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श्री प्रवचन रत्नो-१ ७
‘जीव चरित-दर्शन-ज्ञानस्थित’ ए तो पद्यनी रचना माटे चारित्र पहेलुं आव्युं छे. खरेखर तो दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित रह्यो छे. तेने निश्चयथी स्वसमय जाण. अहींयां तो त्रण बोल लीधां छे. दर्शन, ज्ञान ने चारित्र! छे तो अनंतगुणनी पर्याय! दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी साथे. निर्मळपणे थई छे (बधी पर्यायो) पण मुख्यपणे अहीं दर्शन-ज्ञान-चारित्र-मोक्षनो मारग जे दुःखथी मुक्त थवानो, एने मुख्यपणे कह्युं छे.
एटले के... दर्शन, ज्ञान, चारित्र! आत्मा अनंत गुणस्वरूप, तो अहींयां अनंत अनंत गुणनी वर्तमान पर्याय पणे-व्यक्तपणे स्थित थाय, तेने अहींयां स्वसमय नाम आत्मा कह्यो छे. आत्मा तो आत्मा छे! पण जेने श्रद्धाज्ञानने चारित्रमां ए आव्यो आत्माध्रुव, परिणमन थयुं, तेना ख्यालमां आव्यो एने आत्मा स्वसमय कहेवामां आवे छे. आत्मा तो आत्मा ज छे. पण आंहीयां दर्शनज्ञानचारित्रमां (जे स्थित थयो ते आत्मा छे)
झीणी वात छे भाई..! एना-आत्मामां गुण तो अनंत छे. राते कह्युं’ तुं. जेम आ आकाश छे एना आंहीना प्रदेशथी शरू करीए, आंहीना आकाशथी.. शरूआत करीए तो अंत नथी, शरूआत आंहीथी लेवाय पण ई प्रदेशनो अंत नथी. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत एम आंहीथी शरूआत करीने आम लई जाय तोय अनंत अनंत अने बेयनुं भेगुं करीए तोय अनंत.
एक समयना एक श्रेणीना प्रदेश, एवीतो अनंती श्रेणी छे. एवो एक प्रदेश, एक प्रदेशमां श्रेणी, एनो आदि अने अंत नथी. एवी अनंती श्रेणीओ छे. हवे आंही तो एम कहेवुं छे के जेना अनंत-अनंत प्रदेश आकाशना, जेनो अंत नथी, जेनो छेडो शुं? छेडो शुं? पछी शुं? एम काळनी पण आदि नथी. वर्तमान एनो अंत आवे! अनादि-अनंत! आदि नहीं ने अंत आवे. भविष्यनो अंत नहीं. पण शरूआत आंहीथी कहेवाय तो सादि-अनंत छे! अने समुचित कहेवाय तो अनादि-अनंत कहेवाय.
आहा.. हहा! एम आत्मामां अने परमाणुओमां एटला गुणो छे, ए आकाशना प्रदेशथी पण अनंतगुण. एनो अर्थ शुं थयो! आहा..! गंभीर गजब वात छे? आत्मामां अनंत संख्याए गुण छे. एमां आंही त्रणमां स्थित कह्युं पण छे तो अनंतगुणमां (स्थित) ए अनंतगुण छे एमां पहेलो पछी नथी. पण ई अनंतगुणा छे... एमां गणत्री करवा जाय के आ एक, बे, त्रण, चार, पांच तो एनो छेल्लो क्यो गुण? ए आवे नहीं एमां आहाहा! क्षेत्र भले शरीर प्रमाणे! अने क्षेत्र एटले पोतानुं क्षेत्र (आत्मानुं) असंख्य प्रदेश प्रमाणे! पण एना जे गुणोनी संख्या... अनंत! एमां पहेलो-पछी एवुं नहीं. पहेलुं ज्ञानने पछी दर्शनने एवुं नहीं, (बधां गुणो) एक साथे! पण एकसाथे होवा छतां एने गणतरीथी गणवा मांडे... के आ एक, बे, त्रण, चार आ तो छेल्लो गुण क्यो? आहा.. हा! छेल्लो छे ज नहीं! आहा..! आ ते कांई वात कहे छे ए शुं कहे छे!
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८ श्री प्रवचन रत्नो-१
अनंत जे संख्याए आत्मामां गुण छे. एगुण पहेलो, पछी नथी. एक हारे... छे! पण एक हारेमां आ एक-बे-त्रण-चार एम छेल्लो क्यो? आहा... हा! गणतरीमां छेल्लो आवता नथी. शुं कहे छे आ?
अरे! एणे निज तत्त्व केवुं, केवडुं छे? एवुं एणे अंतरथी सांभळ्युं नथी. आहा..! एना गुणो... ते भाव.. एनी संख्या अपार! तो गुण.. गुण.. गुण.. ज्ञान.. ज्ञान.. ज्ञान.. दर्शन.. चारित्र.. आनंद.. अस्तित्व.. वस्तुत्व.. एम करतां क्यांय छेल्लो गुण आवे एवो अंत नथी! आहा.. हा! जेमां अंत विनाना, छेल्लो नहीं एवा अनंतगुण! आ ते शुं कहे छे! आहा... हा! अरे! एणे निजतत्त्वने जाणवानो प्रयत्न कर्यो ज नथी. बाकी बधुं आ संसारना.. घोर पाप! आखो दि’ एणे कर्यां!
