आ गाथा गंभीर छे, भाई? जयसेन आचार्यदेवनी टीकामां ‘एकत्व- निश्चयगत’ना त्रण अर्थ कर्या छे. (१) एकेन्द्रियादि बधा पदार्थोमां (जीव) द्रव्य छे ते सुंदर छे. (२) एकत्वनिश्चयगत एटले पोताना स्वगुणनी पर्यायपणे परिणमे ते सुंदर छे. (अहीं बीजा बोलमां विकारी अने अविकारी बधी पर्यायोपणे परिणमे तेनी वात छे). (३) एकत्वनिश्चयगत कहेतां अभेदरत्नत्रयपणे शुद्ध परिणमे ते सुंदर छे, सत्य छे.
एकेन्द्रियादिमां द्रव्य छे ते सुंदर ज छे, पण ते बेसे कोने? कहे छे के जेने अभेदरत्नत्रयनुं परिणमन थयुं छे एवा ज्ञानीने बधा सुंदर छे एम बेसे छे. अज्ञानीने क्यां खबर छे? अहीं ‘समय’मां भेद पाडवा नथी, पण ‘स्वसमय’ अने ‘परसमय’ एम परिणतिना बे भेद पडे छे. ‘समय’ तो समय ज छे. पोताना ध्रुव आत्मानी साथे एकत्वपणे परिणमन थाय ते ‘स्वसमय’ छे, अने ध्रुव साथे एकत्वपणुं छोडी राग साथे एकत्वपणे परिणमे ते ‘परसमय’ छे. आ बेपणुं ज असत्य छे. (यथार्थ द्रष्टिथी) एमां बेपणुं केम होई शके?
घणी ऊंडी चीज छे, भाई! ध्येय तो जे त्रिकाळी ध्रुव द्रव्य छे ए ज छे, तेमां कोई प्रश्न ज नथी. पण ए ध्रुव साथे एकत्व थईने शुद्ध परिणमे ते ‘स्वसमय’ अने ध्रुवने छोडी दई राग-विकारने आधीन थई मिथ्या परिणमे ते ‘परसमय’ छे. ते द्विविधपणुं छे, ते विरोध छे. त्रिकाळी ध्रुव द्रव्य ते निश्चय अने तेना लक्षे जे शुद्ध परिणमन थयुं ते व्यवहार-सद्भूत व्यवहार. आ सद्भूत परिणमन जे छे ते समय- आत्मा एम अहीं कह्युं छे. कर्ता-कर्म अधिकार, गाथा ७१ (टीका) मां आ वात लीधी छे. त्यां कह्युं छे-“आ जगतमां वस्तु छे ते (पोताना) स्वभावमात्र ज छे, अने ‘स्व’नुं भवन ते स्व-भाव छे; माटे निश्चयथी ज्ञाननुं थवुं-परिणमवुं ते आत्मा छे अने क्रोघादिनुं थवुं-परिणमवुं ते क्रोधादि छे.” जुओ, वस्तु तो त्रिकाळ ध्रुव छे, परंतु परना कर्तापणाथी-विभावथी जुदुं बतावी जे वस्तुनुं स्वभावरूप परिणमन तेने अहीं आत्मा कह्यो छे.
कर्मना निमित्तथी रागादिनुं परिणमन थाय ते आत्मा नहीं एम सिद्ध कर्युं छे. दया, दान, व्रत, आदिना विकल्पपणे परिणमवुं ते जीवनुं परिणमन नथी. ध्रुवने ध्येय बनावी, निर्मळपणे परिणमे ते ‘स्व-आत्मा’ अने कर्मसंबंधे विकारपणे परिणमे ते ‘पर-आत्मा’. स्वभावपणे परिणमवुं ते जीवनुं कर्म छे, विभावपणे परिणमवुं ते जीवनुं कर्म नहीं, ते बाधा छे, आपत्ति छे.
नियमसार गाथा प० मां एम कह्युं छे के निर्मळ पर्याय पण परद्रव्य छे. मूळ गाथामां आचार्य श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे स्वयं आम कह्युं छे. विकारी पर्याय तो परद्रव्य छे, पण