Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२४९

प्रसिद्धपौद्गलिककर्मबन्धनोपाधिसन्निधिध्वंसविस्फु रितसुविशुद्धसहजात्मवृत्तिर्जपापुष्पसंनिधिध्वंस- विस्फु रितसुविशुद्धसहजात्मवृत्तिः स्फ टिकमणिरिव विश्रान्तपरारोपितविकारोऽहमेकान्तेनास्मि मुमुक्षुः इदानीमपि न नाम मम कोऽप्यस्ति इदानीमप्यहमेक एव सुविशुद्धचित्स्वभावेन स्वतन्त्रः कर्तास्मि; अहमेक एव च सुविशुद्धचित्स्वभावेन साधकतमः करणमस्मि; अहमेक एव च सुविशुद्धचित्परिणमनस्वभावेनात्मना प्राप्यः कर्मास्मि; अहमेक एव च सुविशुद्ध- चित्परिणमनस्वभावस्य निष्पाद्यमनाकुलत्वलक्षणं सौख्याख्यं कर्मफलमस्मि एवमस्य बन्धपद्धतौ मोक्षपद्धतौ चात्मानमेकमेव भावयतः परमाणोरिवैकत्वभावनोन्मुखस्य नैवान्यं रागादिपरिणामं यदि चेत्, अप्पाणं लहदि सुद्धं तदात्मानं भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्मरहितत्वेन शुद्धं शुद्धबुद्धैकस्वभावं लभते प्राप्नोति इत्यभिप्रायो भगवतां श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवानाम् ।।१२६।। एवमेक-

हवे वळी, अनादिसिद्ध पौद्गलिक कर्मना बंधनरूप उपाधिनी निकटताना नाशथी जेने सुविशुद्ध सहज (स्वाभाविक) स्वपरिणति प्रगट थई छे एवो हुंजासुदपुष्पनी निकटताना नाशथी जेने सुविशुद्ध सहज स्वपरिणति प्रगट थई होय एवा स्फटिकमणिनी माफकपर वडे आरोपायेलो विकार जेने अटकी गयो छे एवो होवाथी एकांते मुमुक्षु छुं; हमणां पण (मुमुक्षुदशामां अर्थात् ज्ञानदशामां पण) खरेखर मारुं कोई पण नथी. हमणां पण हुं एकलो ज कर्ता छुं, कारण के हुं एकलो ज सुविशुद्ध चैतन्यरूप स्वभाव वडे स्वतंत्र छुं (अर्थात् स्वाधीनपणे करुं छुं); हुं एकलो ज करण छुं, कारण के हुं एकलो ज सुविशुद्ध चैतन्यरूप स्वभाव वडे साधकतम छुं; हुं एकलो ज कर्म छुं, कारण के हुं एकलो ज सुविशुद्ध चैतन्यरूपे परिणमवाना स्वभावने लीधे आत्माथी प्राप्य छुं; अने हुं एकलो ज अनाकुळतालक्षणवाळुं, ‘सुख’ नामनुं कर्मफळ छुंके जे (फळ) सुविशुद्ध चैतन्यरूपे परिणमवाना स्वभाव वडे निपजाववामां आवे छे.’’

आ रीते बंधमार्गमां तेम ज मोक्षमार्गमां आत्मा एकलो ज छे एम भावनार आ पुरुष परमाणुनी माफक एकत्वभावनामां उन्मुख होवाथी (अर्थात् एकत्वने भाववामां तत्परलागेलोहोवाथी), तेने परद्रव्यरूप परिणति बिलकुल थती प्र. ३२

१. एकांते मुमुक्षु = केवळ मोक्षार्थी; सर्वथा मोक्षेच्छु.
२. सुविशुद्धचैतन्यपरिणमनस्वभाव आत्मानुं कर्म छे अने ते कर्म अनाकुळतास्वरूप सुखने निपजावे
छे माटे सुख ते कर्मफळ छे. सुख आत्मानी ज अवस्था होवाथी आत्मा ज कर्मफळ छे.

३. भाववुं = अनुभववुं; समजवुं; चिंतववुं. [‘कोई जीवनेअज्ञानीने के ज्ञानीनेपर साथे संबंध नथी. बंधमार्गमां आत्मा पोते पोताने पोताथी बांधतो हतो अने पोताने (अर्थात् पोताना दुःखपर्यायरूप फळने) भोगवतो हतो. हवे मोक्षमार्गमां आत्मा पोते पोताने पोताथी मुक्त करे छे अने पोताने
(अर्थात्
पोताना सुखपर्यायरूप फळने) भोगवे छे.’आवा एकत्वने सम्यग्द्रष्टि जीव भावे छे अनुभवे छेसमजे छेचिंतवे छे. मिथ्याद्रष्टि आनाथी विपरीत भावनावाळो होय छे.]