आ वस्तुना एकत्वमां बीजानी साथे अर्थात् कर्मना निमित्तथी थता विकारो- दया दान, व्रत, भक्ति, पूजा आदि शुभ के हिंसा, जूठ आदि अशुभभाव-साथे एकत्वपणानी बंधकथा-बंधभाव विसंवाद ऊभो करे छे, तेथी ते असत्य छे. अबंधस्वभावी भगवान आत्मानी साथे बंधभावनुं एकत्व ते असत्य छे, दुःख उत्पन्न करनारुं छे तेथी असुंदर छे एम कहे छे. द्रव्यना एकपणामां जे स्वगुणपर्यायरूप स्वभावपरिणमन कह्युं छे एमां कर्मना निमित्तथी जे अशुद्ध परिणमन थाय ते परसमयपणुं छे, ते असत्य छे अने बाधा-आपत्ति उत्पन्न करनारुं छे.
आत्मा पोताना स्वभावगुणपर्यायपणे परिणमे छे स्वसमय अर्थात् एकत्वनिश्चयगत ते स्वसमय छे. अने विभावपणे परिणमे अर्थात् कर्मपुद्गलना प्रदेशोमां (स्थित थई) परिणमे ते परसमय छे. परसमयपणुं ए द्विविधपणुं उत्पन्न करे छे. स्वसमय अने परसमय ए बेमां परस्पर विरोध छे. स्वसमयनुं परिणमन छे तेमां विभावनुं परिणमन थवुं ते विरोध छे, केमके तेमां स्वनिश्चयगत रह्यो नहीं. ध्रुवपणे (सुंदर) रह्यो, पण परिणमनमां स्वगुणपर्यायपणे (सुंदर) रह्यो नहीं, अने विकाररूप (विरोधरूप) परिणमन थई गयुं. पुद्गलकर्मना निमित्ते थता विकारी परिणमनमां द्विविधपणुं -बाधापणुं बताव्युं, पोताना स्वभावमां स्थिति थतां स्वसमयपणुं -सुंदरपणुं कह्युं.
प्रवचन नंबर ८–१०, तारीख ६–१२–७प थी ८–१२–७प
एकत्वनिश्चियने प्राप्त जे समय नामनो पदार्थ छे ते पोताना गुणपर्यायपणे परिणमे-अभेद-रत्नत्रयपणे परिणमे ते लोकमां बधे सुंदर छे. द्रव्यार्थिकनयनो विषय एवो जे ध्रुव आत्मा तेना लक्षे जे परिणमन थयुं ते पर्याय छे, तेने अहीं आत्मा कहेवामां आव्यो छे. अहीं स्वपर्यायरूप परिणमनने आत्मा कह्यो छे. सम्यग्दर्शननो विषय जे त्रिकाळी, ध्रुव आत्मा एनी अहीं वात नथी. एकत्वनिश्चयगत कहेतां द्रव्य जे पोते ध्रुव तेमां एकत्व पणे परिणमे अर्थात् पोताना स्वगुणपर्यायपणे परिणमे तेने स्वसमय कहेवामां आव्यो छे अने ते लोकमां सर्वत्र सुंदर छे.
परना संबंधथी परिणमन थाय ते बाधारूप छे. ते सत्य नथी. जयसेनाचार्यदेवे तेने असत्यार्थ कह्युं छे. एकत्वमां बीजा साथेना संबंधनी कथा विसंवादिनी छे, विरोध उत्पन्न करनारी छे. वस्तु पोते ध्रुव आत्मा छे. तेना आश्रये शुद्ध गुणपर्यायपणे परिणमे ते स्वसमय छे. आवुं स्वसमयनुं परिणमन छोडीने निमित्ताधीन थई परिणमे ते द्विविधविरोधपणुं उत्पन्न करनारुं छे.