दूर करता थका, अशेष दुःखनो क्षय
करवानो द्रढ निश्चय करी शुद्धोपयोगमां
वसे छे.
इंद्रियसुखनो विचार६३ ज्यां सुधी इंद्रियो छे त्यां सुधी स्वभावथी
ज दुःख छे एम न्यायथी नक्की करे छे.६४
मुक्त आत्माना सुखनी प्रसिद्धि माटे,
शरीर सुखनुं साधन होवानी वातनुं खंडन करे छे.६५
आत्मा स्वयमेव सुखपरिणामनी शक्तिवाळो
होवाथी विषयोनुं अकिंचित्करपणुं६७
जागृत रहे छे.८१
आत्मानुं सुखस्वभावपणुं द्रष्टांत वडे द्रढ
करीने आनंद -अधिकार पूर्ण करे छे. ६८
निःश्रेयसनो पारमार्थिक पंथ छे – एम
इंद्रियसुखना स्वरूप संबंधी विचार उपाडतां,
तेना साधननुं स्वरूप६९
इंद्रियसुखने शुभोपयोगना साध्य तरीके
कहे छे.७०
इंद्रियसुखने दुःखपणे सिद्ध करे छे.७१
इंद्रियसुखना साधनभूत पुण्यने उत्पन्न
करनार शुभोपयोगनुं, दुःखना साधन- भूत पापने उत्पन्न करनार अशुभो- पयोगथी अविशेषपणुं प्रगट करे छे. ७२
योग्य छे.८५
पुण्यो दुःखना बीजना हेतु छे एम
न्यायथी प्रगट करे छे.७४
पुण्यजन्य इंद्रियसुखनुं घणा प्रकारे
दुःखपणुं प्रकाशे छे.७६
क्रियाकारी छे.८८
पुण्य अने पापनुं अविशेषपणुं निश्चित
करता थका (आ विषयनो) उपसंहार करे छे.७७
सिद्धि माटे प्रयत्न करे छे.८९