Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री प्रवचन रत्नो-१ १प तो.. सर्वज्ञ त्रिलोकनाथ, जेमनी पासे एकभवमां मोक्ष जनारां ईद्रो सांभळे छे. ए गलूडियांनी जेम सभामां बेठां होय छे आहा..! हा! ए कोई वारता नथी. कथा नथी ए चैतन्य हीरलानी वातुं चैतन्यमणीनी वातुं छे प्रभु!

आहा..! ए चैतन्य हीरो! केवो छे? आहाहा! कहे छे.. ‘सदाय परिणमन’ एनी पर्यायनुं बदलवुं सदाय छे. आहा.. हा! एक धारावाही सदाय परिणमे छे! परिणमे.. पर्याय.. पर्याय.. पर्याय.. उत्पाद... व्यय.. उत्पाद.. व्यय थया ज करे. नवी उत्पाद थाय, जूनी व्यय थाय.. बीजे समये नवी उत्पन्न थाय... व्यय थाय एम परिणमन सदाय.. क्रमसर! आहा.. जुओ आमां कमसर पण नीकळे छे!

आहा..! ‘सदाय परिणमनस्वरूप, स्वभावमां रहेलो-ध्रुव! आहाहा! ए परिणमनस्वरूप उत्पाद-व्यय अने स्वभावमां रहेलो ए ध्रुव! आहाहा! ए उत्पाद-व्यय ने ध्रुव स्वरूपमां रहेलो छे एटले के परिणमनमां रह्यो छे ए उत्पाद-व्यय अने ध्रुवमां रह्यो छे ई कायमनुं नित्य स्वरूप आहा.. हा!

टकतुं ने बदलतुं, बे स्वरूपे छे. नित्य परिणामी! ध्रुवउत्पादव्यय! आहा.. हा! अरे! एणे पोतानी चीजने अने ते सर्वज्ञ परमेश्वरे, केवळी परमेश्वरे कही छे ए वात एणे सांभळवा दरकार करी नथी. आहा..! अने आवुं स्वरूप, दिगंबर संत सिवाय क्यांय छे नहीं. बधे ऊंधुं ज मार्युं छे लोकोए एक्केएके!

आहा.. हा! परीक्षा नथी त्यां गोळ ने खोळ सरखुं! हें? आहा.. हा! जेनी एक एक कडीने एक-एक लीटी, पार पामे नहीं एटली वस्तु छे एमां.

आहा.. हा! कहे के समयसार अमे वांची ग्या! वांच्या बापा!! (श्रोताः) शब्दो वांच्या, भाव समज्या विना (उत्तरः) शब्दो वांच्यानी शुं थ्युं भाई, अंदर भाव शुं छे ए ख्यालमां न आवे, ए वांच्या ई वांच्युं शुं? गडियो गोख्ये ग्यो! ए गडियानी भाषा बीजी कहेशे (हिन्दी श्रोताः) पाडा. (उत्तरः) पाडा. (चंदुभाई रात्रे नहोताने अत्यारेय नथी) बेयमां नहोता आवी वात जिंदगीमां पहेली कहेवाणी छे. भाव अने छेडाविनाना भाव, छेडां विनानी पर्याय/कार्य एकहारे भले हो! छेडा विनाना अविभाग प्रतिच्छेद! छतां ते ज्ञाननी पर्याय एनो अंत लई ल्ये छे, ‘जाणे छे’ एम कीधुं ने..!

अनंता द्रव्योनुं ध्रुवपणुं अने अनंता द्रव्योनुं उत्पाद-व्ययपणुं, आंही आत्मानी वात करे छे पण आत्मानी पर्यायमां, अनंता द्रव्योना गुणपर्यायो परिणमनमां जणाई जाय छे. ए ज्ञाननापरिणमनमां जणाई जाय छे.

आहा..! एना पोताना अस्तित्वमां ज अनंता द्रव्यगुणपर्यायो, ए ज्ञाननी पर्यायनुं परिणमन थतां तेमां जणाई जाय छे.

आहा... हा! ‘सदाय परिणमनस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति’ शुं कीधुं जोयुं? परिणमन छे उत्पाद व्ययनुं-उत्पाद-व्यय उत्पाद-व्यय एकसमयमां, ध्रुवपण एक समयमां. ए त्रणनी एकतारूप अनुभूति-त्रणनुं एकपणे थवुं, त्रणनुं एकपणे थवुं जेनुं