Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१प६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ उत्पाद-व्यय आत्माना नथी. द्रव्यस्वभावनुं अहीं वर्णन छे ने! जीवद्रव्यमां तो भेद छे ज नहीं. तेथी भेदने तथा रागादिने अजीव कह्या छे. देव-गुरु-शास्त्रनी श्रद्धानो राग, नवतत्त्वनी श्रद्धानो राग, शास्त्रज्ञाननो विकल्प के छ कायना जीवोनी रक्षानो राग ए बधाय, अहीं कहे छे के पुद्गलनी साथे उत्पन्न थाय छे अने पुद्गलमां नाश पामे छे; पोतानी-जीवनी साथे नहीं. अहाहा! केटलुं स्पष्ट कर्युं छे! आवी वात बीजे कयां छे? उत्पाद-व्यय, द्रव्यस्वभावमां- चिन्मात्रवस्तुमां तो छे नहीं. ते कारणे आ वर्णादि भावोनो आविर्भाव एटले के उत्पत्ति अने तिरोभाव एटले के नाश-व्यय जे थाय छे तेनुं पुद्गलनी साथे व्याप्तपणुं छे. अने तेथी पुद्गलनो वर्णादिकनी साथे तादात्म्य संबंध प्रसिद्ध थाय छे. अहाहा! ते वर्णादिक भावो पुद्गलनो विस्तार छे, पण भगवान चिदानंद प्रभुनो-आत्मानो ते विस्तार नथी. भगवान आत्मा तो चिदानंदमय अखंड एकरूप जिनस्वरूपी परमात्मा छे. आ वर्णादि अने रागादि भावो ते एनो विस्तार नथी. रागादिनी प्रसिद्धि ते भगवान जिनस्वरूप आत्मानी प्रसिद्धि नथी. अहाहा! शुं संतोए जाहेर कर्युं छे! सर्वज्ञदेवे जे कह्युं छे ते आ पंचम आराना श्रोताने संतो कहे छे.

कोई एम कहे के आ वात तो चोथा आरानी छे अने ते चोथा आराना जीवने समजवा माटे छे. तेने कहे छे के-भाई! आ तो पंचम आराना संतो पंचम आराना श्रोताने समजावी रह्या छे. प्रभु! तुं सांभळ तो खरो. पंचम आरामां पण तुं आत्मा छे के नहि? प्रभु! तुं अनंत गुणोथी भरेलो अभेद शुद्ध चैतन्यमात्र आत्मा छो ने! अत्यारे पण एवो ज छो ने! एटले तो कहे छे के जेने अभेद शुद्ध चिदानंद भगवाननी द्रष्टि करवी होय तेणे आ रागादि भावोने अजीवना परिणाम मानवा जोईशे. कोई एम कहे छे अत्यारे तो शुभजोग ज होय अने ते शुभजोग ज धर्मनुं कारण छे. तेने कहे छे-अरे प्रभु! शुं कहे छे तुं? अत्यारे शुभजोग ज होय एनो अर्थ ए थयो के अत्यारे धर्म ज न होय. भाई! तारी वात बराबर नथी केमके शुभजोग तो पुद्गलमां व्यापनारा भावो छे. ते पोताना छे अने लाभकारक छे एम मानवुं ए तो महामिथ्यात्व अने अज्ञान छे.

त्रणलोकना नाथ भगवान सीमंधरदेव अत्यारे परमात्मपणे महाविदेहमां बिराजे छे. भगवान कुंदकुंदाचार्य तेमनी पासे गया हता अने त्यां आठ दिवस रह्या हता. त्यांथी आवीने आ शास्त्रो बनाव्यां छे. तेमना पछी एक हजार वर्षे श्री अमृतचंद्राचार्य थया हता. तेमणे आ टीका बनावी छे. तेओ अहीं कहे छे के शुभाशुभ रागनां उत्पत्ति अने व्यय पुद्गल साथे संबंध राखे छे, भगवान आत्मा साथे नहि. जो तेनो संबंध आत्मा साथे होय तो रागादिनां उत्पाद-व्यय त्रणेकाळ आत्मामां थवां जोईए. पण एम तो बनतुं नथी. माटे ते रागादि आत्मानी चीज नथी. आ शरीर, मकान, पैसा, लक्ष्मी