परिणमतो नथी (ज्ञायक भावथी जड भावरूप थतो नथी) तेथी प्रमत्त पण नथी अने अप्रमत्त पण नथी; ते ज समस्त अन्यद्रव्योना भावोथी भिन्नपणे उपासवामां आवतो ‘शुद्ध’ कहेवाय छे.
वळी दाह्यना (- बळवायोग्य पदार्थना) आकारे थवाथी अग्निने दहन कहेवाय छे तोपण दाह्यकृत अशुद्धता तेने नथी, तेवी रीते ज्ञेयाकार थवाथी ते ‘भाव’ ने ज्ञायकपणुं प्रसिद्ध छे तोपण ज्ञेयकृत अशुद्धता तेने नथी; कारण के ज्ञेयाकार अवस्थामां ज्ञायकपणे जे जणायो ते स्वरूप-प्रकाशननी (स्वरूपने जाणवानी) अवस्थामां पण, दीवानी जेम, कर्ता-कर्मनुं अनन्यपणुं होवाथी ज्ञायक ज छे-पोते जाणनारो माटे पोते कर्ता अने पोताने जाण्यो माटे पोते ज कर्म. (जेम दीपक घटपटादिने प्रकाशित करवानी अवस्थामांय दीपक छे अने पोताने- पोतानी ज्योतिरूप शिखाने-प्रकाशवानी अवस्थामां पण दीपक ज छे, अन्य कांई नथी; तेम ज्ञायकनुं समजवुं)
भावार्थः– अशुद्धपणुं परद्रव्यना संयोगथी आवे छे. त्यां मूळ द्रव्य तो अन्य द्रव्यरूप थतुं ज नथी, मात्र परद्रव्यना निमित्तथी अवस्था मलिन थई जाय छे. द्रव्य- द्रष्टिथी तो द्रव्य जे छे ते ज छे अने पर्याय (अवस्था)-द्रष्टिथी जोवामां आवे तो मलिन ज देखाय छे. ए रीते आत्मानो स्वभाव ज्ञायकपणुं मात्र छे, अने तेनी अवस्था पुद्गलकर्मना निमित्तथी रागादिरूप मलिन छे ते पर्याय छे. पर्यायनी द्रष्टिथी जोवामां आवे तो ते मलिन ज देखाय छे अने द्रव्यद्रष्टिथी जोवामां आवे तो ज्ञायकपणुं तो ज्ञायकपणुं ज छे, कांई जडपणुं थयुं नथी. अहीं द्रव्यद्रष्टिने प्रधान करी कह्युं छे. जे प्रमत्त-अप्रमत्तना भेद छे ते तो परद्रव्यना संयोगजनित पर्याय छे. ए अशुद्धता द्रव्यद्रष्टिमां गौण छे, व्यवहार छे, अभूतार्थ छे, असत्यार्थ छे, उपचार छे. द्रव्यद्रष्टि शुद्ध छे, अभेद छे, निश्चय छे, भूतार्थ छे, सत्यार्थ छे, परमार्थ छे. माटे आत्मा ज्ञायक ज छे; तेमां भेद नथी तेथी ते प्रमत-अप्रमत्त नथी. ‘ज्ञायक’ एवुं नाम पण तेने ज्ञेयने जाणवाथी आपवामां आवे छे; कारण के ज्ञेयनुं प्रतिबिंब ज्यारे झळके छे त्यारे ज्ञानमां तेवुं ज अनुभवाय छे. तोपण ज्ञेयकृत अशुद्धता तेने नथी कारण के जेवुं ज्ञेय ज्ञानमां प्रतिभासित थयुं तेवो ज्ञायकनो ज अनुभव करतां ज्ञायक ज छे. ‘आ हुं जाणनारो छुं ते हुं ज छुं, अन्य कोई नथी’-एवो पोताने पोतानो अभेदरूप अनुभव थयो त्यारे ए जाणवारूप क्रियानो कर्ता पोते ज अने जेने जाण्युं ते कर्म पण पोते ज छे. एवो एक ज्ञानकपणा मात्र पोते शुद्ध छे.-आ शुद्धनयनो विषय छे. अन्य परसंयोगजनित भेदो छे ते बधा भेदरूप अशुद्धद्रव्यार्थिकनयनो विषय छे. अशुद्धद्रव्यार्थिकनय पण शुद्ध द्रव्यनी द्रष्टिमां पर्यायार्थिक ज छे तेथी व्यवहारनय ज छे एम आशय जाणवो.