्षण छे. तेओ संयोगीभाव छे, स्वभावभाव नथी. माटे ए दया, दान, आदि भावो साथे आत्माने तादात्म्यसंबंध नथी. जेम बीजी संयोगी चीज छे तेम ते पण संयोगी चीज छे. माटे वर्णादि भावो साथे भगवान आत्माने एकरूपपणानो तादात्म्यलक्षण संबंध नथी ए न्याय छे.