Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषयानुक्रमणिका
[ १७
विषयगाथा
विषयगाथा
शुभ अने अशुभ उपयोगनुं अविशेषपणुं
परोक्षज्ञानवाळाओना अपारमार्थिक
अवधारीने, समस्त रागद्वेषना द्वैतने
दूर करता थका, अशेष दुःखनो क्षय
करवानो द्रढ निश्चय करी शुद्धोपयोगमां
वसे छे.

इंद्रियसुखनो विचार६३ ज्यां सुधी इंद्रियो छे त्यां सुधी स्वभावथी

ज दुःख छे एम न्यायथी नक्की करे छे.६४

७८
मोहादिकना उन्मूलन प्रत्ये सर्व आरंभथी

मुक्त आत्माना सुखनी प्रसिद्धि माटे,

कटिबद्ध थाय छे.७९

शरीर सुखनुं साधन होवानी वातनुं खंडन करे छे.६५

‘मारे मोहनी सेनाने कइ रीते जीतवी’एम
उपाय विचारे छे.८०

आत्मा स्वयमेव सुखपरिणामनी शक्तिवाळो

में चिंतामणि प्राप्त कर्यो होवा छतां

होवाथी विषयोनुं अकिंचित्करपणुं६७

प्रमाद चोर छे एम विचारी
जागृत रहे छे.
८१

आत्मानुं सुखस्वभावपणुं द्रष्टांत वडे द्रढ

करीने आनंद -अधिकार पूर्ण करे छे. ६८

पूर्वोक्त गाथाओमां वर्णव्यो ते ज एक,
शुभपरिणाम अधिकार
भगवंतोए पोते अनुभवीने दर्शावेलो
निःश्रेयसनो पारमार्थिक पंथ छे
एम

इंद्रियसुखना स्वरूप संबंधी विचार उपाडतां,

मतिने व्यवस्थित करे छे.८२

तेना साधननुं स्वरूप६९

शुद्धात्मानो परिपंथी जे मोह तेनो

इंद्रियसुखने शुभोपयोगना साध्य तरीके

स्वभाव अने प्रकारो व्यक्त करे छे. ८३

कहे छे.७०

त्रण प्रकारना मोहने अनिष्ट कार्यनुं कारण

इंद्रियसुखने दुःखपणे सिद्ध करे छे.७१

कहीने तेनो क्षय करवानुं कहे छे.८४

इंद्रियसुखना साधनभूत पुण्यने उत्पन्न

रागद्वेषमोहने आ लिंगो वडे ओळखीने

करनार शुभोपयोगनुं, दुःखना साधन- भूत पापने उत्पन्न करनार अशुभो- पयोगथी अविशेषपणुं प्रगट करे छे. ७२

उद्भवतां वेंत ज मारी नाखवा
योग्य छे.
८५
मोहक्षय करवानो उपायान्तर विचारे छे.८६

पुण्यो दुःखना बीजना हेतु छे एम

जिनेंद्रना शब्दब्रह्ममां अर्थोनी व्यवस्था

न्यायथी प्रगट करे छे.७४

कइ रीते छे ते विचारे छे.८७

पुण्यजन्य इंद्रियसुखनुं घणा प्रकारे

मोहक्षयना उपायभूत जिनेश्वरना उपदेशनी

दुःखपणुं प्रकाशे छे.७६

प्राप्ति थवा छतां पण पुरुषार्थ अर्थ-
क्रियाकारी छे.
८८

पुण्य अने पापनुं अविशेषपणुं निश्चित

स्व -परना विवेकनी सिद्धिथी ज मोहनो क्षय

करता थका (आ विषयनो) उपसंहार करे छे.७७

थइ शके छे तेथी स्व -परना विभागनी
सिद्धि माटे प्रयत्न करे छे.
८९