श्री प्रवचन रत्नो-१ १७
समयसार गाथा बे. पहेलो एक बोल चाल्यो छे. जीव केवो छे? ‘जीव-पदार्थ केवो छे? छे ने...? (टीकामां) ‘आ जीव-पदार्थ केवो छे?’ ए एक बोल चाल्यो.
बीजो बोल. ‘वळी जीव केवो छे?’ छे? वचमां. ‘नैयायिको अने वैशेषिको सत्ताने नित्य ज माने छे अने बौद्धो सत्ताने क्षणिक ज माने छे; तेमनुं निराकरण सत्ताने उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप कहेवाथी थयुं’ त्यां सुधी तो आवी गयुं छे.
‘वळी जीव केवो छे? चैतन्यस्वरूपपणाथी’ -एनुं स्वरूप तो चैतन्य छे. जाणवुं-देखवुं एनुं कायम स्वरूप छे. ‘चैतन्यस्वरूपपणाथी नित्य उद्योतरूप छे’ चैतन्यना स्वरूपथी जीव नित्य प्रकाशमान छे. केवो छे जीव? के चैतन्यस्वरूपपणाथी नित्य प्रकाशमान, निर्मळ उद्योतरूप स्पष्ट-उद्योतरूप... निर्मळ अने स्पष्ट! ‘दर्शनज्ञान-ज्योतिस्वरूप छे’ ए त्रिकाळनी वात करी. त्रिकाळी तत्त्व आवुं छे.
ए हवे ठरे छे क्यारे शेमां, ए पछी लेशे. आवी चीज छे! ए दर्शनज्ञानमां स्थित थाय, तो एने स्वसमय कहेवाय एम सिद्ध करवुं छे.
आहा.. हा! नित्य उद्योतरूप निर्मळ स्पष्ट-प्रत्यक्ष दर्शनज्ञान ज्योतिस्वरूप छे. ई तो प्रत्यक्षदर्शनज्ञानज्योति त्रिकाळस्वरूप एनुं छे. नित्यउद्योतनिर्मळ छे. एवुं ई जीवद्रव्य छे एम सिद्ध करवुं छे. जीव-पदार्थ आवो छे. पछी शेमां स्थित थाय ए पछी कहेशे ए पर्यायमां.
‘आ विशेषणथी चैतन्यने ज्ञानाकारस्वरूप नहि माननार सांख्यमतीओनो निषेध थयो. कौंसमां कह्युं के कारणके चैतन्यनुं परिणमन दर्शन ज्ञानस्वरूप छे. चैतन्य लेवो छे ने...! ‘जाणनार- देखनार’ एनुं परिणमन दर्शनज्ञानरूप छे. चैतन्यनुं परिणमन दर्शनज्ञानरूप छे.
(श्रोताः) त्रणे काळे जीव केवो छे ते बताववुं छे? (उत्तरः) त्रणे काळे जीवद्रव्य छे ए चैतन्यस्वरूपपणाने लईने नित्य उद्योतरूप निर्मळ स्पष्ट दर्शनज्ञान-ज्योतिस्वरूप छे. एटले के चैतन्यनुं परिणमन दर्शनज्ञानस्वरूप छे. परिणमन नाख्युं अंदर एमां. आम तो त्रिकाळी बताववुं छे. त्रिकाळी दर्शनज्ञानस्वरूप छे. एनुं परिणमन दर्शनज्ञानमय छे.
आहा.. हा! अहींयां तो त्रिकाळी चैतन्य द्रव्यनी द्रष्टि करावीने, चैतन्यने अंर्त दर्शनज्ञानमां स्थित थयेलो ए आत्मा छे एम जणाववुं छे. त्रीजो बोल! वळी ते केवो छे प्रभु! जीव द्रव्य? ‘अनंत धर्मोमां रहेलुं जे एक धर्मीपणुं ‘आहा.. हा! अनंतथगुणोरूपी धर्मी! आहा..! अनंतगुणोरूपी धर्मी एमां जे रहेलुं एक धर्मीपणुं द्रव्य एक. अनंतगुणोमां केमके अनंतधर्म एवो एक एनो गुण छे. एथी अनंतधर्मोमां रहेलुं (जे) एक धर्मीपणुं-एकद्रव्यपणुं. एक द्रव्यमां अनंता गुणो रह्यां छे एथी एकरूप ते द्रव्य अनंतधर्मोमां एकरूपी धर्मी ते द्रव्य. छे ने...? ‘अनंतधर्मोमां रहेलुं’ - धर्म शब्दे गुणने पर्याय अथवा त्रिकाळीगुणो (एवा) ‘अनंतधर्मोमां रहेलुं जे एक धर्मीपणुं तेने लीधे जेने द्रव्यपणुं प्रगट छे’ कारण के अनंत धर्मोनी एकता ते द्रव्यपणुं छे.’ कोई जुदी चीज नथी. ज्ञान, दर्शन जे गुण अपार छे,