अहींयां तो कहे छे जीव चरित्तदंसणणाण-चरित्तदंसणणाण ठिदो’ तं हि स्वसमय जाण। एमां तो जेटला गुणो छे. ए गुणोनी संख्यानो छेडो, कोई अंत नथी. एटली संख्या.. एटली संख्या.. एटली संख्या अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत, एने अनंतने अनंतगुणा वर्ग करो तोपण छेल्लो आ गुण जेमां नथी. आहा.. हा!
एवडुं आ अस्तित्व एना जेटला गुणो छे तेटली ज एनी पर्याय छे. एकसमयमां अनंती पर्याय छे! एमां पहेली-पछी ई शब्द नथी. कारण के एकसमयमां ज अनंती साथे छे.
छतां ए पर्यायनी गणतरीथी गणवा मांडो एक, बे, त्रण, चार, संख्य, असंख्य, अनंत.. अनंत... अनंत ई अनंती पर्यायमां छेल्ली कई पर्याय? ई नहीं आवे एमां! झीणुं तत्त्व बहु बापु! आहा.. हा! आ गंभीर! सर्वज्ञ सिवाय कोईए जोयुं नथी, जाण्युं नथी कह्युं नथी.
आहा.. हा! एना अनंता गुणोनी संख्या! आकाश तो क्षेत्रथी अंत नहीं. आकाश.. आकाश.. आकाश दशेय दिशामां.. पछी शुं? ... पछी शुं? क्यांय आकाशनो अंत नथी. एटला बधा आकाशना प्रदेशोथी अनंत गुणा आंही (आत्मामां) गुण छे. जेनो-आकाशना प्रदेशनो अंत नथी! आहा.. हा! एथी अनंतगुणा गुण, संख्याए अनंतगुणा गुण, ए रह्या असंख्य प्रदेशमां, रह्या एकसमयमां! रह्या असंख्य प्रदेशमां रह्या एकसमयमां! रह्या अनंत.. तो अनंतनो आ छेल्लो गुण ‘आ’ .. आ ते कांई वात छे! शुं छे! ए छेल्लो ई शब्द ज नथी त्यां! अने ई भावमां ई नथी. आहा.. हा! एवा अनंत.. अनंत भावरूप गुण ए आंही कहेशे नीचे!
‘ए अनंतधर्मोमां रहेलुं एक धर्मीपणुं ते द्रव्य छे.’ -एम आवशे नीचे. भाषा साधारण छे एम जाणीने एनी गंभीरता न बेसे तो, भाषा-भाषा तो जड छे. ए अनंतगुण जे छे, एनो कोई छेडो नहीं. छेडो नहीं एटले? आ छेल्लो गुण... छेल्लो गुण.. छेल्लो गुण अनंत.. अनंत गणतां के आ छेल्लो, ई एमां छे ज नहीं. आ शुं कहे छे आ..!? आ वात पहेलीवहेली छे! कोई दि’ कहेवामां आवी नथी. समजाणुं कांई..? अनंत छे ने ए बधुं घणीवार कह्युं! पण अनंत छे.. ई अनंतनो.. अनंतनो.. छेल्लो, छेल्लो क्यो? आहाहा..!
असंख्यप्रदेशमां एक समयमां अनंतनी संख्यामां आ छेल्लो, ई छेल्लो आवतो ज नथी! छेल्लानो
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श्री प्रवचनो रत्नो-१ ९ छेडो ज नथी. आहाहा.. हा! आ ते वात!!
(श्रोताः) व्याख्यानमां नहोती थई आपे राते वात करी हती! (उत्तरः) हा, बहेनोने काने पडे ने..! आ थई ते पहेलां वहेली करी छे. आटला वर्षमां पहेलीवार आ करी छे के अनंत भावमां, ए अनंतनी संख्यामां छेल्लो गुण क्यो? के छे ज नहीं एमां (छेल्लो!) आहा.. हा! एम.. अनंतगुणनी एकसमय काळमां एकसमय अने असंख्यप्रदेशनो छेल्लो अंश, क्षेत्रनो एमां थती अनंती पर्याय/गुणमां तो असंख्यप्रदेश छे, आखा! आम एक पर्याय छे एनो छेल्लो/असंख्य प्रदेशनो छेल्लो अंश एमां उत्पन्न थती अनंती पर्याय, क्षेत्र एटलुं अंश, काळ एक समय, ए पर्यायनी संख्या एटली अनंती.. आहा.. हा! के आ पर्याय छेल्ली! एम गणतरीनी गणतरामां छेल्ली पर्याय होय नहीं. आहा.. हा!
आम.. अनंत-अनंत तो कहे छे पण अनंत ए कई रीते एम. आहा.. हा! क्षे्रत्रनो अंत तो तो हजी एम कहे हशे! पण आ एटलामां भावनो अंत नहीं, भावनी संख्या जेटली छे एटली संख्यानो क्यांय अंत नहीं, समय एक, क्षेत्र असंख्यप्रदेश अने भावनी संख्यानो छेडो नहीं, छेल्लो ‘आ’ एवो छेडो नहीं! आहा.. हा! एवी ज अनंती पर्याय, प्रदेशनो एक अंश, समयनो एक समय अने संख्यामां अनंत! पर्याय. एमांय पहेली-पछी तो नथी क्यांय! एकसाथे छे अनंत, छतां अनंतमां आ, आ, आ, आ, आ... अनंत.. अनंत छेल्ली आ.. आवुं तत्त्व भगवान सर्वज्ञ सिवाय क्यांय कोईए जोयुं नथी अने कोईए कह्युं नथी.
