Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषयानुक्रमणिका
विषयगाथा
विषयगाथा
ज्ञानना श्रुत -उपाधिकृत भेदने दूर करे छे. ३४
आत्मा अने ज्ञाननो कर्तृत्व -करणत्वकृत
एकने नहि जाणनार सर्वने जाणतो नथी. ४९
क्रमे प्रवर्तता ज्ञाननुं सर्वगतपणुं सिद्ध थतुं
भेद दूर करे छे.३५
नथी.५०

शुं ज्ञान छे अने शुं ज्ञेय छे ते व्यक्त

युगपद् प्रवृत्ति वडे ज ज्ञाननुं सर्वगतपणुं
करे छे.३६
सिद्ध थाय छे.५१

द्रव्योना अतीत -अनागत पर्यायो पण,

ज्ञानीने ज्ञप्तिक्रियानो सद्भाव होवा छतां
तात्काळिक पर्यायोनी माफक, पृथक्पणे
ज्ञानमां वर्ते छे.
३७
पण क्रियाना फळरूप बंधनो निषेध
करतां ज्ञान -अधिकारनो उपसंहार
करे छे.
५२

अविद्यमान पर्यायोनुं कथंचित् विद्यमानपणुं ३८ अविद्यमान पर्यायोनुं ज्ञानप्रत्यक्षपणुं द्रढ

सुख अधिकार
करे छे.३९
ज्ञानथी अभिन्न एवा सुखनुं स्वरूप वर्णवतां

इंद्रियज्ञानने माटे ज नष्ट अने अनुत्पन्न

क्युं ज्ञान तेम ज सुख उपादेय छे अने
कयुं हेय छे ते विचारे छे.
५३
जाणवानुं अशक्य छे एम न्यायथी
नक्की करे छे.
४०
अतीन्द्रिय सुखना साधनभूत अतीन्द्रिय

अतींद्रिय ज्ञान माटे जे जे कहेवामां आवे

ज्ञान उपादेय छे एम प्रशंसे छे.५४
ते ते (बधुं) संभवे छे एम स्पष्ट करे
छे.
४१
इंद्रियसुखना साधनभूत इंद्रियज्ञान हेय छे
एम तेने निंदे छे.५५

ज्ञेयार्थपरिणमनस्वरूप क्रिया ज्ञानमांथी

इंद्रियज्ञान प्रत्यक्ष नथी एम नक्की
उद्भवती नथी एम श्रद्धे छे.४२
करे छे.५७

ज्ञेयार्थपरिणमनस्वरूप क्रिया अने तेनुं

परोक्ष अने प्रत्यक्षनां लक्षण दर्शावे छे.५८
फळ शामांथी उत्पन्न थाय छे?
एम विवेचे छे.
४३
प्रत्यक्ष ज्ञानने पारमार्थिक सुखपणे
दर्शावे छे.५९

केवळीभगवंतोने क्रिया पण क्रियाफळने

उत्पन्न करती नथी.४४
‘केवळज्ञानने पण परिणाम द्वारा खेदनो

तीर्थंकरोने पुण्यनो विपाक अकिंचित्कर छे. ४५ केवळीभगवंतोनी माफक बधाय जीवोने

संभव होवाथी केवळज्ञान एकांतिक
सुख नथी’ एवा अभिप्रायनुं खंडन
करे छे.
६०
स्वभावविघातनो अभाव होवानुं
निषेधे छे.
४६
‘केवळज्ञान सुखस्वरूप छे’ एम निरूपण

अतीन्द्रिय ज्ञानने सर्वज्ञपणे अभिनंदे छे. ४७ सर्वने नहि जाणनार एकने पण

करतां उपसंहार करे छे.६१
केवळीओने ज पारमार्थिक सुख होय छे एम
जाणतो नथी.४८
श्रद्धा करावे छे.६२

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