१८ श्री प्रवचन रत्नो-१ अनंत छे अने ते गुणो एकगुण ज्यां व्यापक छे त्यां अनंतगुणो व्यापक छे. एम कह्युं ने...! ए अनंतधर्मोमां रहेलुं एकधर्मीपणुं.
ए वस्तु ज छे आत्मा, एना गुणो अनंत, पण ते अनंतधर्मोनुं रूप एकधर्मीपणुं ते द्रव्य छे. आहा.. हा! एटले? ए धर्मो अनंत.. एनो कोई अंत नहीं. अने ए धर्मोमां दरेक धर्म व्यापक छे. एटले? के अनंतगुणो छे आत्मामां, तो ज्ञान छे उपर छे ने दर्शन हेठे, चारित्र हेठे शांति हेठे वीर्य हेठे एम एमां क्षेत्रभेद नथी. समजाणुं कांई...?
ज्यां ज्ञान छे त्यां दर्शन छे. आम व्यापक छे. एकेक गुणो अनंतधर्मोमां व्यापक छे. एकेक गुणो अनंतधर्मोमां रहेल छे. जेम आ रजकणो छे. उपरनुं रजकण ते नीचला रजकणनी हारे नथी, नीचलुं उपरनी हारे नथी. एम आत्मामां नथी. आत्मामां अनंत गुणो एमां एक गुण उपर छे ने पछी छे ने पछी छे ने एम नथी. पण अनंतगुणनो पिंड आम छे एम नथी एक-एक गुण सर्वगुणमां व्यापक छे.
आहा.. हा! जेम केरीमां रंगथी देखो तो सारी (आखी) केरी व्यापक छे. गंधथी देखोतो आखी केरी (गंधमय) व्यापक छे. केरी रसथी देखो तो आखी केरी व्यापक छे ने स्पर्शथी देखो तो आखी केरी स्पर्शमय व्यापक छे. एम नथी के केरीनो रस छे ए उपर रहे छे ने गंध छे ते हेठे छे, स्पर्श हेठे छे एम भाग नथी. समजाणुं कांई...?
गहन विषय छे! ए अनंता धर्मोमां रहेलुं एक धर्मी (पणुं) द्रव्य, अनंतधर्मोमां व्यापनारुं एम. आहा..! जेम धर्म एक अनंतमां व्यापक छे एम धर्मी-द्रव्य अनंतगुणमां व्यापक छे. आहा..! ‘अनंतधर्मोमां रहेलुं जे एक धर्मी पणुं तेने लीधे जेने द्रव्यपणुं प्रगट छे.’ - वस्तु ते प्रगट छे आहाहा’ कारणके अनंतधर्मोनी एकता ते द्रव्यपणुं छे’ ए खुलासो कर्यो (कौंस आपीने) कौंसमां ओलुं जरी चैतन्यनुं परिणमन नाख्युं छे ने... खरेखर तो नित्यदर्शनज्ञानस्वरूप सिद्ध करवुं छे आंही, आंही परिणमन सिद्ध नथी करवुं.
परिणमन सिद्ध नथी करवुं आंही तो वस्तु आवी छे एटलुं बस एटलुं! ई पछी स्थित केम थाय ई पछी परिणमननी दशा, ए पछी कहेशे. जे आ कौंसमां छे ने...? ‘कारणके चैतन्यनुं परिणमन दर्शनज्ञानस्वरूप छे’ (एम लख्युं छे) ई त्यां मेळ नथी खातो. शुं कह्युं समजाणुं?
आ नित्य केवुं छे ने आंही. वस्तु-जीव-पदार्थ, त्रिकाळजीवपदार्थ केवो छे? ए लई अने पछी ए स्थित थाय छे दर्शनज्ञानचारित्रमां ए परिणमन छे. समजाणुं कांई..? पाठे य छे ने... जुओ ने..! ‘चैतन्यस्वरूपपणाथी नित्य, उद्योतरूप, निर्मळ स्पष्ट दर्शनज्ञान-ज्योतिस्वरूप छे’ (आ पाठ छे)
अने आमां अनंतधर्मोमां रहेलुं ओहो हो! जे एक धर्मीपणुं तेन लीधे जेने द्रव्यपणुं प्रगट छे. केमके अनंत धर्मोनी एकता ते द्रव्यपणुं छे आ विशेषणथी वस्तुने धर्मोथीरहित-गुणोरहित माननार बौद्धमतीनो निषेध थयो. आ जीव-पदार्थ, जीवो ए शब्द छे ने..! एनी व्याख्या करे छे आ. ‘जीवो’ पछी चरित्तदंसणणाण ठिदो ए पछी पर्यायनी व्याख्या चालशे. समजाणुं कांई...?
आम तो जुवानिया सांभळे छे ने... आ तो आत्मानी वात छे आहा.. हा! एक कोर ‘तत्त्वार्थसूत्र’ मां एक कहे के उदयभाव ते जीव छे. छे ने..? तत्त्वार्थसूत्र पहेलो अध्याय.