एक समयनी अनंती पर्याय, एमां हवे एक पर्याय लेवो. ज्ञाननी एक पर्याय. अनंती पर्यायनी संख्यामां छेल्ली पर्याय नहीं, छेडो नहीं एटली पर्याय, आहा.. हा! केम? आकाशना प्रदेशनी संख्यानो अंत नथी आंही पर्यायनी संख्यानो अंत नथी. भाव.. आहा.. हा! हवे एक-एक पर्यायमां, ज्ञाननी एक पर्याय, एक ज्ञेयप्रमाणे. ज्ञाननी एक पर्याय ई ज्ञेय प्रमाणे. ज्ञेय केटलां? के अनंत आत्मा, अनंता परमाणुओ ए ज्ञेय! ज्ञान ज्ञेय प्रमाणे! ज्ञेय केटलां? के लोकालोक प्रमाणे. आहा.. हा!
एक समयनी पर्यायमां प्रमेय लोकालोक! जेना भावनो अंत नथी ते ते परमाणुना गुणनो तेनी पर्यायोनो! ए बधु अहींयां एक समयनी पर्यायमां जणाय जाय! श्रुतज्ञाननी पर्यायमां य हो! केवळ ज्ञाननी तो वात शुं करवी!
आहा.. हा! एवी एक समयनी पर्यायमां पण अनंता अविभागप्रतिच्छेद! ज्ञाननी एकसमयनी पर्यायमां अनंता द्रव्यो ने एक द्रव्यना अनंता गुणो, जेनी संख्यानो पार नहीं अने एक-एक गुणनी पर्याय, जेनो पार नहीं-एने आ श्रुतज्ञाननी पर्याये जाणी लीधुं.
आहा.. हा! ए ज्ञाननी एकसमयनी पर्यायमां आवा अनंता लोकालोक जाण्या, द्रव्य गुणोने पर्यायो! तो एटला भाग पडी गया एक पर्यायमां, अंशो एटला अंशो के ई अंशोनो छेडो नहीं. आहा.. हा! अनंत ने एम नहीं. (श्रोताः) छेडो नहीं (उत्तरः) एम भाषा करो एम काम न आवे! अनंत... अनंत... अनंततो द्रव्ये य छे अनंत! पण एनो अंत आवी जाय छे. क्षेत्र अनंत, काळ अनंत, भाव अनंत, पर्याय अनंत एनो कोई पार नथी! आहा.. हा! एनी संख्यामां केटली छे? अने एनो छेडो छेल्लो क्यो? एटली संख्याए एनी पर्याय अने एक-एक पर्यायमां, अनंत द्रव्यो अने अनंत
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१० श्री प्रवचनो रत्नो-१ एना गुणो-जेना गुणनो अंत नहीं, पर्यायनो अंत नहीं.. एटली संख्याए... काळे अनंत एम नहीं, काळे भले एकसमय हो! पण एकसयमनुं तेनुं गुणने पर्याय, एकसमयनी पर्यायमां जणाय जाय (तो) एक समयनी पर्यायना भाग केटला? एना भाग.. कटकां करतां, करतां, करतां अविभाग, जेनो बीजो विभाग न थई शके (ते अविभाग!) ओहो!
एवा एकसमयनी पर्यायमां अनंता अविभागप्रतिच्छेद! एना-अविभाग प्रतिच्छेदनो छेश्नो क्यो? अंत नथी.
हवे, आंही तो एम कहेवुं छे के जेटला गुणो छे एटला ज्यां दर्शनज्ञानचारित्रमां स्थित थाय छे-त्यारेवात त्रणनी लीधी छे आंही भाई..! पण अनंता गुणोनी पर्याय व्यक्त थईने स्थिर थाय छे त्यां! शुद्धिमां केटलीक शुद्धि थाय ने केटलीक न थाय एम नहीं.
पण अहींयां दर्शनज्ञानचारित्रनी मुख्यता गणीने, तेमां जीव जे आखो, अंनतगुणनो पिंड छे तेस्थिर थाय छे आम! रागमां स्थिर थाय छे, ए पछी कहेशे. आहा..! अने पोताना अनंता जे गुणो छे, एनुं एकरूप जे द्रव्य छे. अनंत धर्म ए गुणो एनुं धरनार एक तत्त्व!
ए (आत्म) तत्त्व ज्यारे पोतानी निर्मळपर्यामां स्थित थाय छे त्यारे तेना जेटला गुणो छे, तेटला गुणोनुं व्यक्ततामां अंशो बधा गुणोना प्रगट थाय छे. छतां आंही त्रण कह्या छे ई मुख्यपणे मोक्षमार्गनी अपेक्षाए... समजाणुं कांई...?
गंभीर छे भाई..! गंभीर दरियो छे! बीजां घणां विचारो आव्या छे! पार पडे एमां एवुं नथी!
