Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४ श्री प्रवचनो रत्नो-१

आहाहा... हा! एवो आत्मा... केटलो-केवडो छे अने ई केवडो आत्मा? एक समयमां अनंता गुणोनो छेडो नहीं. छेल्लो नहीं, एनुं परिणमन करे अने ते ज समये ज्ञान करे! एकत्वपूर्वक बेनी क्रिया करे! काळभेद नहीं.

आहा.. हा! (प्रश्न) भई! जे वखते परिणमे छे ए वखते जाणे एने? अने ज्ञानपण जे वखते परिणमे छे ते वखते एने जाणे?

(उत्तरः) के हा. ज्ञान पोते परिणमे पण छे, परिणमननुं तो ज्ञाननुं आवी गयुं ने..! बधां गुणो परिणमे छे तो आ ज्ञान पण परिणमे एम आवी गयुं. अने साथे जाणे पण छे. परिणमे छे ने जाणे छे!! जे समये परिणमे छे ते समये जाणे छे! तेथी एकत्वपूर्वक करे छे एम कीधुं ने..!

आहा.. हा! आवी वात छे बापा.. झीणी! सर्वज्ञ त्रिलोकनाथनी प्रमाणथी वात नीकळी छे. आहा..! गणधरो! संतो, केवळीना निकटवासीओ! नजीकमां रहीने सांभळेला. अने अनुभवेला! आहा.. हा! एनुं कहेलुं ‘आ’ शास्त्र छे. तेथी ए ‘प्रमाणभूत’ छे.

आहा.. हा.. हा! समजाणुं कांई...? आहा..! ‘एक ज वखते परिणमे पण छे परिणमे एमां ज्ञानपण भेगुं परिणमे, ई आवी ग्युं ने.. आहाहा..! एक ज समये ज्ञान परिणमे छे ने अनंतगुणो परिणमे छे. पण एक ज समये ज्ञान परिणमतुं ज्ञानने जाणे छे अने बधांने जाणे छे? आहा.. हा!

एक ज समये परिणमे अने जाणे! अने एकत्वपूर्वक जाणे पण छे पण बधाने हो?! जे समये परिणमन थाय छे पोतानुं ने बधां गुणोनुं, ते ज समये तेने जाणे छे. आहाहा..! हजी तो.. आत्मा कहेवो कोने...? खबरुं न मळे ने... एने धरम थई जाय ने! आहा...! रखडपट्टी करी-करीने मरी गयो चोराशीना अवतारमां! एवां तो अनंतवार अवतार कर्यां शास्त्रो पण जाण्यां– वांच्यां! पण आ भाव... आ रीते छे ए अंदर परिणम्यो नहीं. एम कीधुं आंही.

आंही ‘परिणमन कीधुं ने..! आहा.. हा! ‘एकत्वपूर्वक एक ज समयमां पोतानुं ज्ञाननुं ने अनंतगुणनुं परिणमन एक समयमां, ते ज समये ते बधानुं ज्ञान पण ते समये करे. आहा.. हा! परिणमवुं ने ज्ञान करवुं एक ज समयमां छे. परिणमे छे ने पछी जाणे छे एम नथी. आहाहा.. हा! समजाणुं कांई...?

आवी वात छे! जैन धर्म!! आ जैन धरम! आहा.. ‘एकत्वपूर्वक एक ज वखते परिणमे पण छे अने जाणे पण छे ‘तेथीते समय छे’ आहा.. हा!

‘आ जीव-पदार्थ केवो छे? सदाय परिणामस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी’ .. आहा.. सदाय परिणमनस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी- ते तेनो स्वभाव छे, अने ते स्वभावमां रहेलो छे. ‘उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति जेनुं लक्षण छे एवी सत्ताथी सहित छे.’ त्रण लीधां (लक्षण)

‘सदाय परिणमन स्वरूप स्वभावमां रहेलो’ परिणमन छे ई उत्पाद-व्यय-स्वभावमां छे ए ध्रुव! आहा..! छे? ‘सदाय परिणमन स्वरूप’ बापु! आ तो मंत्रो छे. आ कांई वारता नथी. आ