निर्मळ पर्यायने पण परद्रव्य कहेवामां आवी छे. मोक्षमार्गनी जे निर्मळ पर्याय प्रगटी ते परद्रव्य छे. पर्याय छे ने? तेथी ते परद्रव्य कही छे. त्यां द्रष्टिनुं ध्येय एकमात्र ध्रुव द्रव्य बताववुं छे एटले निर्मळ पर्यायने परद्रव्य कही दीधी छे; ते स्वद्रव्य नहीं, कारण के निर्मळ पर्याय पण आश्रय करवा लायक नथी. सम्यग्दर्शननो विषय तो एकलो ध्रुव, ध्रुव, ध्रुव त्रिकाळी छे. तेमां निर्मल पर्यायने पण साथे भेळवे तो द्रष्टि एकदम विपरीत थई जाय. मोक्षमार्गनी पर्यायने परद्रव्य कही, केमके तेमांथी नवी पर्याय आवती नथी. जेम परद्रव्यमांथी नवी पर्याय आवती नथी, एम मोक्षमार्गनी पर्यायमांथी पण बीजी नवी पर्याय आवती नथी. आ अपेक्षाए निर्मळ पर्यायने परद्रव्य कही छे. छतां अहीं तो परिणमननी अपेक्षा छे एटले निर्मळ पर्यायने स्व- आत्मा, स्वसमय कहेल छे.
अहा! श्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के में जिनेश्वरदेवना उपदेशने बराबर जाणीने पूर्वापर विरोध रहित जे छे ते वात अहीं मूकी छे. अहीं एक वात अने बीजे बीजी एम विरोध नथी. अपेक्षाथी समजे तो समजाय अने विरोध रहे नहीं एवी वात छे.
नियमसारना टीकाकार पद्मप्रभमलधारिदेवे त्यां एम कह्युं छे के जे आ टीका थई एनो करनारो हुं नथी. गणधरोथी रचायेली टीका एना करनारा अमे ते मंदबुद्धि कोण? तेथी खरेखर आ टीका तो गणधरदेवथी चाली आवे छे. एमां कह्युं छे के कारण परमात्मा-जे ध्रुव वस्तु छे ते एक ज मोक्षमार्गनो हेतु छे. तेनी जे मोक्षमार्गरूप निर्मळ पर्याय प्रगटी ते परद्रव्य छे. पर्याय छे माटे परद्रव्य छे. द्रष्टिना विषयमां पर्यायने नाखे ते तो महा विपरीत द्रष्टि थई जाय छे.
अहाहा...! शुं शास्त्रो छे! समयसार, नियमसारमां गजब वातो करी छे. भाई, भगवाननी गादीए बेसीने जे वात चाले त्यारे तो भगवान कहे छे एम अंदरथी आवे छे. नियमसारमां द्रष्टिनो विषय जे ध्रुवद्रव्य तेनी अपेक्षाए निर्मळ पर्यायने परद्रव्य कही, अने अहीं समयसारमां परिणमन अपेक्षाए निर्मळ पर्यायने स्व-आत्मा कह्यो.
अहीं ‘समय’ शब्दथी सामान्यपणे सर्व पदार्थ कहेवामां आवे छे, कारण के व्युत्पत्ति प्रमाणे ‘समयते’ एटले एकीभावे पोताना गुणपर्यायोने प्राप्त थई जे परिणमन करे ते समय छे. तेथी धर्म-अधर्म-आकाश-काळ-पुद्गल-जीवद्रव्यस्वरूप लोकमां सर्वत्र जे कोई जेटला पदार्थो छे ते बधाय निश्चयथी एकत्वनिश्चयने प्राप्त होवाथी ज सुंदरता पामे छे कारण के अन्य प्रकारे तेमां संकर, व्यतिकर आदि सर्व दोषो आवी पडे.