आहा... हा! ‘अने जे जीव (कर्म) पुद्गलर्मना प्रदेशोमां स्थित थयेल छे. हवे आंही कर्म- पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित शब्द एम वापर्यो छे. वात ई छे के पुद्गलना निमित्ते थती विकारी अवस्था, तेमां स्थित छे. ए स्थितमां... अनंतगुणो विकारपणे नथी. अनंतागुणो निर्मळपणे हतां! समजाणुं कांई...?
पहेलाना जे दर्शनज्ञान चारित्र (गुण) त्रण मुख्य लीधां, पण तेमां जेटली संख्यामां गुण (आत्मामां) छे, जेनो छेडो नहीं! ए बधा गुणोनी अंशे व्यक्तता प्रगटमां स्थित छे. तेने अहीं स्वसमय आत्मा कहे छे.
आहा.. हा! आ तो ओगणीस (मी) वार वंचाय छे ‘आ’ ... ते ईनुंई आवे कांइ...? आहाहा! हवे आमां बीजुं कहेवुं छे. के ‘जे जीव पुद्गलकर्मोना प्रदेशोमां’ ए पुदग्लकर्मोना प्रदेशोमां’ ए पुद्गलकर्म जड-अजीव छे. पण तेना अनुभवमां ए एकाग्र थाय छे. एमां जेटला गुणो छे ई बधा गुणो, कर्मना प्रदेशमां स्थित थता नथी. केटलाय गुणोनी पर्याय निर्मळ सदाय रहे छे. समजाणुं कांई...?
ए एक वात! बीजुं, कर्मपणे परिणमेला जे परमाणु छे एमांय कर्म-परमाणुमां जेटला गुणो छे ए बधा गुणो कर्मपणे परिणमे छे एम नथी आहा..! क्यां नवराश! जगतना पाप आडे! एकलुं पाप, पोटला बांधी, हाल्या जवाना चार गतिमां रखडवा..!
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श्री प्रवचन रत्नो-१ ११
आहा... हा! हजी पहेली शुं चीज छे, ई समजवाने पण वखत ल्ये नहीं! आहा.. हा! आवो जे अपार स्वभावने पर्याय, एनो पत्तो अंदर लागे, जे ज्ञानने श्रद्धा एनो पत्तो ल्ये, एने रागमां रस ऊडी जाय. राग ऊडी जाय एम नहीं, राग रहे. समजाणुं कांई..?
आहा..! आवा जे अनंता गुणो अने अनंती पर्यायो, छेडा विनानी, छेल्ला विनानी, अवी ‘द्रव्यनी द्रष्टि’ जेने थाय, एना अस्तित्वनो स्वीकार थाय, एना रस आडे एने रागमां रस रहे नहीं.
राग तो ए अमुकगुणनी पर्याय छे अने आंही तो अनंता.. अनंता.. छेडो नहीं जेनो (एटला गुणो) आहा.. हा! झीणुं बहु बापु!
वीतराग मारगनी प्रथम सम्यग्दर्शन ज शुं चीज छे ई.. गजब वात छे. आहाहा! एना विना रखडी मर्यो छे चोराशीना अवतारमां! आहा.. हा.. ए अबजोपति, शेठिया कहेवाय! ए मरीने गधेडां थाय! कूतरां थाय! केमके धर्म शुं चीज छे ई अंतरमां खबर नथी. अने मांस आदि खाता न होय तो ई नर्कमां तो न जाय. सिद्धांतमां ई लेख छे अंदर के बधां जवाना ढोर-तिर्यंचमां! आहा...! जेवुं स्वरूप छे, एवुं जेणे जाण्युं नथी, मान्युं नथी, ओळख्युं नथी, एना विरोधी भावो.. जे आडां, विकारीभावो ने आडोडाई करीने कर्यां छे ए आडोडाई एटले टेढाई थई गई छे. ए मरीने आडोडाई, तीर्यंचना शरीरमां जवाना.. कारण के तीर्यंचना शरीर आम आडां छे! मनुष्यनां आम ऊभां छे. गाय, भेंस खीसकोली आदिना आम आडा छे. आहा..! ई मोटी संख्या ई छे!! एनी संख्या त्यां पूरवाना छे.
आहा.. हा! आंही बीजुं कहेवुं छे के कर्मना प्रदेशमां स्थित छे ते बधा गुणो तो विकारी पर्यायमां स्थित नथी. एकवात! अने कर्म जे छे परमाणुओ, ई तो विभावरूपे परिणमेल छे. एक परमाणु स्वभावरूपे छे. अने आ तो विभाव रूपे परिणमेल छे. विभावरूपे परिणमनमां कर्मरूपे बधा गुणो (परमाणुना) परिणम्या छे एम नथी. समजाणुं कांई..?
जेम सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रनी पर्यायना परिणमनमां सर्वगुणो अशंतःपणे परिणम्या छे. एम विकारपणे बघा गुणो परिणम्या छे परमाणुमां एम नथी, आत्मामां पण एम छे. आत्मामां पण अशुद्धपणुं जे छे, बधा गुणो अशुद्धपणे थाय छे एम नथी. केटलाक गुणो अशुद्ध थाय बाकी तो शुद्ध रहे. केटलाक गुणो अभवीने पण शुद्ध रहे छे पर्यायमां. जेम अस्तित्व गुण! अस्तित्वनुं अशुद्ध शुं थवुं? ‘होवुं’ ओछुं थई जवुं? वात समजाय छे?
