Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिणम्यो छे. जेमणे सिंचेली शक्तिथी अने जेमनी हूंफथी आ गहन शास्त्रनो अनुवाद करवानुं
में साहस खेड्युं हतुं अने जेमनी कृपाथी ते निर्विघ्ने पार पड्यो छे ते परम पूज्य परमोपकारी
सद्गुरुदेव(श्री कानजीस्वामी)नां चरणारविंदमां अति भक्तिभावे वंदन करुं छुं.

परम पूज्य बहेनश्री चंपाबेन प्रत्ये पण, आ अनुवादनी पूर्णाहुति करतां, उपकारवशतानी उग्र लागणी अनुभवाय छे. जेमनां पवित्र जीवन अने बोध आ पामरने श्री प्रवचनसार प्रत्ये, प्रवचनसारना महान कर्ता प्रत्ये अने प्रवचनसारमां उपदेशेला वीतरागविज्ञान प्रत्ये बहुमानवृद्धिनां विशिष्ट निमित्त थयां छे, एवां ते परम पूज्य बहेनश्रीनां चरणकमळमां आ हृदय नमे छे.

आ अनुवादमां अनेक भाईओनी हार्दिक मदद छे. माननीय मुरब्बी श्री वकील रामजीभाई माणेकचंद दोशीए पोताना भरचक धार्मिक व्यवसायोमांथी समय काढीने आखो अनुवाद बारीकाईथी तपास्यो छे, यथोचित सलाह आपी छे अने अनुवादमां पडती नानीमोटी मुश्केलीओनो पोताना विशाळ शास्त्रज्ञानथी निवेडो करी आप्यो छे. भाईश्री खीमचंद जेठालाल शेठ पण आखो अनुवाद चीवटथी तपासी गया छे अने पोताना संस्कृत भाषाना तेम ज शास्त्रोना ज्ञानना आधारे उपयोगी सूचनाओ करी छे. ब्रह्मचारी भाई श्री चंदुलाल खीमचंद झोबाळियाए हस्तलिखित प्रतोना आधारे संस्कृत टीका सुधारी आपी छे, अनुवादनो केटलोक भाग तपासी आप्यो छे, शुद्धिपत्रक, अनुक्रमणिका अने गाथासूचि तैयार कर्यां छे, तेम ज प्रूफ तपास्यां छे

एम विधविध मदद करी छे. आ सर्व भाईओनो हुं अंतःकरणपूर्वक आभार मानुं छुं. तेमनी सहृदय सहाय विना आ अनुवादमां घणी ऊणपो रही जवा पामत. आ सिवाय जे जे भाईओनी आमां मदद छे ते सर्वनो हुं ॠणी छुं.

आ अनुवाद में प्रवचनसार प्रत्येनी भक्तिथी अने गुरुदेवनी प्रेरणाथी प्रेराईने, निज कल्याण अर्थे, भवभयथी डरतां डरतां कर्यो छे. अनुवाद करतां शास्त्रना मूळ आशयोमां कांई फेरफार न थई जाय ते माटे में माराथी बनती तमाम काळजी राखी छे. छतां अल्पज्ञताने लीधे तेमां कांई पण आशयफेर थयो होय के भूलो रही गई होय तो ते माटे हुं शास्त्रकार श्री कुंदकुंदाचार्यभगवान, टीकाकार श्री अमृतचंद्राचार्यदेव अने मुमुक्षु वाचकोनी अंतरना ऊंडाणमांथी क्षमा याचुं छुं.

आ अनुवाद भव्य जीवोने जिनकथित वस्तुविज्ञाननो निर्णय करावी, अतीन्द्रिय ज्ञान अने सुखनी श्रद्धा करावी, प्रत्येक द्रव्यनुं संपूर्ण स्वातंत्र्य समजावी, द्रव्यसामान्यमां लीन थवारूप शाश्वत सुखनो पंथ दर्शावो, ए मारी अंतरनी भावना छे. ‘परमानंदरूपी सुधारसना पिपासु भव्य जीवोना हितने माटे’ श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे आ महाशास्त्रनी व्याख्या लखी छे. जे जीवो एमां कहेला परम कल्याणकर भावोने हृदयगत करशे तेओ अवश्य परमानंदरूपी सुधारसनां भाजन थशे. ज्यां सुधी ए भावो हृदयगत न थाय त्यां सुधी निशदिन ए ज भावना, ए ज विचार, ए ज मंथन, ए ज पुरुषार्थ कर्तव्य छे. ए ज परमानंदप्राप्तिनो