१६ श्री प्रवचन रत्नो-१ लक्षण छे एम.
अनुसरीने थवुं. उत्पाद-व्ययने ध्रुवने अनुसरीने थवुं एम. आहा.. हा! आहा.. हा.. हा! सदाय परिणमनस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप त्रणनी एकता एक समयमां! समयमां भेद नथी. जे समये ध्रुव छे ते समये उत्पाद-व्यय छे. जे समये उत्पाद-व्ययरूपे परिणमे छे ते समय ध्रुव अपरिणमन पणे पडयुं ज छे’
आहा.. हा.. हा! उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति जेनुं लक्षण छे ‘एवी सत्ताथी जीव सहित छे’. आ जीवपदार्थ केवो छे? न्याथी शरू कर्युं! तो शरू करीने आंही लई लीधुं ‘सदाय परिणमन स्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप-एकसमयमां अनुभूति- ए रूपे थवुं ‘जेनुं लक्षण छे एवी सत्ताथी सहित छे.
उत्पाद-व्यय ने ध्रुव त्रणेय सत् छे. ई सत्ता छे, त्रणे य सत्ता! ते त्रण सत्ताथी ते जीव सहित छे. ते जीवनुं कही, केवो जीव? एनी व्याख्या करी. आहा..! समजाणुं?
‘आ विशेषणथी जीवनी सत्ता नहि माननार नास्तिकवादीओनो मत खंडित थयो’ ‘तथा पुरुषने (जीवने) अपरिणामी माननार सांख्यवादीओनो व्यवच्छेद. आत्मा छे ते बदलतो नथी कायम एकरूप रहे छे. एवा मतनो व्यवच्छेद थयो. छे ने..? परिणमनस्वभाव कहेवाथी थयो.
‘नैयायिको अने वैशेषिको सत्ताने नित्य ज माने छे’ - सत् छे एने एक ज रूपे माने. ‘बौद्धो सत्ताने क्षणिक ज माने छे’ - एकसमयनी सत्तावाळुं ज द्रव्य माने.
‘तेमनुं निराकरण सत्ताने उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप कहेवाथी थयुं.’ अर्थ आ पंडिते कर्यो छे! उत्पाद-व्यय सांख्य मानता नथी. बौद्ध ध्रुव मानता नथी. ई बेयनो निषेध थयो! उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप ज वस्तु छे. एकसमयमां ज ई उत्पादव्ययध्रुव छे एवो ई जीव नामनो पदार्थ छे.
विशेष कहेशे... प्रमाण वचन गुरुदेव!
परने जाणवानो स्वभाव ज अंदर जाणवामां आव्यो-प्रसर्यो छे. (प्रव. रत्ना.
भाग-८, पानुं-१९प)
छे तो पण तेने ज्ञेयकृत ज्ञान थयुं छे तेम नथी पण तेने ज्ञानकृत ज्ञान छे...
स्वपरप्रकाशक शक्तिने लईने ज्ञान ज्ञानने जाणे छे, ज्ञेयने जाणे छे तेम कहेवुं ए
तो व्यवहार छे. रागने जाणतां जे ज्ञेयाकारे जणायो ते आत्मा जणायो छे, राग
जणायो नथी. (आत्मधर्म अंक-६३६)