आहा.. हा! ई तो आमां एक प्रदेशत्व नामनो गुण छे सामान्यमां ए विकाररूपे परिणमे ई ए ते बे परमाणु, चार परमाणुरूपे थाय त्यारे एकलो नहीं. आहा.. हा.. हा! ते कर्मपणे परिणमेला पर्यायो, एमां पण परमाणुमां जेटला गुणो छे ए बधा कर्मपणे परिणम्या नथी. अमुक ज गुणनी पर्यायो कर्मपणे थई छे.
आहा..! एमां जे रोकायेलो छे जीव! आम अनंतगुणोमां न आवतां अनंता पर्यायो कर्मना रसनी छे त्यां अटकयो छे ते परसमय एटले अणात्मा छे.
आडाई करे! विरोध अर्थ करे, विरुद्ध श्रद्धा करे! आत्माथी विरोध, विकारना भाव करे..!
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१२ श्री प्रवचन रत्नो-१ ‘गोमट्टसार’ मां पाठ छे. तिर्यंच केम थाय? ‘तिर्यंच’ छे ने शब्द!! तिर्यंच एटले तीरछुं, तीरछुं एटले आडुं! घणी संख्या तो ई ज छे.
आहा... हा! पण कोने पडी आ! आ बहारमां थोडी अनुकूळता रहे! मरी जईने पछी क्यां जईए, कोण जाणे? ए कांई (खबर) नहीं, गोलण गाडां भरे!
अहींयां कहे छे. एक श्लोकमां केटलुं समाडी दीधुं छे! अने ते कर्मना प्रदेश कीधां छे. ते.. कर्मना प्रदेश तो परमाणु, जड छे. पण एनो अनुभाग जे छे एनो-प्रदेशनो भाग कहेवाय! एना तरफना लक्षमां जईने, जे विकारपणे परिणम्यो छे ते अणात्मा-परसमय कहेवामां आवे छे.
आहा... हा! आवी वात छे! कर्मपणे पण परमाणुना अनंतगुणो परिणम्या नथी. आहा... हा! एम भगवान आत्माना अनंता गुणो, मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय आदिमां–एमां अनंत गुणो परिणम्या नथी. केटला’ क गुणो... बहु विचार करीने काढयां’ता घणां वरस पहेलां! तो य वधारे न नीकळ्या एकवीस गुण काढया’ ता वीपरीतपणाना. काढयां’ता... घणां वरस पहेलां, गामडामां होय ने एकांत..! विपरीत आत्मामां... मिथ्यात्व, चारित्र, आनंद, प्रदेशत्व एवा एवा कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान (अधिकरण) एवां एवां गुणो विकारपणे थया छे. बधां गुणो नथी थयां समजाणुं?
विचार तो बधा आव्या होय ने एक्केएक घणां! आहा.. हा! आंही कहे छे के ‘जे जीव पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां’ एटले के, ए कर्मनो ज भाव छे विकार, आत्मानो स्वभाव नथी. विभाव-पुण्यने पाप, दया ने दान, व्रत ने भक्ति, काम ने क्रोध, रळवुं- कमावुं, ए बधुं पाप आहा..! एमां जे स्थित छे? ‘तेने परसमय जाण’ तेने अणात्मा जाण!
आहा.. हा! केमके एनी पर्यायमां विकारपणे थवुं, ए विकार आत्मा नथी. विकार ए आत्मानो कोई स्वभाव नथी. विकारपणे परिणम्यो छे-थयो छे, ते अणात्मा छे.
आहा.. हा! ए तो शब्दार्थ थयो! हवे एनी टीका. (टीकाः) ‘समय’ पहेलो समय उपाडयो! ‘सयम’ शब्दनो अर्थ आ प्रमाणे छे’ ‘सम्’ तो उपसर्ग छे- व्याकरणना नियम प्रमाणे ‘सम्’ उपसर्ग छे. तेनो एक अर्थ ‘एकपणुं’ एवो छे’ - तेनो अर्थ ‘एकपणुं’ एवो छे.’
‘सम्’ एकपणुं! (अने) ‘अय गतौ’ समय छे ने...! सम् ने अय बे शब्द भेगां छे. सम् नो अर्थ एकपणुं! ‘अयगतौ’ धातु छे धातु. परिणमन करवुं ए. आहा..! ए अय धातुनो गमन अर्थ पण छे.
‘अय’ एटले गमन करवुं - परिणमवुं, गमन करवुं’ अने ज्ञान अर्थ पण छे.’
आहा..! गमन करवुं अने परिणमवुं, ज्ञानरूपे हो! ‘गमन अर्थ पण छे अने ज्ञान अर्थ पण छे.’ ‘तेथी एकसाथे ज युगपद् जाणवुं अने परिणमवुं ए बे क्रियाओ, जे एकत्वपूर्वक करे... ते क्रियाओ एकसमयमां, एकत्वपूर्वक करे-परिणमे अने जाणे! परिणमे अने जाणे... एवी एक समयमां बे क्रियाने
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श्री प्रवचन रत्नो-१ १३ एकपणे करे आहाहाहा! छे? ‘ते समय छे’
अहा... हा! ए समयनी व्याख्या करी. फरीने...!
