लोकमां रहेला सघळां पदार्थो एकत्वनिश्चयने प्राप्त होवाथी एटले के पोतामां रहेला पोताना स्वरूपने प्राप्त थता होवाथी सुंदरता शुद्धता पामे छे. ते कोई द्रव्योमां परनी अपेक्षा नथी. जीव अने पुद्गल बन्ने विभावपणे परिणमे छे छतां तेमना विभाव परिणमनमां परनी अपेक्षा नथी, स्वयं विभावपणे परिणमे छे. बीजा चार द्रव्योमां विभाव नथी, स्वभाव परिणमन छे. आ रीते सर्व द्रव्योनुं समयपणुं सिद्ध कर्युं.
अन्य प्रकारे माने तो एमां सर्व संकर आदि दोषो आवी पडे छे. ‘सर्वेषाम् युगपत् प्राप्ति स संकरः।’ बधा जड, चेतन द्रव्यो मळीने एक थई जाय ए संकर दोष छे. तथा ‘परस्पर विषयगमनं’ ते व्यतिकर दोष छे. चेतन जडमां अने जड चेतनमां आवे ते व्यतिकर दोष छे. ‘आलाप पद्धति’ मां आठ दोषोनुं वर्णन आवे छे. आ न्यायनो विषय छे. अहीं कहे छे के लोकमां छ द्रव्यो एकत्वनिश्चयगत होवाथी तेमने आ दोषो लागु पडता नथी. अन्यथा मानवा जतां दोषोनी आपत्ति आवे छे. वस्तुमां दोष नथी. विपरीत मान्यतामां दोष छे.
वीतराग मार्ग अने तेनुं स्वरूप शुं छे तेनी वात चाले छे. केवळी परमात्मा जिनेश्वरदेव ए ज एक साचा देव छे. जगतमां देव होय तो आ एक ज छे. तेओ पोतानी दिव्यशक्ति केवळज्ञान द्वारा बधुं जाणे छे. लोकालोक जाणे छे. तेमनुं कहेलुं आ तत्त्व छे. तेने आचार्य भगवंतो आडतिया थईने बतावे छे.
बधां द्रव्यो एकत्वनिश्चयने प्राप्त होवाथी सुंदरता पामे छे. अन्य प्रकारे एमां संकरादि दोष आवी पडे छे, एटले के चैतन्यस्वरूप परमात्मा पोते स्वाधीन एकरूप न रहेतां बीजामां भळी जाय अर्थात् बे थईने एक थई जाय ईत्यादि दोष आवी पडे छे. द्रव्य पोते पोताना द्रव्य-गुण-पर्यायपणे स्वतंत्र न रहे, परपणे थई जाय, परमां भळी जाय ईत्यादि आपत्ति आवी पडे छे.
अरे! पोते आत्मा छे एनी एने क्यां किंमत छे? एने तो धूळनी (पैसानी), पुण्यनी, भणतरनी अने कांतो क्षयोपशमरूप ज्ञाननी (विद्वतानी) किंमत भासे छे. पण ए बधुं तो पर छे.
हवे कहे छे केवा छे ते पदार्थो? ‘पोताना द्रव्यमां अंतर्मग्न रहेला पोताना अनंतधर्मोना चक्रने चुंबे छे-स्पर्शे छे तोपण जेओ परस्पर एकबीजाने स्पर्श करता नथी’. परमाणु हो के आत्मा हो, आकाश हो के काळ हो, दरेक द्रव्य पोताना अनंत गुणसमूहने चुंबे छे. द्रव्य पोताना गुणपर्यायोने अडे छे, पण परने अडतुं नथी. पोताना