Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 125.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२४५
अथ ज्ञानकर्मकर्मफलान्यात्मत्वेन निश्चिनोति

अप्पा परिणामप्पा परिणामो णाणकम्मफलभावी

तम्हा णाणं कम्मं फलं च आदा मुणेदव्वो ।।१२५।।
आत्मा परिणामात्मा परिणामो ज्ञानकर्मफलभावी
तस्मात् ज्ञानं कर्म फलं चात्मा ज्ञातव्यः ।।१२५।।

भण्यते सैव कर्मचेतनेति तमणेगविधं भणिदं तच्च कर्म शुभाशुभशुद्धोपयोगभेदेनानेकविधं त्रिविधं भणितम् इदानीं फलचेतना कथ्यतेफलं ति सोक्खं व दुक्खं वा फलमिति सुखं वा दुःखं वा विषयानुरागरूपं यदशुभोपयोगलक्षणं कर्म तस्य फलमाकुलत्वोत्पादकं नारकादिदुःखं, यच्च धर्मानु- रागरूपं शुभोपयोगलक्षणं कर्म तस्य फलं चक्रवर्त्यादिपञ्चेन्द्रियभोगानुभवरूपं, तच्चाशुद्धनिश्चयेन सुखमप्याकुलोत्पादकत्वात् शुद्धनिश्चयेन दुःखमेव यच्च रागादिविकल्परहितशुद्धोपयोगपरिणतिरूपं कर्म तस्य फलमनाकुलत्वोत्पादकं परमानन्दैकरूपसुखामृतमिति एवं ज्ञानकर्मकर्मफलचेतनास्वरूपं ज्ञात-

भावार्थःजेमां स्व ते स्व -रूपे अने पर ते पर -रूपे (परस्पर भेळसेळ विना, स्पष्ट भिन्नतापूर्वक) एकीसाथे प्रतिभासे ते ज्ञान छे.

जीवथी करातो भाव ते (जीवनुं) कर्म छे. तेना मुख्य बे प्रकार छेः (१) निरुपाधिक (स्वाभाविक) शुद्धभावरूप कर्म, अने (२) औपाधिक शुभाशुभभावरूप कर्म.

आ कर्म वडे नीपजतुं सुख अथवा दुःख ते कर्मफळ छे. त्यां, द्रव्यकर्मरूप उपाधिमां जोडाण नहि होवाने लीधे जे निरुपाधिक शुद्धभावरूप कर्म थाय छे, तेनुं फळ तो अनाकुळता जेनुं लक्षण छे एवुं स्वभावभूत सुख छे; अने द्रव्यकर्मरूप उपाधिमां जोडावाने लीधे जे औपाधिक शुभाशुभभावरूप कर्म थाय छे, तेनुं फळ विकारभूत दुःख छे कारण के तेमां अनाकुळता नथी पण आकुळता छे.

आ रीते ज्ञान, कर्म अने कर्मफळनुं स्वरूप कह्युं. १२४. हवे ज्ञान, कर्म अने कर्मफळने आत्मापणे नक्की करे छेः

परिणाम -आत्मक जीव छे, परिणाम ज्ञानादिक बने;
तेथी करमफळ, कर्म तेम ज ज्ञान आत्मा जाणजे.१२५.

अन्वयार्थः[आत्मा परिणामात्मा] आत्मा परिणामात्मक छे; [परिणामः] परिणाम [ज्ञानकर्मफलभावी] ज्ञानरूप, कर्मरूप अने कर्मफळरूप थाय छे. [तस्मात्] तेथी [ज्ञानं कर्म फलं च] ज्ञान, कर्म अने कर्मफळ [आत्मा ज्ञातव्यः] आत्मा छे एम जाणवुं.