द्रव्यमां अंतर्मग्न अस्तित्व, वस्तुत्व आदि गुणो -धर्मो अने तेमनी अवस्थाओने स्पर्शे छे, पण परना गुण-पर्यायोने स्पर्शतुं नथी. प्रवचनसार गाथा १७२ (टीका) मां अलिंग-ग्रहणना बोलमां तो एम आवे छे के द्रव्य पोताना गुणोना भेदने स्पर्शतुं नथी. त्यां अपेक्षा जुदी छे. त्यां तो एकला अभेदने सिद्ध करवो छे. भगवान आत्मा एकरूप ध्रुव जे द्रष्टिनो विषय छे ते गुणभेदने स्पर्शतो नथी, आलिंगन करतो नथी एम त्यां कह्युं छे. त्यां द्रव्यना अंदर अंदर बे अंश वच्चेनी वात छे. ज्यारे अहीं तो द्रव्य परने स्पर्शतुं नथी एवी छ द्रव्योनी मर्यादा सिद्ध करवानी वात छे. आ तो अलौकिक मार्ग छे, भाई!
पहेलां कह्युं के समयमां स्वसमय अने परसमय एम जे द्विविधपणुं आवे छे ते विसंवाद उपजावे छे. माटे तेनो (बे-पणानो) निषेध छे. (त्यां राग आत्मानुं स्वरूप नथी एम बताववुं हतुं)
नयचक्रमां कह्युं छे के प्रमाणमां पर्यायनो निषेध आवतो नथी माटे प्रमाण पूज्य नथी. एकलो स्वभाव ध्रुव अखंडानंद प्रभु द्रव्य ते निश्चयनयनो विषय छे. (तेमां पर्याय निषिद्ध छे) माटे निश्चयनय ते पूज्य छे.
त्यारे अहीं तो कहे छे के स्वपणे पोतानुं परिणमन करे ते स्वसमय छे -ते आत्मा छे. जे अपेक्षाथी वात करी होय ते अपेक्षा बराबर समजवी जोईए.
सर्व पदार्थो पोताना अंतर्मग्न अनंत धर्मोना समूहने चुंबे छे, स्पर्शे छे, अडे छे, आलिंगन करे छे तोपण तेओ परस्पर एकबीजाने स्पर्श करता नथी. अहाहा...! एक द्रव्य बीजा द्रव्यने स्पर्श करतुं नथी. आत्मा कर्मने स्पर्शतो नथी, कर्म आत्माने स्पर्शतुं नथी. एक परमाणु बीजा परमाणुने स्पर्शतो नथी. एकप्रदेशी परमाणुमां आकाश जे अनंत प्रदेशी सर्वव्यापी छे तेमां जेटला (अनंत) गुणोनी संख्या छे एटला ज गुणोनी संख्या छे. ते परमाणु द्रव्य पोताना अनंतधर्मोना चक्रने चुंबे छे तोपण ते बीजा परमाणुने स्पर्श करतो नथी. रूपी रूपीने स्पर्शतुं नथी; कारण के एकबीजानो एकबीजामां अभाव छे. अभावमां भावनुं स्पर्शवुं केम बने? तेओ (द्रव्यो) परस्पर स्पर्शता नथी एटले के एक परमाणु बीजा परमाणुने, परमाणु आकाशने, आकाश परमाणुने, परमाणु आत्माने, आत्मा परमाणुने, आत्मा आकाशने, आकाश आत्माने परस्पर अडता नथी. आकाश नामनो पदार्थ छे. तेमां अनंत परमाणु रह्या छे, त्यां ज निगोदना अनंत जीवो पडया छे, पण कहे छे के कोई कोईने अडता नथी. एक निगोदनो जीव बीजा जीवने स्पर्शतो नथी. आ तो गजब वात छे, भाई!