Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-६१ ] [ १प३

अहाहा! आत्मा जे शुद्ध चिद्रूप वस्तु छे तेना तरफ ढळवाना भावमां तो आत्मा अभेदपणे द्रष्टिमां लेवा योग्य छे. ज्यारे आ बधा भेद-भावो, के जे पुद्गलना संबंधे थाय छे तेनी द्रष्टि छोडी देवा योग्य छे. माटे तो तेओ आत्माना नथी एम कह्युं छे. आ वर्णथी शरू करीने मार्गणास्थान-गुणस्थान आदि जे भेदो कह्या छे ते बधाय पुद्गलनी साथे संबंधवाळा छे. ज्यां ज्यां तेओ छे त्यां त्यां तेओने पुद्गलनी साथे संबंध छे. परंतु ज्यां ज्यां भगवान आत्मा छे त्यां त्यां तेओनी साथे संबंध छे नहीं, कारण के संसार अवस्थामां एक समय पूरतो पर्यायमां संबंध छे तोपण मोक्ष अवस्थामां सर्वथा संबंध नथी. तेथी धर्मीए एक अभेदस्वभावनी ज द्रष्टि करवी एम अभिप्राय छे. आ जीव-अजीव अधिकार छे. तेथी रंग, राग, पुण्य, पाप, गुणस्थान आदि सर्व भावोने अहीं अजीवमां नाख्या छे. आशय ए छे के अभेद एक चिन्मात्र अखंड वस्तुनो आश्रय करवो अर्थात् सम्यग्दर्शन अने निर्विकल्प शांतिनी पर्याय द्वारा ते एकने ज ग्रहण करवो, अनुभववो.

[प्रवचन नं. १०६ (शेष)-१०७ * दिनांक २प-६-७६ थी २६-६-७६]