ज नहि. ज्ञाननी पर्याय पोतामां तन्मय होवाथी पोताने ज जाणे अने अभेद विवक्षाथी प्रयोजननी सिद्धि माटे विचारीए तो ज्ञाननी पर्याय ज्ञायक साथे तन्मय-अभेद परिणमे छे तेथी खरेखर तो ज्ञानमां ज्ञायक ज जणाय छे. आम जाणनार ज जणाय छे अने पर खरेखर जणातुं नथी ए पूज्य गुरुदेवश्रीनुं ज मंत्रकथन छे अने आ कथन स्वीकारवुं ज रह्युं.
पूज्य गुरुदेवश्री पूर्वभवमां विदेहक्षेत्रे साक्षात् बिराजमान सीमंधर परमात्मा जे जीवंत स्वामी सर्वज्ञदेव छे तेमनी वाणी प्रत्यक्ष सांभळीने अहीं पधारेला तेमज वर्तमानकाळे भरत क्षेत्रमां अवतरीने स्वयंबुद्धत्व थई निज चैतन्य भगवानना दर्शन पामेल तथा भावि तीर्थंकरनुं द्वव्य होवाथी तेमनी जे वाणी नीकळी ते अतिशयताथी भरेली हती. ते अनुभवमांथी आवेली दिव्य वाणीना न्यायो मर्मस्पर्शी होवाथी सर्व आत्मार्थी भव्यजनोए ऊंडाणथी मंथन करीने समजीने स्वीकारवा योग्य छे.
आ पुस्तकना प्रकाशन पाछळ पू. गुरुदेवश्रीनी वाणी द्वारा जाणवानी प्रक्रियानी स्पष्ट समजण थाय अने कोई विवादने अवकाश न रहेतां आपणे बधा गुरुभक्तो आत्मार्थने साधी वर्तमान मनुष्य-भव सार्थक बनाववा सक्षम बनीए ए ज एकमात्र पवित्र भावना तेमज प्रयोजन छे.
आ पुस्तकनी रचना थाय ते माटे केसेटोमांथी अक्षरशः गुरुवाणीने कागळ उपर उतारवानी घणीज महेनत मागी लेती कामगिरि श्रीदेवशीभाई चावडा, श्रीविनुभाई महेता तथा श्रीजयेशभाई बेनाणी द्वारा करवामां आवेल छे ते सौ प्रथम आभार मानवा योग्य आत्मार्थी सहकारीओ छे. तेमना सहकार विना आ कार्य शक्य ज न बन्युं होत. वळी छेल्ला आठेक महिनाथी पू. गुरुदेवश्रीना १९ मी वारना श्रीसमयसारजी शास्त्र उपरना प्रवचनोनी केसेटो हुं सांभळुं छुं तेमांथी उद्भवेला आ प्रकाशन माटेना भावने प्रेरणा पूरी पाडवानुं कार्य परम आदरणीय वडील आत्मार्थी भाईश्री लालचंदभाई मोदीनो तो हुं अत्यंत ऋणी छुं. आर्थिक व्यवस्था गोठवी आपवामां तेओश्रीए तेमज वडील आत्मार्थी भाईश्री शांतिभाई झवेरीए जे निश्चिंतता मारामां भरी दीधी ते बदल तेओश्रीनो आभार तो मानुं ज छुं तथा तेओश्रीना प्रयासोथी जेओ आ प्रकाशनमां आर्थिक सहयोग आपीने सहायक बन्या छे ते सर्व गुरुभक्तोना पण अंतःकरणपूर्वक आभार मानुं छुं. आ प्रकाशन माटेनी संपूर्ण आर्थिक सहाय बृहद् मुंबईना आत्मार्थी मुमुक्ष भाईबहेनो तरफथीज पूरी पाडवामां आवेल छे.
आ पुस्तकमां संग्रहित पू. गुरुदेवश्रीना महाप्रवचनोनो आत्मार्थना ज एकमात्र प्रयोजनपूर्वक निज स्वभावना लक्षे भव्य आत्मार्थीओ स्वाध्याय करे ए हेतुथी आ प्रकाशननी कोई वेंचाण किंमत न राखतां स्वाध्याय माटे पात्र जीवो ने आ पुस्तक प्राप्त थाय एवुं आयोजन करवामां आवेल छे. आ पण जिनवाणी उपरनी वाणी छे तेथी तेनी अशातना न थाय तेनुं लक्ष राखवानुं योग्य छे.