Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अंतरंग -बहिरंग छेद, उपधिनिषेध, उत्सर्ग -अपवाद, युक्ताहारविहार, एकाग्रतारूप मोक्षमार्ग,
मुनिनुं अन्य मुनिओ प्रत्येनुं वर्तन वगेरे अनेक विषयो आमां युक्ति सहित समजाववामां आव्या
छे. ग्रंथकार अने टीकाकार आचार्ययुगले चरणानुयोग जेवा विषयनुं पण, आत्मद्रव्यने मुख्य
राखीने, शुद्धद्रव्यावलंबी अंतरंग दशा साथे ते ते क्रियाओनो अथवा शुभ भावोनो संबंध दर्शावतां
दर्शावतां, निश्चय -व्यवहारनी संधिपूर्वक एवी चमत्कृतिथी वर्णन कर्युं छे के आचरणप्रज्ञापन जेवा
अधिकारमां पण जाणे के कोई शांतरसझरतुं अध्यात्मगीत गवाई रह्युं होय एम ज लाग्या करे
छे. आत्मद्रव्यने मुख्य राखीने आवुं मधुर, आवुं सयुक्तिक, आवुं प्रमाणभूत, साद्यंत
शांतरसनिर्झरतुं चरणानुयोगनुं प्रतिपादन अन्य कोई शास्त्रने विषे नथी. हृदयमां भरेला
अनुभवामृतमां रगदोळाईने नीकळती बन्ने आचार्यदेवोनी वाणीमां कोई एवो चमत्कार छे के
जे जे विषयने ते स्पर्शे ते ते विषयने परम रसमय, शीतळ शीतळ, सुधास्यंदी बनावी दे छे.

आम त्रण श्रुतस्कंधोमां विभाजित आ परम पवित्र परमागम मुमुक्षुओने यथार्थ वस्तुस्वरूप समजवामां महा निमित्तभूत छे. जिनशासनना अनेक मुख्य मुख्य सिद्धांतोनां बीज आ शास्त्रमां रहेलां छे. आ शास्त्रमां प्रत्येक पदार्थना स्वातंत्र्यनो ढंढेरो छे, दिव्यध्वनि द्वारा नीकळेला अनेक प्रयोजनभूत सिद्धांतोनुं दोहन छे. गुरुदेव अनेक वार कहे छेः ‘श्री समयसार, प्रवचनसार, नियमसार आदि शास्त्रोनी गाथाए गाथाए दिव्यध्वनिनो संदेश छे. ए गाथाओमां एटली अपार ऊंडप छे के ते ऊंडप मापवा जतां पोतानी ज शक्ति मपाई जाय छे. ए सागरगंभीर शास्त्रोना रचनार परम कृपाळु आचार्यभगवाननुं कोई परम अलौकिक सामर्थ्य छे. परम अद्भुत सातिशय अंतर्बाह्य योगो विना ए शास्त्रो रचावां शक्य नथी. ए शास्त्रोनी वाणी तरता पुरुषनी वाणी छे एम स्पष्ट जाणीए छीए. एनी दरेक गाथा छठ्ठा सातमा गुणस्थाने झूलता महामुनिना आत्म -अनुभवमांथी नीकळेली छे. ए शास्त्रोना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव महाविदेहक्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधर भगवानना समवसरणमां गया हता अने त्यां तेओ आठ दिवस रह्या हता ए वात यथातथ्य छे, अक्षरशः सत्य छे, प्रमाणसिद्ध छे. ते परम उपकारी आचार्यभगवाने रचेलां समयसार, प्रवचनसारादि शास्त्रोमां तीर्थंकरदेवना ॐकारध्वनिमांथी ज नीकळेलो उपदेश छे.’

आ शास्त्रमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनी प्राकृत गाथाओ पर तत्त्वदीपिका नामनी संस्कृत टीका लखनार (लगभग विक्रम संवतना १०मा सैकामां थई गयेला) श्री अमृतचंद्राचार्यदेव छे. जेम आ शास्त्रना मूळ कर्ता अलौकिक पुरुष छे तेम तेना टीकाकार पण महासमर्थ आचार्य छे. तेमणे समयसारनी तथा पंचास्तिकायनी टीका पण लखी छे अने तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि स्वतंत्र ग्रंथो पण रच्या छे. तेमनी टीकाओ जेवी टीका हजु सुधी बीजा कोई जैन ग्रंथनी लखायेली नथी. तेमनी टीकाओ वांचनारने तेमनी अध्यात्मरसिकता, आत्मानुभव, प्रखर विद्वत्ता, वस्तुस्वरूपने न्यायथी सिद्ध करवानी असाधारण शक्ति, जिनशासननुं अत्यंत ऊंडुं ज्ञान, निश्चय- व्यवहारनुं संधिबद्ध निरूपण करवानी विरल शक्ति अने उत्तम काव्यशक्तिनो पूरो ख्याल आवी