करवुं परिणमवुं अने जाणवुं, एवी बे क्रिया एकसमयमां जे करे तेने समय’ कहेवामां आवे छे.
‘समय’ केम ओळख्यो? पूछयुं तुं ते दि’ दिल्ही! ‘समय’ केम कह्यो? अरे.. कीधुंः वस्तुनुं स्वरूप छे ‘समय’ = सम् + अय, समय कीधुं. आहा.. हा! आत्माने ‘समय’ केम कह्यो? के एकपणे.. परिणमे अने जाणे, एकसमयमां एक पणे बे क्रिया करे तेने ‘समय’ कहेवामां आवे छे. ए ‘समय’ ते आत्मा छे. ए आत्मा ज परिणमे अने जाणे! बीजा पदार्थोमां परिणमन-गमन छे पण ‘जाणवुं’ नथी. गमननी अपेक्षाए बीजाने ‘समय’ कहेवाय.
पण, आंही तो ‘जाणवुं ने गमन करवुं’ बे अर्थमां जे होय तेने ‘समय’ कहीए. आहा.. हा! पछी स्वसमय लेशे. आ ‘समय’ कोने कहीए (ते व्याख्या करी) आहा..! ‘आ जीव नामनो पदार्थ ए समयनो अर्थ कर्यो हवे जीवनी हारे मेळवे छे. ‘आ जीव नामनो पदार्थ एकत्वपूर्वक / एकत्वपूर्वक सुधार्युं छे. ‘एक ज वखते’ - एकत्वपूर्वक एक ज काळे ‘परिणमे पण छे अने जाणे पण छे तेथी ते समय छे’ - तेथी तेने ‘समय’ आत्माने कहेवामां आवे छे.
जाणवानुं कार्य पण करे अने परिणमे, एकी साथे बे करे! आहा.. हा! समय एक! बे क्रिया! परिणमवानी ने जाणवानी...!! ‘एकसाथे’ केम कह्युं के परिणमे पहेलो ने जाणे पछी, एम नहीं. परिणमवुं ने जाणवुं एक ज समये छे. आहा.. हा! एकत्वपूर्वक ज करे! बे ने एकपणे करीने करे! आहा.. हा!
आवी झीणी वात छे. समयसार समजवुं-सांभळवुं बापु! आकरुं काम छे. बाकी तो बधु दुनिया करे छे आखी! ढोरनी जेम मेहनतुं करे छे ढोरनी जेम बधां! आखो दि रागने आ ने आ ने..! ढोर थवाना ने ढोर जेवी महेनतुं करे छे.
(श्रोताः) पैसावाळा एमां आवी जाय? (उत्तरः) पैसाना बाप होय, अबजोपति बधां ढोर थवानां! पशु! कागडानां कागडी थवानां, बकराना बच्चां थवानां, ढेढगरोळीनी कूंखे ढेढगरोळी थाशे! बापु! वस्तुस्वरूप एवुं छे.
आहा.. हा! अरे एणे जाण्युं ने जोयुं छे क्यां? एने दरकार क्यां छे? आहा..! अनंतकाळ वीती गयो प्रभु! तें आ रीते ऊंधाई करी छे. आहा... हा! भगवान आत्मा! अनंतगुणनुं परिणमन एकसमये अने ज्ञान-जाणवुं एकसमये! बीजां अनंतागुणो परिणमे छे पण जाणतां नथी.
आहा.. हा! एक समयमां एटले के सूक्ष्मकाळमां भगवान आत्माना जे अनंतगुणो जे छेडा विनाना ने छेल्ला विनाना कीधां, एबधा गुणोनुं एक समयमां परिणमन, बदलवुं, हलचल थवी, ध्रुव छे एमां हलचल नथी. उत्पाद-व्ययमां हलचल छे. एटले ई ध्रुव, ध्रुवपणे रही अने अनंतागुणोनुं हलचल नाम परिणमन थाय अने ते ज वखते ज्ञान जाणवानुं काम करे एने आत्मा कहीए!
अरे! प्रभु, आवुं क्यां छे भाई...! अनंत काळना, असंख्य क्षेत्रमां, अनंत वार ऊपज्यो!
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१४ श्री प्रवचनो रत्नो-१
आहाहा... हा! एवो आत्मा... केटलो-केवडो छे अने ई केवडो आत्मा? एक समयमां अनंता गुणोनो छेडो नहीं. छेल्लो नहीं, एनुं परिणमन करे अने ते ज समये ज्ञान करे! एकत्वपूर्वक बेनी क्रिया करे! काळभेद नहीं.
आहा.. हा! (प्रश्न) भई! जे वखते परिणमे छे ए वखते जाणे एने? अने ज्ञानपण जे वखते परिणमे छे ते वखते एने जाणे?
(उत्तरः) के हा. ज्ञान पोते परिणमे पण छे, परिणमननुं तो ज्ञाननुं आवी गयुं ने..! बधां गुणो परिणमे छे तो आ ज्ञान पण परिणमे एम आवी गयुं. अने साथे जाणे पण छे. परिणमे छे ने जाणे छे!! जे समये परिणमे छे ते समये जाणे छे! तेथी एकत्वपूर्वक करे छे एम कीधुं ने..!
