Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 66.

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विषयानभिपतद्भिरसमीचीनवृत्तितामनुभवन्नुपरुद्धशक्तिसारेणापि ज्ञानदर्शनवीर्यात्मकेन निश्चय- कारणतामुपागतेन स्वभावेन परिणममानः स्वयमेवायमात्मा सुखतामापद्यते शरीरं त्वचेतन- त्वादेव सुखत्वपरिणतेर्निश्चयकारणतामनुपगच्छन्न जातु सुखतामुपढौकत इति ।।६५।।

अथैतदेव दृढयति

एगंतेण हि देहो सुहं ण देहिस्स कुणदि सग्गे वा

विसयवसेण दु सोक्खं दुक्खं वा हवदि सयमादा ।।६६।। फासेहिं समस्सिदे स्पर्शनादीन्द्रियरहितशुद्धात्मतत्त्वविलक्षणैः स्पर्शनादिभिरिन्द्रियैः समाश्रितान् सम्यक् प्राप्यान् ग्राह्यान्, इत्थंभूतान् विषयान् प्राप्य स कः अप्पा आत्मा कर्ता किंविशिष्टः सहावेण परिणममाणो अनन्तसुखोपादानभूतशुद्धात्मस्वभावविपरीतेनाशुद्धसुखोपादानभूतेनाशुद्धात्मस्वभावेन परिणममानः इत्थंभूतः सन् सयमेव सुहं स्वयमेवेन्द्रियसुखं भवति परिणमति ण हवदि देहो देहः


विषयो तरफ धसती इन्द्रियो वडे असमीचीन -परिणतिपणुं अनुभवतो होवाथी, जेनी शक्तिनी उत्कृष्टता (परम शुद्धता) रोकाई गई छे एवा पण (पोताना) ज्ञानदर्शन- वीर्यात्मक स्वभावेके जे (सुखना) निश्चय -कारणरूप छेपरिणमतो थको स्वयमेव आ आत्मा सुखपणाने पामे छे (सुखरूप थाय छे); अने शरीर तो अचेतन ज होवाथी सुखत्वपरिणतिनुं निश्चय -कारण नहि थतुं थकुं जराय सुखपणाने पामतुं नथी.

भावार्थःसशरीर अवस्थामां पण आत्मा ज सुखरूप (इन्द्रियसुखरूप) परिणतिए परिणमे छे, देह नहि; तेथी त्यारे पण (सशरीर अवस्थामां पण) सुखनुं निश्चय कारण आत्मा ज छे अर्थात् इन्द्रियसुखनुं पण वास्तविक कारण आत्मानो ज अशुद्ध स्वभाव छे. अशुद्ध स्वभावे परिणमतो आत्मा ज स्वयमेव इन्द्रियसुखरूप थाय छे. तेमां देह कारण नथी; कारण के सुखरूप परिणति अने देह तद्दन भिन्न होवाने लीधे सुखने अने देहने निश्चयथी कार्यकारणपणुं बिलकुल नथी. ६५.

हवे आ ज वातने द्रढ करे छेः

एकांतथी स्वर्गेय देह करे नहीं सुख देहीने,
पण विषयवश स्वयमेव आत्मा सुख वा दुःख थाय छे. ६६.

११प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

१. असमीचीन = असम्यक्; अठीक; अयोग्य.
२. इन्द्रियसुखरूपे परिणमनार आत्माने ज्ञानदर्शनवीर्यात्मक स्वभावनी उत्कृष्ट शक्ति रोकाई गई छे
अर्थात् स्वभाव अशुद्ध थयो छे.