Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). AnukramanikA.

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वि ष या नु क्र म णि का
(१) ज्ञानत˚व -प्रज्ञापन
विषयगाथा
विषयगाथा
ज्ञान अधिकार
मंगलाचरणपूर्वक भगवान ग्रंथकर्तानी
प्रतिज्ञा
अतीन्द्रिय ज्ञानरूपे परिणमेला होवाथी

वीतराग चारित्र उपादेय छे, अने सराग

केवळीभगवानने बधुं प्रत्यक्ष छे.२१
चारित्र हेय छे एवुं कथन
आत्मा ज्ञानप्रमाण छे अने ज्ञान

चारित्रनुं स्वरूप

सर्वगत छे, एवुं कथन२३

चारित्र अने आत्मानी एकतानुं कथन

आत्माने ज्ञानप्रमाण नहि मानवामां बे
पक्ष रजू करीने दोष बतावे छे.२४

आत्मानुं शुभ, अशुभ अने शुद्धपणुं

ज्ञाननी जेम आत्मानुं पण सर्वगतपणुं

परिणाम वस्तुनो स्वभाव छे.१०

न्यायसिद्ध छे एम कहे छे.२६

आत्माना शुद्ध अने शुभादि भावोनुं फळ ११

आत्मा अने ज्ञाननुं एकत्व -अन्यत्व२७
शुोपयोग
ज्ञान अने ज्ञेयना परस्पर गमनने
शुद्धोपयोगना फळनी प्रशंसा१३
रद करे छे.२८
शुद्धोपयोगे परिणमेला आत्मानुं स्वरूप१४
आत्मा पदार्थोमां नहि वर्ततो होवा छतां
शुद्धोपयोगनी प्राप्ति पछी तुरत ज
जेनाथी तेने पदार्थोमां वर्तवुं सिद्ध
थाय छे ते शक्तिवैचित्र्य
२९
थती शुद्ध आत्मस्वभावनी प्राप्ति;
तेनी प्रशंसा
१५
ज्ञान पदार्थोमां वर्ते छे एम द्रष्टांत

शुद्धात्मस्वभावनी प्राप्ति अन्य कारकोथी

द्वारा स्पष्ट करे छे.३०
निरपेक्ष होवाथी अत्यंत आत्माधीन
छे, ते संबंधी निरूपण
१६
पदार्थो ज्ञानमां वर्ते छे एम व्यक्त
करे छे.३१

स्वयंभू -आत्माने शुद्धात्मस्वभावनी

आत्माने पदार्थो साथे एकबीजामां
प्राप्तिनुं अत्यंत अविनाशीपणुं अने
कथंचित् उत्पाद -व्यय -ध्रौव्ययुक्तपणुं
१७
वर्तवापणुं होवा छतां, ते परने
ग्रह्या -मूक्या विना तथा पररूपे
परिणम्या विना सर्वने देखतो -जाणतो
होवाथी तेने अत्यंत भिन्नपणुं छे एम
दर्शावे छे.

पूर्वोक्त स्वयंभू -आत्माने इंद्रियो विना कइ

रीते ज्ञान -आनंद होय? एवा संदेहनुं
निराकरण
१९
३२

अतींद्रियपणाने लीधे शुद्धात्माने शारीरिक

केवळज्ञानीने अने श्रुतज्ञानीने अविशेष - पणे
सुखदुःख नथी२०
दर्शावीने विशेष आकांक्षाना क्षोभने क्षय
करे छे.
३३