Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration). Prastavna.

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प्रास्ताविक

प्रवचन रत्नो-१ पुस्तक परम उपकारी अध्यात्म युग स्रष्टा पूज्य गुरुदेवश्रीना श्री समयसारजी परमागम शास्त्र उपरना १९ मी वारना- अंतिम वारना अंतरना ऊंडाणमांथी अंदरमांथी आवेला भावोने भाषामां व्यक्त करता प्रवचनो छे. धन्य पळे रचाई गयेल अने भारतना अति निकट भविजनो माटे जळवाई रहेल आ अद्वितीय अध्यात्म शास्त्रनी गाथा-र, ६, अने ७प उपरना पूज्यश्रीना प्रवचनो केसेटोमांथी अक्षरसः आ पुस्तकमां उतारवामां आवेल छे.

जीव अनादिकाळथी पोताना स्वसमयरूप स्वरूपने यथार्थपणे समज्यो नथी ते समजावीने तेनुं परप्रदेशे स्थितपणुं केम छूटे ए दर्शाववानो प्रयत्न गाथा-र उपरना प्रवचनोमां करवामां आव्यो छे.

गाथा ६, ७प तथा परिशिष्टरूपे पांच प्रवचनोनुं संकलन वर्तमानमां बहुचर्चित ज्ञ स्वभाव, ज्ञाननुं स्व-पर प्रकाशक सामर्थ्य तथा ज्ञाननी स्वज्ञेय- परज्ञेयनी जाणवानी रीत संबंधी स्पष्टीकरण पू. गुरुदेवश्रीना स्वमुखेथी थयुं छे ते दर्शावे छे.

स्व-पर प्रकाशकपणानी शक्तिनुं अर्थघटन ज्ञान स्वने जाणे तेमज परने जाणे एम जे करवामां आवे छे तेमां कांईक मार्मिक वात आत्मार्थी जीवोना चिंतनना बाकी रही गई होय तेम लागे छे. पू. गुरुदेवश्री ज्यारे वारंवार तेओश्रीना मंगल प्रवचनोमां एम स्पष्ट रीते फरमावता होय के ज्ञान परने खरेखर जाणतुं नथी परंतु ज्ञान तो ज्ञानने ज जाणे छे. परने जाणे छे एम कहेवुं ए तो असद्भूत व्यवहारनयनुं कथन छे. खरेखर तो स्व संबंधी अने परसंबंधीनुं ज्ञान ज ज्ञानमां निरंतर जाणवामां आवी रह्यु छे. आ स्पष्ट भाषाना सूचितार्थने श्री बनारसीदासजी जेवा अनुभवी पुरुषना आ कथन साथे मेळवतां मर्म उपर लक्ष गया विना रहेतुं नथी. तेओ श्री फरमावे छे के “स्वपर पकाशक शक्ति हमारी, ता तै वचन भेद भ्रम भारी”. आ कथनमां कांईक रहस्य पऽयुं छे एम लागे छे. स्वपर प्रकाशतानो अर्थ ज्ञान स्वने जाणे तेमज परने जाणे एवो जो खरेखर थतो होत तो “ता तै वचन भेद भ्रम भारी” लखवानी आवश्यक्ता ज न रहेत. परंतु स्व पर प्रकाशक शक्तिनो अर्थ ज्ञान स्वने जाणे तेमज परने जाणे एम करतां भारे भ्रम पेदा थाय छे ए शब्दो एवुं सूचवतां जणाय छे के अनंत सामर्थ्य संपन्न भगवान आत्माना अखंड अमूर्तिक असंख्य आत्म प्रदेशोमां ज्ञाननी जाणनक्रिया साथे सहवर्तीपणे स्वपरने प्रकाशती कोई अद्भूत प्रक्रिया निरंतर वर्त्या करे छे जे स्वपर प्रकाशकतानी आत्मानी एक शक्तिने जाहेर करे छे अने आ शक्तिनी अभिव्यकित थती रहेती होवाथी स्वज्ञेय - परज्ञेय बंने संबंधीनुं ज्ञान ज्ञाननी पर्यायमां ज्ञाननी पर्याय जणांता सहजपणे थया करे छे. मंथननी भूमिकामां आ प्रक्रिया संबंधी ऊंडाणथी विचारतां एवुं स्पष्ट स्वीकृत थायछे के जाणवानी प्रक्रियारूपे ज्ञाननी पर्यायमां पर्याय ज जणाय छे ए पण सद्भूत व्यवहारनुं कथन छे तो ज्ञानमां ज्ञान ज निरंतर जाणवामां आवी रहेल छे, पर नही. वळी बीजो न्याय पूज्यश्रीए दर्शावी रह्या छे के ज्ञाननी पर्याय जेमां तन्मय थाय तेने ज जाणे छे. हवे पर्याय भिन्न सत्तावाळा परपदार्थोमां तो तन्मय थई शके नहि तेथी खरेखर परने ज्ञाननी पर्याय जाणी शके