आहा.. हा! आवी वात छे बापा.. झीणी! सर्वज्ञ त्रिलोकनाथनी प्रमाणथी वात नीकळी छे. आहा..! गणधरो! संतो, केवळीना निकटवासीओ! नजीकमां रहीने सांभळेला. अने अनुभवेला! आहा.. हा! एनुं कहेलुं ‘आ’ शास्त्र छे. तेथी ए ‘प्रमाणभूत’ छे.
आहा.. हा.. हा! समजाणुं कांई...? आहा..! ‘एक ज वखते परिणमे पण छे परिणमे एमां ज्ञानपण भेगुं परिणमे, ई आवी ग्युं ने.. आहाहा..! एक ज समये ज्ञान परिणमे छे ने अनंतगुणो परिणमे छे. पण एक ज समये ज्ञान परिणमतुं ज्ञानने जाणे छे अने बधांने जाणे छे? आहा.. हा!
एक ज समये परिणमे अने जाणे! अने एकत्वपूर्वक जाणे पण छे पण बधाने हो?! जे समये परिणमन थाय छे पोतानुं ने बधां गुणोनुं, ते ज समये तेने जाणे छे. आहाहा..! हजी तो.. आत्मा कहेवो कोने...? खबरुं न मळे ने... एने धरम थई जाय ने! आहा...! रखडपट्टी करी-करीने मरी गयो चोराशीना अवतारमां! एवां तो अनंतवार अवतार कर्यां शास्त्रो पण जाण्यां– वांच्यां! पण आ भाव... आ रीते छे ए अंदर परिणम्यो नहीं. एम कीधुं आंही.
आंही ‘परिणमन कीधुं ने..! आहा.. हा! ‘एकत्वपूर्वक एक ज समयमां पोतानुं ज्ञाननुं ने अनंतगुणनुं परिणमन एक समयमां, ते ज समये ते बधानुं ज्ञान पण ते समये करे. आहा.. हा! परिणमवुं ने ज्ञान करवुं एक ज समयमां छे. परिणमे छे ने पछी जाणे छे एम नथी. आहाहा.. हा! समजाणुं कांई...?
आवी वात छे! जैन धर्म!! आ जैन धरम! आहा.. ‘एकत्वपूर्वक एक ज वखते परिणमे पण छे अने जाणे पण छे ‘तेथीते समय छे’ आहा.. हा!
‘आ जीव-पदार्थ केवो छे? सदाय परिणामस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी’ .. आहा.. सदाय परिणमनस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी- ते तेनो स्वभाव छे, अने ते स्वभावमां रहेलो छे. ‘उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति जेनुं लक्षण छे एवी सत्ताथी सहित छे.’ त्रण लीधां (लक्षण)
‘सदाय परिणमन स्वरूप स्वभावमां रहेलो’ परिणमन छे ई उत्पाद-व्यय-स्वभावमां छे ए ध्रुव! आहा..! छे? ‘सदाय परिणमन स्वरूप’ बापु! आ तो मंत्रो छे. आ कांई वारता नथी. आ
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श्री प्रवचन रत्नो-१ १प तो.. सर्वज्ञ त्रिलोकनाथ, जेमनी पासे एकभवमां मोक्ष जनारां ईद्रो सांभळे छे. ए गलूडियांनी जेम सभामां बेठां होय छे आहा..! हा! ए कोई वारता नथी. कथा नथी ए चैतन्य हीरलानी वातुं चैतन्यमणीनी वातुं छे प्रभु!
आहा..! ए चैतन्य हीरो! केवो छे? आहाहा! कहे छे.. ‘सदाय परिणमन’ एनी पर्यायनुं बदलवुं सदाय छे. आहा.. हा! एक धारावाही सदाय परिणमे छे! परिणमे.. पर्याय.. पर्याय.. पर्याय.. उत्पाद... व्यय.. उत्पाद.. व्यय थया ज करे. नवी उत्पाद थाय, जूनी व्यय थाय.. बीजे समये नवी उत्पन्न थाय... व्यय थाय एम परिणमन सदाय.. क्रमसर! आहा.. जुओ आमां कमसर पण नीकळे छे!
आहा..! ‘सदाय परिणमनस्वरूप, स्वभावमां रहेलो-ध्रुव! आहाहा! ए परिणमनस्वरूप उत्पाद-व्यय अने स्वभावमां रहेलो ए ध्रुव! आहाहा! ए उत्पाद-व्यय ने ध्रुव स्वरूपमां रहेलो छे एटले के परिणमनमां रह्यो छे ए उत्पाद-व्यय अने ध्रुवमां रह्यो छे ई कायमनुं नित्य स्वरूप आहा.. हा!
टकतुं ने बदलतुं, बे स्वरूपे छे. नित्य परिणामी! ध्रुवउत्पादव्यय! आहा.. हा! अरे! एणे पोतानी चीजने अने ते सर्वज्ञ परमेश्वरे, केवळी परमेश्वरे कही छे ए वात एणे सांभळवा दरकार करी नथी. आहा..! अने आवुं स्वरूप, दिगंबर संत सिवाय क्यांय छे नहीं. बधे ऊंधुं ज मार्युं छे लोकोए एक्केएके!
आहा.. हा! परीक्षा नथी त्यां गोळ ने खोळ सरखुं! हें? आहा.. हा! जेनी एक एक कडीने एक-एक लीटी, पार पामे नहीं एटली वस्तु छे एमां.
