समयसार गाथा-६२ ] [ १पप
हवे, जीवनुं वर्णादि साथे एटले रंग-राग-गुणस्थानादि साथे तादात्म्य-एकरूपपणुं छे एवो मिथ्या अभिप्राय कोई प्रगट करे तो तेमां दोष आवे छे एम गाथा द्वारा कहे छेः-
रागादि, जे पुद्गलना परिणाम छे ते, जो तुं तारा-जीवना छे एम मानीश तो जीव अने अजीवमां कांई भेद रहेतो नथी एम कहे छे. आ गाथा अने टीका सूक्ष्म छे. अरे, आखुंय समयसार ज सूक्ष्म छे अने एथीय सूक्ष्ममां सूक्ष्म भगवान आत्मा छे. चैतन्य भगवान अनंत गुणथी तादात्म्यस्वरूप महाप्रभु छे. तेना उपर द्रष्टि करवाथी धर्मनी-सम्यग्दर्शननी शरूआत थाय छे. अने ते सिवाय लाख, क्रोड के अनंत दया, दान, व्रत, भक्ति, पूजा आदि करे तोपण एथी सम्यग्दर्शन थतुं नथी. कारण के ए तो बधो राग छे अने ते रागने पुद्गलनी साथे तादात्म्य छे. ज्यां ज्यां पुद्गल त्यां त्यां रंग-राग-भेदादि होय छे, पण ज्यां ज्यां भगवान आत्मा त्यां त्यां रंग-राग-भेदादि होता नथी-एम अहीं कहे छे. अहो! शुं अलौकिक वात छे! तेने ध्यान दईने शांतिथी सांभळवी.
गुणस्थान आदि भेदो पर्यायमां उत्पन्न थया छे ते तेमनी उत्पत्तिनी ‘जन्मक्षण’ छे तेथी उत्पन्न थया छे, निमित्त वडे उत्पन्न थया छे एम नथी. ए भेदो जीवनी पर्यायमां पोताथी थया छे, परंतु आत्मामां-त्रिकाळी शुद्ध द्रव्यमां तेओ व्यापता नथी. ए रंग, राग, दया, दान, आदि भावोने पुद्गलनी साथे व्याप्ति छे. ज्यां पुद्गल व्यक्त थाय छे त्यां तेओ होय छे अने तेमां व्यापे छे. ज्यां एम कह्युं के पुण्य-पापना भाव पोतानी पर्यायमां थाय छे अने एनो र्क्ता-भोक्ता जीव छे त्यां तो एनुं ज्ञान कराववा ज्ञानप्रधान कथन कर्युं छे. ज्यारे अहीं द्रष्टिप्रधान वात छे. अहीं द्रष्टिनी प्रधानतामां, चाहे दया-दानना भाव हो के पंचमहाव्रतना पालनना भाव हो, ते बधाय पुद्गलनी साथे व्यापे छे एम कहे छे. दिगम्बर संतो सिवाय आवी वात कोईए कयांय करी नथी. अहो! दिगम्बर संतो केवळीना केडायतो छे. भगवान केवळीए जे दिव्यध्वनिमां कह्युं छे ते वात तेओ जगत समक्ष जाहेर करे छे. भगवान! एक वार जरा धीरजथी सांभळ. कहे छे के जे पुण्य-पापना भावनी प्रगटता-उत्पाद अने नाश- व्यय थाय छे ते बंधुय पुद्गलनी साथे व्यापे छे. ते उत्पाद-व्यय तारी-जीवनी साथे व्यापता नथी. अहा! शुं सूक्ष्म तत्त्व!
दया, दान, व्रत, स्वाध्याय, आदिनो राग; अरे, आ जे श्रवणनो राग आवे छे ते राग पण पुद्गलनी साथे उत्पन्न थाय छे अने पुद्गलमां व्यय पामे छे. ए