क्रियाकांडनो व्यवहार करे, पण तेथी भवभ्रमण मटे नहीं. भाई! धर्मनो पंथ- अनुभवनो पंथ जगतथी कांई जुदो छे.
आचार्यदेव कहे छे के अमे आगमनुं सेवन कर्युं छे. भगवान सर्वज्ञदेवथी परंपराए चाली आवेली जे जिनवाणी तेनी सेवा करवाथी अमने ज्ञानविभव प्रगट थयो छे. बीजी रीते कहीए तो अमने सम्यग्दर्शनादि पामवामां परंपरा सर्वज्ञदेवनी वाणीनुं निमित्त छे. अज्ञानीनी वाणीना निमित्तथी सम्यग्दर्शन थाय एम कदीय बनतुं नथी. अन्य संप्रदायनां आगम ए वीतरागनी वाणी नथी. आवी वातथी कोईने दुःख थाय पण सत्य वस्तु आ छे. सर्वज्ञथी परंपरा सनातन सत्य दिगंबर पंथ चाल्यो आवे छे ते ज सत्य छे. सम्यग्दर्शनमां निर्गरंथ दिगंबर गुरुनी ज वाणी निमित्त बने छे. कोई प्रत्ये वेर-विरोधनी आ वात नथी परंतु जे द्रष्टि विपरीत होय तेनुं ज्ञान यथार्थ करवुं जोईए.
हवे कहे छे अमे युक्तिनुं अवलंबन लीधुं छे. तेथी वीतरागदेव शुं कहे छे अने विरोधी अन्यवादीओ शुं कहे छे तेनो युक्तिना अवलंबनथी निर्धार कर्यो छे. सत्य शुं छे तेनो युक्ति द्वारा अमे साचो निर्णय कर्यो छे.
त्रीजी वातः परंपरा गुरुनो उपदेश अमने मळ्यो छे. सर्वज्ञदेव परमगुरु अने गणधरादिक अपरगुरु-तेमना प्रसादरूप उपदेशना निमित्ते अमारो आत्मवैभव अमने प्रगट थयो छे.
चोथी वातः अमने अतीन्द्रिय आनंदनी छापवाळुं प्रचुर स्वसंवेदन थवाथी, ज्ञायक जे ध्रुवस्वरूप तेना प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा ज्ञानविभव प्रगट थयो छे.
एम चार प्रकारे उत्पन्न थयेल पोताना ज्ञानना वैभवथी हुं एकत्व-विभक्त शुद्ध आत्मानुं स्वरूप देखाडुं छुं; तेने हे श्रोताओ! पोताना स्वसंवेदन प्रत्यक्षथी प्रमाण करजो. क्यांय कोई प्रकरणमां भूलुं तो दोष ग्रहण न करशो. अहीं अनुभवनी प्रधानता छे. तेना वडे शुद्धस्वरूपनो निश्चय करो एम आशय छे.