आहा.. हा! कहे के समयसार अमे वांची ग्या! वांच्या बापा!! (श्रोताः) शब्दो वांच्या, भाव समज्या विना (उत्तरः) शब्दो वांच्यानी शुं थ्युं भाई, अंदर भाव शुं छे ए ख्यालमां न आवे, ए वांच्या ई वांच्युं शुं? गडियो गोख्ये ग्यो! ए गडियानी भाषा बीजी कहेशे (हिन्दी श्रोताः) पाडा. (उत्तरः) पाडा. (चंदुभाई रात्रे नहोताने अत्यारेय नथी) बेयमां नहोता आवी वात जिंदगीमां पहेली कहेवाणी छे. भाव अने छेडाविनाना भाव, छेडां विनानी पर्याय/कार्य एकहारे भले हो! छेडा विनाना अविभाग प्रतिच्छेद! छतां ते ज्ञाननी पर्याय एनो अंत लई ल्ये छे, ‘जाणे छे’ एम कीधुं ने..!
अनंता द्रव्योनुं ध्रुवपणुं अने अनंता द्रव्योनुं उत्पाद-व्ययपणुं, आंही आत्मानी वात करे छे पण आत्मानी पर्यायमां, अनंता द्रव्योना गुणपर्यायो परिणमनमां जणाई जाय छे. ए ज्ञाननापरिणमनमां जणाई जाय छे.
आहा..! एना पोताना अस्तित्वमां ज अनंता द्रव्यगुणपर्यायो, ए ज्ञाननी पर्यायनुं परिणमन थतां तेमां जणाई जाय छे.
आहा... हा! ‘सदाय परिणमनस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति’ शुं कीधुं जोयुं? परिणमन छे उत्पाद व्ययनुं-उत्पाद-व्यय उत्पाद-व्यय एकसमयमां, ध्रुवपण एक समयमां. ए त्रणनी एकतारूप अनुभूति-त्रणनुं एकपणे थवुं, त्रणनुं एकपणे थवुं जेनुं
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१६ श्री प्रवचन रत्नो-१ लक्षण छे एम.
अनुसरीने थवुं. उत्पाद-व्ययने ध्रुवने अनुसरीने थवुं एम. आहा.. हा! आहा.. हा.. हा! सदाय परिणमनस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप त्रणनी एकता एक समयमां! समयमां भेद नथी. जे समये ध्रुव छे ते समये उत्पाद-व्यय छे. जे समये उत्पाद-व्ययरूपे परिणमे छे ते समय ध्रुव अपरिणमन पणे पडयुं ज छे’
आहा.. हा.. हा! उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति जेनुं लक्षण छे ‘एवी सत्ताथी जीव सहित छे’. आ जीवपदार्थ केवो छे? न्याथी शरू कर्युं! तो शरू करीने आंही लई लीधुं ‘सदाय परिणमन स्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप-एकसमयमां अनुभूति- ए रूपे थवुं ‘जेनुं लक्षण छे एवी सत्ताथी सहित छे.
उत्पाद-व्यय ने ध्रुव त्रणेय सत् छे. ई सत्ता छे, त्रणे य सत्ता! ते त्रण सत्ताथी ते जीव सहित छे. ते जीवनुं कही, केवो जीव? एनी व्याख्या करी. आहा..! समजाणुं?
‘आ विशेषणथी जीवनी सत्ता नहि माननार नास्तिकवादीओनो मत खंडित थयो’ ‘तथा पुरुषने (जीवने) अपरिणामी माननार सांख्यवादीओनो व्यवच्छेद. आत्मा छे ते बदलतो नथी कायम एकरूप रहे छे. एवा मतनो व्यवच्छेद थयो. छे ने..? परिणमनस्वभाव कहेवाथी थयो.
‘नैयायिको अने वैशेषिको सत्ताने नित्य ज माने छे’ - सत् छे एने एक ज रूपे माने. ‘बौद्धो सत्ताने क्षणिक ज माने छे’ - एकसमयनी सत्तावाळुं ज द्रव्य माने.
‘तेमनुं निराकरण सत्ताने उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप कहेवाथी थयुं.’ अर्थ आ पंडिते कर्यो छे! उत्पाद-व्यय सांख्य मानता नथी. बौद्ध ध्रुव मानता नथी. ई बेयनो निषेध थयो! उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप ज वस्तु छे. एकसमयमां ज ई उत्पादव्ययध्रुव छे एवो ई जीव नामनो पदार्थ छे.
विशेष कहेशे... प्रमाण वचन गुरुदेव!
परने जाणवानो स्वभाव ज अंदर जाणवामां आव्यो-प्रसर्यो छे. (प्रव. रत्ना.
भाग-८, पानुं-१९प)
छे तो पण तेने ज्ञेयकृत ज्ञान थयुं छे तेम नथी पण तेने ज्ञानकृत ज्ञान छे...
स्वपरप्रकाशक शक्तिने लईने ज्ञान ज्ञानने जाणे छे, ज्ञेयने जाणे छे तेम कहेवुं ए
तो व्यवहार छे. रागने जाणतां जे ज्ञेयाकारे जणायो ते आत्मा जणायो छे, राग
जणायो नथी. (आत्मधर्म अंक-६३६)