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उपाय छे. श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे तत्त्वदीपिकानी पूर्णाहुति करतां भावेली भावना भावीने आ उपोद्घात पूर्ण करुं छुंः ‘‘आनंदामृतना पूरथी भरचक वहेती कैवल्यसरितामां जे निमग्न छे, जगतने जोवाने समर्थ एवी महाज्ञानलक्ष्मी जेमां मुख्य छे, उत्तम रत्नना किरण जेवुं जे स्पष्ट अने जे इष्ट छे — एवा प्रकाशमान स्वतत्त्वने जीवो स्यात्कारलक्षणथी लक्षित जिनेन्द्रशासनना वशे पामो.’’ श्रुतपंचमी, वि. सं. २००४ – हिंमतलाल जेठालाल शाह
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निश्चयनय उपादेय छे अने व्यवहारनय हेय छे.
प्रश्नः — द्रव्यसामान्यनुं आलंबन ज उपादेय होवा छतां, अहीं (गाथा
१८९नी टीकामां) रागपरिणामना ग्रहणत्यागरूप पर्यायोनो स्वीकार करनार
निश्चयनयने उपादेय केम कह्यो छे?
निश्चयनयने उपादेय केम कह्यो छे?
उत्तरः — ‘रागपरिणामनो करनार पण आत्मा ज छे अने वीतराग
परिणामनो करनार पण आत्मा ज छे, अज्ञानदशा पण आत्मा स्वतंत्रपणे करे
छे अने ज्ञानदशा पण आत्मा स्वतंत्रपणे करे छे’ — आवा यथार्थ ज्ञाननी अंदर
छे अने ज्ञानदशा पण आत्मा स्वतंत्रपणे करे छे’ — आवा यथार्थ ज्ञाननी अंदर
द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान गर्भितपणे समाई ज जाय छे. जो विशेषोनुं बराबर यथार्थ
ज्ञान होय तो ए विशेषो जेना विना होता नथी एवा सामान्यनुं ज्ञान होवुं
ज जोईए. द्रव्यसामान्यना ज्ञान विना पर्यायोनुं यथार्थ ज्ञान होई शके ज नहि.
माटे उपरोक्त निश्चयनयमां द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान गर्भितपणे समाई ज जाय छे.
जे जीव बंधमार्गरूप पर्यायमां तेम ज मोक्षमार्गरूप पर्यायमां आत्मा एकलो ज
छे एम यथार्थपणे (द्रव्यसामान्यनी अपेक्षा सहित) जाणे छे, ते जीव परद्रव्य
वडे संपृक्त थतो नथी अने द्रव्यसामान्यनी अंदर पर्यायोने डुबाडी दईने सुविशुद्ध
होय छे. आ रीते पर्यायोना यथार्थ ज्ञानमां द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान अपेक्षित होवाथी
अने द्रव्य -पर्यायोना यथार्थ ज्ञानमां द्रव्यसामान्यना आलंबनरूप अभिप्राय
अपेक्षित होवाथी उपरोक्त निश्चयनयने उपादेय कह्यो छे.
ज्ञान होय तो ए विशेषो जेना विना होता नथी एवा सामान्यनुं ज्ञान होवुं
ज जोईए. द्रव्यसामान्यना ज्ञान विना पर्यायोनुं यथार्थ ज्ञान होई शके ज नहि.
माटे उपरोक्त निश्चयनयमां द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान गर्भितपणे समाई ज जाय छे.
जे जीव बंधमार्गरूप पर्यायमां तेम ज मोक्षमार्गरूप पर्यायमां आत्मा एकलो ज
छे एम यथार्थपणे (द्रव्यसामान्यनी अपेक्षा सहित) जाणे छे, ते जीव परद्रव्य
वडे संपृक्त थतो नथी अने द्रव्यसामान्यनी अंदर पर्यायोने डुबाडी दईने सुविशुद्ध
होय छे. आ रीते पर्यायोना यथार्थ ज्ञानमां द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान अपेक्षित होवाथी
अने द्रव्य -पर्यायोना यथार्थ ज्ञानमां द्रव्यसामान्यना आलंबनरूप अभिप्राय
अपेक्षित होवाथी उपरोक्त निश्चयनयने उपादेय कह्यो छे.
[ विशेष माटे १२६मी गाथानी टीका जुओ.]