Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 124.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२४३

खल्वात्मा परिणमति यः कश्चनाप्यात्मनः परिणामः स सर्वोऽपि चेतनां नातिवर्तत इति तात्पर्यम् चेतना पुनर्ज्ञानकर्मक र्मफलत्वेन त्रेधा तत्र ज्ञानपरिणतिर्ज्ञानचेतना, कर्मपरिणतिः कर्मचेतना, कर्मफलपरिणतिः कर्मफलचेतना ।।१२३।।

अथ ज्ञानकर्मकर्मफलस्वरूपमुपवर्णयति

णाणं अट्ठवियप्पो कम्मं जीवेण जं समारद्धं

तमणेगविधं भणिदं फलं ति सोक्खं व दुक्खं वा ।।१२४।।
ज्ञानमर्थविकल्पः कर्म जीवेन यत्समारब्धम्
तदनेकविधं भणितं फलमिति सौख्यं वा दुःखं वा ।।१२४।।

वा फले वा कस्य फले कम्मणो कर्मणः भणिदा भणिता कथितेति ज्ञानपरिणतिः ज्ञानचेतना अग्रे वक्ष्यमाणा, कर्मपरिणतिः क र्मचेतना, क र्मफलपरिणतिः कर्मफलचेतनेति भावार्थः ।।१२३।। अथ ज्ञानकर्मकर्मफलरूपेण त्रिधा चेतनां विशेषेण विचारयतिणाणं अट्ठवियप्पं ज्ञानं मत्यादिभेदेनाष्टविकल्पं भवति अथवा पाठान्तरम्णाणं अट्ठवियप्पो ज्ञानमर्थविकल्पः तथाहिअर्थः परमात्मादिपदार्थः, अनन्तज्ञानसुखादिरूपोऽहमिति रागाद्यास्रवास्तु मत्तो भिन्ना इति स्वपराकारावभासेनादर्श इवार्थ-


स्वरूप छे, ते -रूपे (चेतनारूपे) खरेखर आत्मा परिणमे छे. आत्मानो जे कोई पण परिणाम होय ते सघळोय चेतनाने उल्लंघतो नथी (अर्थात् आत्मानो कोई पण परिणाम चेतनाने जराय छोडतो नथीचेतना वगरनो बिलकुल होतो नथी)एम तात्पर्य छे. वळी चेतना ज्ञानपणे, कर्मपणे अने कर्मफळपणे एम त्रण प्रकारे छे. त्यां, ज्ञानपरिणति (ज्ञानरूपे परिणति) ते ज्ञानचेतना, कर्मपरिणति ते कर्मचेतना, कर्मफळपरिणति ते कर्मफळ- चेतना छे. १२३.

हवे ज्ञाननुं, कर्मनुं अने कर्मफळनुं स्वरूप वर्णवे छेः
छे ‘ज्ञान’ अर्थविकल्प, ने जीवथी करातुं ‘कर्म’ छे,

ते छे अनेक प्रकारनुं, ‘फळ’ सौख्य अथवा दुःख छे.१२४.

अन्वयार्थः[अर्थविकल्पः] अर्थविकल्प (अर्थात् स्व -पर पदार्थोनुं भिन्नतापूर्वक युगपद् अवभासन) [ज्ञानं] ते ज्ञान छे; [जीवेन] जीव वडे [यत् समारब्धं] जे करातुं होय [कर्म] ते कर्म छे, [तद् अनेकविधं] ते अनेक प्रकारनुं छे; [सौख्यं वा दुःखं वा] सुख अथवा दुःख [फलम् इति भणितम्] ते कर्मफळ कहेवामां आव्युं छे.