Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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९२ [ समयसार प्रवचन

अहो! आ छठ्ठी गाथा अलौकिक छे. आ तो छठ्ठीना अफर लेख. लौकिकमां छठ्ठीना लेख कहेवाय छे. कहे छे बाळक जन्म्या पछी छठ्ठे दिवसे विधाता भाग्य-लेख लखवा आवे छे. त्यां कागळ वगेरे मूके छे. परंतु त्यां तो कागळ एवो ने एवो कोरो रहे छे, केमके त्यां कोई विधाता नथी. पण आ भगवान चिदानंदनो नाथ पोते जे पर्यायमां जणायो ते निश्चय विधाता छे. तेणे आ लेख लख्यो के हवे आ आत्माने अल्पकाळमां मुक्ति छे. ज्ञायकनी सन्मुख थतां ज्यां ज्ञायक शुद्ध जणायो त्यां मुक्ति- लेख निश्चित लखाई जाय छे एवी अलौकिक वात आ गाथामां छे.

* टीका उपरनुं प्रवचन *

जे पोते पोताथी ज सिद्ध होवाथी अनादि सत्तारूप छे. ज्ञायकभाव ध्रुव पोते पोताथी ज होवापणे छे. कोई ईश्वरे एने उत्पन्न कर्यो छे एम नथी. तेथी अनादि सत्तारूप छे. एटले एने अनादिथी होवापणुं छे, एनुं होवापणुं कांई नवुं नथी. प्रभु सतरूप अनादि सत्तावाळो छे ए भूतकाळनी अपेक्षाथी वात करी. वळी, कदी विनाश पामतो नथी माटे अनंत छे. ए भविष्यकाळनी अपेक्षाथी वात करी. भविष्यमां पण निरंतर ध्रुवस्वरूपे रहेशे. एनो भविष्यमां नाश थशे एम कदीय बनवुं संभवित नथी तेथी अनंत छे. आम आदि-अंत रहित ध्रुव ज्ञायकभाव अनादि-अनंत सत्तारूप छे. आ पर्याय विनाना ध्रुवनी वात छे हों; पर्याय तो विनाशिक छे. केवळज्ञाननी क्षायिक पर्याय होय तोपण ते एक समयनी पर्याय छे तेथी विनाशिक छे. आ तो त्रिकाळी ज्ञायकभाव जे चैतन्यप्रकाशना नूरना पूरथी भरेलो भगवान आत्मा छे ते अनादि- अनंत अविनाशी चीज छे.

हवे वर्तमाननी वात करे छे-के ‘नित्यउद्योतरूप होवाथी क्षणिक नथी.’ एटले वर्तमानमां छे एवो ने एवो त्रिकाळ छे. वर्तमान-वर्तमानपणे पोते कायम रहेनारो त्रिकाळ छे. ‘अने स्पष्ट प्रकाशमान ज्योति छे.’ अहाहा...! परनी अपेक्षा राख्या विना पोते पोताने ज्ञानमां स्पष्ट प्रत्यक्ष जणाय एवी चैतन्यज्योति पोते छे. प्रवचनसार गाथा १७२नी टीकामां अलिंगग्रहणना छठ्ठा बोलमां आवे छे के आत्मा पोताना स्वभाव वडे जणाय एवो प्रत्यक्ष ज्ञाता छे. सर्वत्र आ शैलीथी ज वात छे. भगवान आत्मा मति-श्रुत-ज्ञानमां पोताथी प्रत्यक्ष जणाय एवी चैतन्यज्योति छे, परोक्ष रहे के ढंकाएलो रहे एवो आत्मा छे ज नहीं. अहा! ज्ञायकदेव जेने ज्ञानमां बेठो एनी अहीं वात छे.

‘एवो जे ज्ञायक एक ‘भाव’ छे.’ जुओ भाषा! ज्ञायक एक भाव छे कहेतां एकस्वरूप छे. उपशमभाव, क्षायिकभाव आदि पर्यायभावो तो अनेक छे. आ तो त्रिकाळ एकरूप, सद्रश-सद्रश, सामान्य ज्ञायक ते पोते एक भाव छे. गंजीफानी रमतमां जेम